स्वास्थ्य का सवाल तो है, लेकिन प्रतिबंध नहीं विकल्प ढूंढना चाहिए था
जयपुर। कोविड के संक्रमण को देखते हुए राज्य सरकार ने प्रदेश में दिवाली के मौके पर पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह प्रतिबंध सिर्फ दिवाली के लिए ही नहीं है बल्कि शादियों और अन्य समारोहों के लिए भी लगाया गया है। कोविड के फैलते संक्रमण को देखते हुए स्वास्थ्य की दृष्टि से यह निर्णय उचित कहा जा सकता है, लेकिन इस निर्णय से जुड़े कई अन्य पहलू भी हैं। जैसे सरकार का यह निर्णय उन हजारों लोगों के लिए काली दिवाली का संदेश है जो पटाखों के निर्माण और व्यापार से जुड़े हैं। यही नहीं इस निर्णय से सामान्य सामाजिक मान्यताओं और परम्पराओं में भी सरकार के हस्तक्षेप की नई परम्परा शुरू होने का संदेह पैदा हो गया है। इसके अतिरिक्त त्योहार के उत्साह और उमंग का पहलू भी है। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि क्या पूर्ण प्रतिबंध की जगह इसका कोई ऐसा विकल्प नहीं ढूंढा जा सकता था जो स्वास्थ्य के पहलू को साध लेता और त्योहार के उत्साह को भी बनाए रखता।
दरअसल इस वर्ष कोविड का संक्रमण फैला हुआ है जो सांस सम्बन्धी ही बीमारी है। प्रदेश के सबसे बडे अस्पताल सवाई मानसिंह अस्पताल के डाॅक्टरों का मानना है कि दिवाली पर पटाखों से होने वाला प्रदूषण अस्थमा के रोगियों के लिए तो घातक है ही साथ ही जो रोगी इस समय कोविड से पीड़ित हैं, उनके लिए भी खतरनाक हो सकता है। इन डाॅक्टरों ने इसी को देखते हुए अपनी ओर से एक पत्र सरकार को भेजा था, जिसमें इस वर्ष दिवाली पर पटाखों पर प्रतिबंध लगाने की बात कही गई थी। इसके बाद सरकार ने अन्य चिकित्सा विशेषज्ञों से भी चर्चा की थी। इस चर्चा में भी पटाखों पर प्रतिबंध का सुझाव आया था। बाद में एक-दो मौकों पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पटाखा रहित दिवाली मनाने की अपील भी जारी की, लेकिन अब अचानक सरकार ने पूर्ण प्रतिबंध का निर्णय ले लिया। सरकार की ओर से कहा गया है कि कोरोना महामारी के इस चुनौतीपूर्ण समय में प्रदेशवासियों के जीवन की रक्षा सरकार के लिए सर्वोपरि है। आतिशबाजी से निकलने वाले धुएं के कारण कोविड मरीजों के साथ ही हृदय एवं श्वास रोगियों को भी तकलीफ का सामना करना पड़ता है। ऐसे में, दिवाली पर लोग आतिशबाजी से बचें। इसके साथ ही पटाखों के विक्रय के अस्थायी लाइसेन्स पर रोक लगाने और शादी एवं अन्य समारोह में भी आतिशबाजी पर रोक के निर्देश दिए गए हैं।
यह सही है कि दिवाली पर पटाखों से प्रदूषण होता है लेकिन इसकी मात्रा वर्षभर वाहनों, ईंट भट्टों और फैक्ट्रियों आदि से होने वाले प्रदूषण की तुलना में बहुत कम है। सरकार को पहले इस प्रदीषण और बाद में दिवाली पर होने वाले प्रदूषण की चिंता करनी चाहिए। पटाखों के प्रचलन से जुड़े कई अन्य पहलू भी हैं। इनमें सबसे बड़ा पहलू त्योहार से जुड़े उत्साह और इस व्यवसाय से जुड़े हजारों लोगों की रोजी रोटी का है। भारतीय परम्परा में दिवाली एक ऐसा त्योहार है, जिसे लेकर सामान्य जनमानस में सबसे ज्यादा उत्साह नजर आता है। मुसलमानों को छोड दें तो भारत का हर जाति, धर्म, सम्प्रदाय का व्यक्ति इस त्योहार को मनाता है। वहीं मुस्लिम भी त्योहार सीधे तौर पर भले ही ना मनाते हों, लेकिन बाजारों में होने वाली सजावट और बाजार की रौनक देखने के लिए वे भी बड़ी संख्या में निकलते हैं। पटाखे त्योहार से जुड़े इसी उत्साह और उमंग का प्रतीक हैं। बच्चों को साल भर इन पटाखों के लिए ही इस त्योहार का इंतजार रहता है।
