जम्मू कश्मीर (पीओजेके) में रहने वाले लोग आज भी पीड़ित हैं, वे भारत की ओर देख रहे हैं

जम्मू कश्मीर (पीओजेके) में रहने वाले लोग आज भी पीड़ित हैं, वे भारत की ओर देख रहे हैं

जम्मू कश्मीर (पीओजेके) में रहने वाले लोग आज भी पीड़ित हैं, वे भारत की ओर देख रहे हैं

जम्मू। जम्मू कश्मीर के इतिहास में पहली बार 1947 से लेकर आज तक बलिदान होने वाले प्रदेश के लगभग दो हजार जांबाजों को सामूहिक श्रद्धांजलि देने के साथ बलिदानियों के परिजनों को सम्मानित किया गया। रविवार को स्वतंत्रता के 75 वर्ष एवं कारगिल विजय दिवस के उपलक्ष्य में जम्मू कश्मीर पीपुल्स फोरम द्वारा गुलशन ग्राउंड, गांधीनगर में एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया। समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले वशिष्ट अतिथि और देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह मुख्य अतिथि थे। समारोह में बलिदानियों के परिवारों, पूर्व सैनिकों, अर्द्ध सैनिक बलों के पूर्व जवानों और अधिकारियों, पूर्व सैन्य अधिकारियों, जम्मू कश्मीर पुलिस के पूर्व कर्मियों और अधिकारियों सहित अन्य लोग सम्मिलित हुए।

इस अवसर पर परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बाना सिंह, सेवानिवृत्त जस्टिस प्रमोद कोहली, पूर्व डीपीपी डॉ. एसपी वैद, सेवानिवृत्त ले. जनरल वीके चतुर्वेदी, पूर्व ले. जनरल राकेश कुमार शर्मा, पूर्व ले. जनरल एसके गोसाईं, पूर्व ले. जनरल एलआर सडोत्रा, पूर्व मेजरल जनरल एसके शर्मा, पूर्व आईपीएस अधिकारी सच्चिदानंद श्रीवास्तव, डीआरडीओ के पूर्व डीजी डॉ. सुदर्शन शर्मा, प्रांत संघचालक डॉ. गौतम मैंगी, पद्मश्री प्रो शिवदत्त निर्मोही, पद्मश्री पंडित विश्वमूर्ति शास्त्री, पूर्व सीएमडी जेके बैंक और निदेशक आरके छिब्बर, केंद्रीय विश्वविद्यालय जम्मू के कुलपति डॉ. संजीव जैन, स्कॉस्ट जम्मू के कुलपति प्रो जेपी शर्मा, सेवानिवृत्त आईएफएस सीएम सेठ, सेवानिवृत्त आईएएस निर्मल शर्मा, सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर बीएस सम्बयाल, सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर दीपक बडयाल और जम्मू कश्मीर पीपुल्स फोरम के अध्यक्ष रमेश सभरवाल उपस्थित थे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने बलिदानियों और उनके परिवार के सम्मान में आयोजित समारोह को स्वर्णिम दिवस बताते हुए कहा कि इसमें सम्मिलित होना उनके लिए सौभाग्य की बात है। आज वह उन परम पुण्यात्माओं के परिवारों के बीच उपस्थित हैं, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी तथा अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष राष्ट्र की सेवा के लिये लगा दिये।

ऐसे वीरों के शौर्य और पराक्रम को स्मरण करते हुए कहा कि हमें स्वतंत्रता मिले 75 वर्ष हो गए हैं। स्वतंत्रता के लिए हमारे पूर्वजों ने एक लम्बा संघर्ष किया था। इस संघर्ष में स्वतंत्रता सेनानियों के तप, त्याग और बलिदान की गाथाएं छिपी हैं। वर्तमान पीढ़ी जो स्वतंत्रता के बाद जन्मी है, उसे इसका ज्ञान होना चाहिए। हमारे पूर्वजों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए क्या किया है, इसे केवल जानना ही नहीं चाहिए बल्कि इससे प्रेरणा भी लेनी चाहिए ताकि भारत वर्ष को आगे ले जाने के लिए आज की पीढ़ी के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी हो और भारत को विश्व का सिरमौर बनाने में सहायता मिले।

सरकार्यवाह ने कहा कि जम्मू कश्मीर देश की स्वतंत्रता के समय से ही पाकिस्तान की कुदृष्टि का शिकार रहा है। प्रारम्भ से ही पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर में कभी आक्रमण, कभी आतंकवाद तो कभी अलगाववाद को बढ़ावा दिया है। उन्होंने जम्मू कश्मीर की जनता का पाकिस्तानी और देश विरोधी शक्तियों के षडयंत्रों को विफल करने में सेना, सुरक्षा बलों और जम्मू कश्मीर पुलिस का सहयोग करने के लिए भारत के समस्त देशवासियों की ओर से अभिनंदन किया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान जहाँ अलगाववाद और आतंकवाद को भड़काने में लगा था तो स्थानीय जनता का राष्ट्र के प्रति प्रेम और राष्ट्र की सुरक्षा के लिए किसी भी सीमा तक जाने के दृढ़ संकल्प ने निरन्तर इस अलगाववाद और आतंकवाद को परास्त किया।

उन्होंने कहा कि इस दृढ़ संकल्प का प्रथम उदाहरण जम्मू कश्मीर के अंतिम महाराजा हरि सिंह स्वयं हैं जो एक महान शासक और दूरदर्शी विभूति थे। 1947 में एक तरफ पाकिस्तान जम्मू कश्मीर पर आँखें गड़ाए बैठा था तो दूसरी तरफ अंग्रेजों की भी यह साजिश थी कि जम्मू कश्मीर का अधिमिलन पाकिस्तान में होना चाहिये भारत में नहीं। लेकिन महाराजा ने पाकिस्तान और अंग्रेज दोनों की साजिशों को निष्फल करते हुए जम्मू कश्मीर का अधिमिलन अथवा विलय भारत में किया। उस महान निर्णय के कारण हम जम्मू कश्मीर के लोग गर्व से कह सकते हैं कि हम भारत के नागरिक हैं।

दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि जम्मू कश्मीर का विलय अथवा अधिमिलन तो भारत में हो गया, लेकिन उस समय के केन्द्रीय नेतृत्व की अदूरदर्शिता और जम्मू कश्मीर के तत्कालीन राजनीतिक शासकों के षड्यंत्रों के चलते जम्मू कश्मीर में भारतीय संविधान को पूरी तरह लागू करने में अड़चनें पैदा करने के प्रयास किये जाने लगे। ऐसे समय में स्वतंत्र भारत का पहला आन्दोलन प्रजा परिषद आन्दोलन राज्य में शुरू हुआ था। इस आन्दोलन को राज्य में और फिर पूरे देश में सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित प्रेमनाथ डोगरा के अतुलनीय योगदान को हम नहीं भूल सकते। एक हाथ में तिरंगा पकडे़, दूसरे हाथ में संविधान पकडे़ और गले में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की फोटो लेकर हजारों लोग सड़कों पर निकल आये थे, उनका नारा सिर्फ एक था “एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे।” उन्होंने कहा कि जब जब वह जम्मू कश्मीर में प्रवेश करते हैं, उनको कर्नल नारायण सिंह, ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित प्रेमनाथ डोगरा जैसी महान विभूतियों का स्मरण होता है।

पीओजेके पर 1947 में हुए पाकिस्तानी आक्रमण और उसके बाद की स्थिति का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि उस समय मीरपुर, मुज़फ़्फ़राबाद, भिम्बर, कोटली आदि स्थानों से हिन्दू और सिखों का नरसंहार हुआ, महिलाओं पर अनेक अत्याचार किये गए, भारतीय सेना के वीर जवानों ने राजौरी, पुंछ और बारामुला के क्षेत्रों को पाकिस्तान के कब्जे से मुक्त करवाया। उन्होंने कहा कि हम कैसे भूल सकते हैं बड़गाम के युद्ध में वीरता का परिचय देने वाले प्रथम परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा, पुंछ के रक्षक के रूप में प्रसिद्ध ब्रिगेडियर प्रीतम सिंह, महावीर चक्र विजेता और झंगड़ के युद्ध के हीरो ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान, स्कार्दू में मेजर शेरजंग थापा जैसे वीरों को और इसके अतिरिक्त भी बहुत सारे हमारी सेना के अधिकारियों और जवानों ने बलिदान देकर जम्मू कश्मीर के बड़े क्षेत्र को पाकिस्तान के चंगुल से मुक्त करवाया था। पाकिस्तान के कब्जे में आने वाले जम्मू कश्मीर (पीओजेके) में रहने वाले लोग आज भी पीड़ित हैं, वे अभी भी स्वतंत्र नहीं हैं, वे भारत की ओर देख रहे हैं।

उन्होंने कोटली की घटना का स्मरण कराते हुए कहा कि 1947-48 में जब रणक्षेत्र में भारतीय फौज लड़ रही थी, तब भी जम्मू कश्मीर के लोग सेना के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर कर अपना योगदान दे रहे थे। कोटली में भारतीय सेना ने उस समय गोला बारूद से भरे बॉक्स एयर ड्राप किये, किन्तु वो गलत जगह गिर गए। कोटली के बलिदानी धरमवीर खन्ना, वेद प्रकाश चड्ढा, प्रीतम सिंह और सुक्खा सिंह को कौन भूल सकता है। जिन्होंने गोलियों की बौछार के बीच खुद जाकर गोला बारूद लाने का निर्णय लिया वो सफल भी हुए, किन्तु गोलाबारी में घायल हुए और बाद में वीरगति को प्राप्त हुए। पुंछ के अमृत सागर ने स्थानीय लोगों को एकत्र कर भारतीय सेना की मदद के लिए प्रेरित किया था. नई पीढ़ी के लोगों को यह बातें याद रखनी चाहिए।

कश्मीर में देशभक्त मकबूल शेरवानी के योगदान को अत्यंत स्मरणीय बताते हुए कहा कि कैसे शेरवानी ने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए पाकिस्तानी फौज को रास्ता भटका दिया था। जिसके चलते पाकिस्तानी फौज को श्रीनगर पहुंचने में देर हो गयी और जब तक पाकिस्तानी फौज बड़गाम तक पहुंची, तब तक भारतीय सेना मोर्चा संभाल चुकी थी। सिक्खों के बलिदान का उल्लेख करते हुए कहा कि पाकिस्तानी आक्रमण की वजह से अपने गाँवों को छोड़ कर सिक्ख एक गांव में इकट्ठे हुए थे। जब पाकिस्तानी फौज यहाँ पहुंची तो ऐसे विकट समय में एक स्थानीय कश्मीरी सिक्ख महिला बीबी नसीब कौर के नेतृत्व में सिक्ख महिलाओं ने पुरुषों का वेष धारण कर पाकिस्तानी सेना के खिलाफ युद्ध लड़ा था, यहां सैकड़ों सिक्ख महिला, बच्चों और पुरुषों ने अपने प्राणों का बलिदान देकर पाकिस्तान के सामने घुटने नहीं टेके थे। उन्होंने कहा कि भारत की यह मिट्टी अथवा जम्मू कश्मीर एक तीर्थ क्षेत्र हैं। यह श्रद्धा का स्थान है. जैसा आज कार्यक्रम हुआ है, इस प्रकार के कार्यक्रम पूरे देश में होने चाहिए।

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के हमले के कारण आज जम्मू कश्मीर और लद्दाख का बहुत बड़ा क्षेत्र पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है। वहां से विस्थापित हुए लाखों लोग आज जम्मू कश्मीर और शेष भारत में रह रहे हैं। विस्थापितों का शायद ही ऐसा कोई परिवार होगा, जिसने अपने परिवार में से किसी न किसी सगे सम्बन्धी को ना खोया हो। इतनी भयंकर त्रासदी झेलने की बाद भी इस समाज ने अपना धैर्य नहीं खोया। वे दोबारा अपने पैरों पर खड़े होने की जद्दोजहद में लग गए. विस्थापित होने के बाद भी जम्मू कश्मीर में इनका योगदान सराहनीय है।

