दुष्कर्म जैसी घटनाओं पर भी दोहरा नजरिया आखिर क्यों?

दुष्कर्म जैसी घटनाओं पर भी दोहरा नजरिया आखिर क्यों?

डॉ. शुचि चौहान

 

दुष्कर्म जैसी घटनाओं पर भी दोहरा नजरिया आखिर क्यों?

जयपुर। उत्तर प्रदेश के हाथरस में बच्ची के साथ जो कुछ हुआ, उससे पूरा देश उद्वेलित है। तथाकथित महिला अधिकार और मानवाधिकार संगठनों के कार्यकर्ता देश भर में प्रदर्शन कर दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा खुल कर फूट रहा है। होना भी चाहिए, क्योंकि जो कुछ हुआ है, वह किसी भी तरह से सहन नहीं किया जा सकता है। दोषियों को कठोर से कठोर दण्ड मिलना चाहिए और इस घटना में पुलिस की भूमिका पर भी जो सवाल खड़े हो रहे हैं, उनकी भी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। लेकिन इसी क्रम में एक सवाल यह भी उठता है कि जो संगठन उत्तर प्रदेश में हुई निन्दनीय घटना पर इतने उग्र दिख रहे हैं, वे राजस्थान या देश के दूसरे राज्यों में हो रही ऐसी घटनाओं पर चुप्पी साधे क्यों बैठे हैं? अकेले राजस्थान की ही बात करें तो गुरुवार के अखबार बताते हैं कि जयपुर, अजमेर, सीकर और बारां एक साथ चार जगह लगभग ