जयपुर रियासतकाल में बाग-बगीचे
आज पर्यावरण दिवस है। जयपुर में पारा 42 डिग्री सेंटीग्रेड है। पेड़ों के जंगलों की जगह कंक्रीट के जंगलों ने ले ली है। सुनियोजित शहर बेतरतीब बसता जा रहा है। शहरीकरण ने हरियाली को निगल लिया है। रियासतकालीन जयपुर ऐसा नहीं था। तब खूब पेड़ लगाए जाते थे।जयपुर रियासत के शासक बाग बगीचों पर बहुत ध्यान देते थे। परकोटे के बाहर चारों ओर बागों की बहार थी और बगीचों का रख रखाव भी खूब होता था।
बनीपार्क जहॉं आज ऊंची ऊंची अट्टालिकाएं हैं, वहॉं कभी योजनानुसार लगाया हुआ जंगल होता था, जो उत्तर पश्चिम की ओर से आने वाली धूल भरी आँधियों से इसकी रक्षा करता था। जयपुर रियासत में तब विभिन्न विभागों द्वारा राज्य का संचालन होता था, जिन्हें कारख़ानेजात कहा जाता था। बागायत यानि बागवानी के कारख़ाने का बजट आज के हिसाब से भी देखें तो कम नहीं था। संवत् 1944 (1887 ई.) के बजट में बागायत का खर्च 39,335 रुपया 2 आने का था। तब जितने बाग बगीचे हुआ करते थे, उनमें से कुछ गिने चुने ही रह गए हैं। जय निवास खासा बाग था, इसकी देखभाल पर 10,517 रुपये 9 आने खर्च किए जा रहे थे। इस राशि में से 119 बागवानों पर 400 रुपए, सिंचाई के लिए लाव, चरस आदि पर 866 रुपये और दाखमढ़ा छप्परबंधी यानि काले अंगूरों की बेलों को चढ़ाने के लिए पत्थर के खंभों पर बांधे जाने वाले छप्परों पर 4867 रुपए 9 आने खर्च होते थे। ताल कटोरे की पाल के बगीचों को पाल का बाग कहते थे, जिनकी देखभाल पर 1051 रुपया 6 आने 6 पाई के खर्चे का प्रावधान था। अन्य बगीचों पर भी उनके आकार के अनुरूप राशि का प्रावधान था। सभी बाग बगीचों की सिंचाई कुओं से लाव चरस द्वारा की जाती थी तथा इन्हें खींचने के लिए बैलों की जोड़ियां रथखाने से उपलब्ध करवाई जाती थीं।
जय निवास के बाद रामबाग की तरफ़ मोती डूंगरी ख़ास बागों में बड़ा बाग था, जिसके लिए 2208 रुपया 7 आने का प्रावधान था। रामबाग के रखरखाव के लिए तब भी 40 आदमी नियत थे। इसके बाद पुराने घाट के पास राजनिवास बाग था। इस बाग तक नहर चलती थी। इस बाग में अब समाज कल्याण विभाग का महिला सदन चलता है। इसी ओर विद्याधर का बाग व सिसोदिया रानी के बाग थे। मॉंजी राणावतजी का बाग माँजी का बाग के नाम से प्रसिद्ध था। जिसमें पहले रेजिडेंसी रही और अब होटल राजमहल चलता है। सवाई जयसिंह के नगर सेठ का बाग नाटाणीजी का बाग के नाम से जाना जाता था, जिसमें जयपुर रियासत के अंग्रेजों के समय के प्रधानमंत्रियों में राजा ज्ञाननाथ, सर मिर्ज़ा इस्माइल और सर TV कृष्णामाचारी जैसे भारतीय प्रधानमंत्री भी रहे हैं। अब तो यह जय निवास पैलेस होटल है। झोटवाड़ा का बाग, रामबाग (अब सेनापति हाउस), अमानीशाह के नाले पर स्थित नाला गार्डन, खातीपुरा व झालाना के बाग भी थे। राजा का अमरूदों का भाग तो आज भी प्रसिद्ध है, भले ही वहॉं अमरूद के पेड़ नहीं रहे। सांगानेर में नदी के किनारे तब राजा का बाग तथा आठ अन्य बग़ीचे लहलहाते थे और नदी से ही नहर निकालकर इनकी सिंचाई की जाती थी। दुर्गापुरा का खवासजी का भाग भी काफ़ी प्रसिद्ध रहा है। दुर्गापुरा में रानीजी के बाग में अब दुर्गापुरा फलोद्यान राजकीय नर्सरी स्थित है। आमेर के श्याम बाग “परियों का बाग” दिला राम का बाग, मोहन बाड़ी, जयगढ़ एवं नाहरगढ़ किले की बगीची भी जयपुर की शोभा बढ़ाते थे। परशुरामद्वारा एवं जल महल में भी अच्छे बाग थे।
इतना ही नहीं जयपुर रियासत के प्रमुख सामंतों (ठिकानों के जागीरदार) के जयपुर के परकोटे के बाहर चारों ओर उनके ठिकानों के नाम से बाग बगीचे लगाए हुए थे। जिनमें प्रमुख थे उनियारा गार्डन, कानोता बाग, सामोद वालों का बाग, डिग्गी, गीजगढ़, अचरोल शाहपुरा, चोमूं वालों का बाग आदि। जयपुर के बाहर निकलते ही सिरसी तक, आमेर एवं अचरोल तक, सांगानेर तक विभिन्न प्रकार के फलों के बगीचे भरे पड़े थे। जयपुर से बाहर जाने वाले राजमार्गों पर भी कतारों में व्यवस्थित वृक्ष लगाए हुए थे। जयपुर सवाई माधोपुर सड़क मार्ग पर तो दौसा से लालसोट तक सड़क के दोनों ओर उस समय राज्य की ओर से लगाए गए सार्वजनिक आम के वृक्षों की लंबी कतारें हुआ करती थी, यह क्षेत्र अब सार्वजनिक निर्माण विभाग के अधीन है। रियासत के छोटे बड़े ठिकानों के जागीरदारों में तब अपने वैभव एवं शान शौक़त के प्रतीक के रूप में अपने अपने गांवों में जागीरदारी की भूमि पर तरह तरह के अच्छे फलदार वृक्षों के बगीचे लगाए जाते थे। ये सब जागीरदारी एवं सामंती प्रथा की समाप्ति के साथ ही उजड़ गए।
जयपुर के पास श्योपुर रावजी एवं नींदड़रावजी जी के बड़े समृद्ध बगीचे थे, जो अब आवासीय कॉलोनियों में सिमट गए हैं। गीजगढ़, गढ़ बहरावंडा, खोवारावजू, छारेड़ा, पापड़दा, माधोगढ़, सामोद, महार, अचरोल, उनियारा, खेतड़ी, खंडेला, शाहपुरा आदि अनेक स्थानों पर अच्छे बगीचे थे। जयपुर रियासत की भांति राजपूताना की अन्य रियासतों एवं सामंतों के बाग बगीचे भी थे।