उन्होंने कहा कि 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारतीय सेना ने शौर्य, पराक्रम और देशभक्ति का परिचय देते हुए 93000 पाकिस्तानी सैनिकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। इसके बावजूद पाकिस्तान ने दोबारा 1999 में जम्मू कश्मीर के कारगिल क्षेत्र पर आक्रमण किया था। किन्तु भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम के समक्ष पाकिस्तानी टिक नहीं पाए। मेजर सौरभ कालिया, कैप्टन विक्रम बत्रा, लेफ्टिनेंट बलवान सिंह, लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पाण्डेय, ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव, मेजर राजेश अधिकारी, मेजर विवेक गोता, नायक दिगेंद्र कुमार, राइफ़ल मैन संजय कुमार के योगदान को हमें हमेशा स्मरण करना चाहिए। हमें ऐसे बलिदानियों और वीर सपूतों से प्रेरणा लेनी चाहिए। ऐसे बलिदानियों के परिवारों के साथ देश और समाज खड़ा रहे, यह आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर और लदाख की देशभक्त जनता भी लगातार आंतरिक और बाहरी दोनों चुनौतियों से संघर्षरत रही है। इसी परंपरा का निर्वाहन हमारे लद्दाख के स्थानीय नागरिकों ने कारगिल युद्ध के दौरान भी किया। कारगिल युद्ध के समय सेना को पहाड़ों पर रसद पहुंचाना बहुत महत्वपूर्ण था और ये जिम्मेदारी लद्दाख के देशभक्त पोर्टरों ने निभाकर कारगिल युद्ध की विजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। यह प्रमाणित करता है कि देशभक्ति चित्रों में और प्रदर्शनी में नहीं होती, सामान्य पोर्टर कैसे देश की रक्षा के लिए खड़ा हो जाता है, यह देशभक्ति है।

उन्होंने कहा कि अलगाववाद व आतंकवाद कमजोर हुआ है, किंतु समाप्त नहीं हुआ। निराश-हताश आतंकी अपनी शैलियों में परिवर्तन कर रहे हैं। ऐसे में सुरक्षा बल तो लगातार सतर्क रहकर अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं, परन्तु समाज को भी वर्तमान चुनौतियों को समझ कर अपना जवाब देना होगा। अनुच्छेद 370 को अप्रभावित बना दिया गया और 35-ए हट चुका है। यह जम्मू कश्मीर में रहने वाले दलितों, महिलाओं, एसटी, वेस्ट पाकिस्तान रिफ्यूजी, गोरखा सभी के विरुद्ध था. इसके विरुद्ध भी राज्य की जनता ने एक लम्बा संघर्ष लड़ा और अन्त में विजय पायी। अब महिलाओं को समान अधिकार मिले हैं, जनजाति समाज को भी अब वे सारे अधिकार हैं जो उन्हें देश में हर जगह मिलते हैं। ओबीसी को चिन्हित करने का कार्य किया जा रहा है। डीडीसी के चुनाव हुए हैं।

सरकार्यवाह ने कहा कि दुनिया के सामने भारत को खड़ा करने का आज स्वर्णिम अवसर आया है। देश में सकारात्मक परिवर्तन की लहर है। भारत खड़ा करने के लिए समाज के योगदान का भी आह्वान किया। समाज अपनी जागरूकता और प्रतिबद्धता के साथ वीर सैनिकों और बलिदानियों के परिवारों के साथ खड़ा रहे। बलिदानियों के परिवारों के प्रोत्साहन की ज़िम्मेदारी सरकार के साथ साथ समाज भी ले। संस्थानों के नाम, स्मारक इत्यादि अमर बलिदानियों के नाम पर रखे जाएं। 15 अगस्त, 26 जनवरी इत्यादि राष्ट्रीय उत्सव पर बलिदानियों को अवश्य याद करें। साहित्य, कहानी, लोकगीत बलिदानियों के नाम पर बनें, ऐसे कार्यों के लिए हमें संकल्पबद्ध होना चाहिए।

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