राजस्थान: तुष्टीकरण की राजनीति के आगे हारती मानवीय संवेदनाएं
राजस्थान: तुष्टीकरण की राजनीति के आगे हारती मानवीय संवेदनाएं
जयपुर। प्रदेश में तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति के आगे मानवीय संवेदनाएं तक हारती दिख रही हैं। अलवर में इस वर्ष सिख समुदाय के साथ हुई दो घटनाओं में ऐसा ही कुछ सामने आया है। साल की शुरुआत में एक दिव्यांग नाबालिग के साथ हुई अमानवीय घटना को सामान्य एक्सीडेंट की घटना बता कर रफा-दफा कर दिया गया, वहीं अब अलवर के रामगढ़ में गुरुद्वारे के पूर्व ग्रंथी के केश काटने की घटना भी रफा-दफा किए जाने की तैयारी है। स्थिति यह है कि एक संदिग्ध को पकड़ कर थाने में लाने के बावजूद पुलिस अब तक आरोपियों की पहचान तक नहीं कर पाई है और सिख समुदाय को आंदोलन के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
प्रदेश का अलवर जिला गोतस्करी और ऐसे ही अन्य मामलों के कारण सुर्खियों में बना रहता है, लेकिन यहां वर्तमान सरकार के समय तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति का हाल यह है कि यहां कोई मुसलमान चाहे कितनी ही बड़ी घटना को अंजाम क्यों न दे दे, उसका कुछ नहीं बिगड़ता, जबकि गोतस्करी करने वालों को (जो कि आमतौर पर मुसलमान होते हैं) रोकने के लिए छोटी सी कार्रवाई भी की जाए तो वह लिचिंग के रूप में देश भर की सुर्खी बन जाती है।
इस बार तो मामला और भी ज्यादा दुर्भाग्पपूर्ण इसलिए है कि दोनों ही घटनाओं में पीड़ित सिख समुदाय से हैं और दोनों को ही न्याय नहीं मिल रहा है। इस वर्ष की शुरुआत में अलवर में ही एक अबोध बालिका के साथ एक अमानवीय घटना सामने आई। शुरुआती जांच में पुलिस ने स्वयं माना कि यह दुष्कर्म का मामला दिख रहा है। पीड़िता से मिलने के लिए सरकार के मंत्री तक अस्पताल पहुंचे, लेकिन अंततः मामला रफा-दफा कर दिया गया और इसे एक सामान्य सड़क दुर्घटना बता कर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। वह बच्ची और उसके माता-पिता आज भी न्याय की आस में हैं।
दूसरा मामला रामगढ़ के अलावड़ा गांव में मलिकपुर के गुरुद्वारे के एक पूर्व ग्रंथी गुरुबख्श सिंह का है। उनके केश काट दिए गए। यह काम जुम्मा नाम के एक व्यक्ति के कहने पर किया गया। गुरुबख्श सिंह ने स्वयं बताया कि आरोपी उसकी गर्दन काटने की तैयारी में थे, लेकिन जब उन्होंने अपने आप को गुरुद्वारे का ग्रंथी बताया तो केश काट कर छोड़ दिया। एक सिख के लिए उसके केश काटने से बड़ी घटना कोई नहीं हो सकती, क्योंकि यह सिखों की सबसे बड़ी निशानी है।
इस मामले में सिख समुदाय ने जब रामगढ़ में प्रदर्शन किया और थाने का घेराव किया तो पुलिस घटना के कुछ समय बाद ही एक संदिग्ध को पकड़ कर ले आई। ऐसे में यह लगा था कि अब बाकी आरोपी भी तुरंत पकड़ में आ जाएंगे, लेकिन आज घटना हुए एक सप्ताह बीतने के बाद भी पुलिस आरोपियों की पहचान तक नहीं कर पाई है। जबकि एक संदिग्ध के पकड़ में आने के बाद बाकी आरोपियों का पकड़ में आना कोई मुश्किल बात नहीं थी, क्योंकि जिसे पुलिस पकड़ कर लाई थी, वह वही जुम्मा था, जिसके निर्देश पर इस घटना को अंजाम दिया गया था। सामान्य पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे छोड़ भी दिया, जबकि यदि आरोपियों में आपस में फोन पर सम्पर्क हुआ है तो बहुत आसानी से आरोपी पकड़ में आ सकते हैं।
ऐसे गम्भीर मामले में भी पुलिस की यह लापरवाही बता रही है कि इस मामले को भी कहीं ना कहीं रफा-दफा करने के प्रयास किए जा रहे हैं, क्योंकि आरोपी मुसलमान हैं। जबकि मामला गम्भीर होने के बावजूद सिख संगत ने कानून-व्यवस्था को हाथ में नहीं लिया और पुलिस पर विश्वास करते हुए उसे कार्रवाई के लिए पूरा समय दिया, लेकिन पुलिस ने जब समुदाय का भरोसा तोड़ा तो अब न्याय की आस लगाए बैठे सिख समुदाय को आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ रहा है। इसके विरोध में सोमवार को पूरे क्षेत्र के बाजार और स्कूल बंद रहे और अब फिर दो दिन का अल्टीमेटम दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि लगभग दो वर्ष पहले अलवर के ही चौपानकी थाना क्षेत्र में अनुसूचित जाति के युवक हरीश जाटव के मामले में भी पुलिस ने कुछ नहीं किया था। वह लिंचिंग का शिकार हुआ और उसके पिता दर-दर न्याय की गुहार लगाते रहे, लेकिन न्याय नहीं मिला तो उन्होंने भी जहर खाकर जान दे दी।
ऐसे में सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति के सामने सरकार और पुलिस पीड़ितों को न्याय दिलाना तो दूर सुनवाई तक नहीं करेगी? और यदि ऐसा है तो आखिर ऐसा कब तक चलेगा?