वहीं जहां तक कारेाबार का सवाल है तो यूं तो पटाखों का व्यापार पूरे वर्ष होता है। विभिन्न सामाजिक अवसरों और शादियों में पटाखों का प्रयोग किया जाता है, लेकिन दिवाली ऐसा अवसर है, जब इनकी खपत सर्वाधिक होती है। शिवकाशी से लेकर राजस्थान के धौलपुर-भरतपुर और देश भर में कई स्थानों पर एक बहुत बड़ा वर्ग अपने पूरे वर्ष की कमाई इस त्योहार पर पटाखे बना कर और बेच कर करता है। इनमें अधिकतर मेहनतकश गरीब लोग हैं। प्रतिबंध का सबसे बड़ा असर इसी वर्ग पर पड़ेगा। यही कारण रहा कि सरकार की ओर से प्रतिबंध की घोषणा होने के दूसरे दिन ही बड़ी संख्या में पटाखा व्यापारी जयपुर में प्रदर्शन के लिए इकट्ठा हो गए। इनका कहना था कि सरकार ने पहले तो पटाखों के लिए अस्थाई लाइसेंस लेने की बात कही लेकिन फिर एकाएक प्रदेश में पटाखों के उपयोग पर पाबंदी लगा दी है। पटाखा कारोबार से जुड़े कारोबारियों ने कहा कि सरकार की तरफ से अस्थाई लाइसेंस की घोषणा के बाद उन्होंने माल खरीद लिया और अब सरकार ने एकाएक प्रदेश में पटाखों के उपयोग पर पाबंदी लगा दी जो गलत है। व्यापारियों ने कहा कि कोरोना के कारण पहले ही कारोबार काफी प्रभावित हुआ है, क्योंकि बीते 8 माह से विवाह समारोहों पर प्रतिबंध लग चुका है। ऐसे में पटाखों की बिक्री एकदम बंद हो गई थी। दिवाली से उम्मीद थी तो सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया। ऐसे में कारोबार पूरा बर्बाद हो जाएगा। पटाखा व्यापारी इस मुद्दे को लेकर सरकार से पुनर्विचार का आग्रह कर रहे हैं और सरकार नहीं मानी तो हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट भी जा सकते हैं।
उमंग और व्यापार के इन पहलुओं के साथ एक और महत्वपूर्ण पहलू है सरकार के दखल का। इस बार कोविड का बडा कारण हो सकता है, लेकिन कल किसी और कारण से किसी परम्परा और मान्यता पर सरकारी दखल से प्रतिबंध लगाया जा सकता है और यह किसी भी धार्मिक या सामाजिक मान्यता के साथ हो सकता है। ऐसे में प्रश्न यह है कि क्या सरकार का यह दखल उचित है?
क्या हो सकता था
पटाखों के मामले में प्रतिबंध जैसा निर्णय करने से पहले सरकार को सामान्यजन की समझ पर भरोसा रखना चाहिए था। कोविड की भयावहता अब किसी को बताने की जरूरत नहीं है। पिछले सात माह में इस देश और प्रदेश की जनता ने जो कुछ भोगा है, उससे जनता में यह समझ तो विकसित हो गई है कि यह रोग कितना भयावह है और लापरवाही बरती गई तो और कितना भयावह हो सकता है। व्यापारियों को लगता है कि कोविड के कारण जो हालात बने हैं, उसके बाद अधिकतर लोगों के पास इतनी कमाई नहीं है कि वे पटाखों में फिजूलखर्च करें।
ऐसे में सरकार को प्रतिबंध लगाने के बजाए कुछ ऐसे विकल्प खोजने चाहिए थे जिससे लोग पटाखों का इस्तेमाल कम से कम करते। जैसे सरकार की ओर से शहरों, कस्बों में या गांवों में सार्वजनिक आतिशबाजी के कार्यक्रम रखे जा सकते थे, जिनमें एक खुले मैदान में कुछ समय के लिए आतिशबाजी कर दी जाती। सरकार खुद नहीं करती तो लोगों के लिए यह व्यवस्था की जा सकती थी कि उन्हें आतिशबाजी करनी है तो एक खुले मैदान में आकर ही करनी होगी। इसके अतिरिक्त जो अस्थाई लाइसेंस सरकार हर बार जारी करती है, उनकी संख्या को नियंत्रित किया जा सकता था। कुछ ऐसा जागरूकता अभियान भी चलाया जा सकता था जो यह बताता कि कोविड के इस समय में पटाखों का प्रदूषण कितना घातक हो सकता है।
कारण चाहे कितना भी गम्भीर हो, लेकिन सामाजिक मान्यताओं और परम्पराओं में सरकार का दखल एक सीमा तक ही सही है। शिक्षा, मीडिया और सोशल मीडिया का प्रसार इतना तो हो ही चुका है कुछ गलत हो रहा है तो उसे रोकने के मामले में सरकारें आमजन की समझ पर भरोसा कर सकती हैं।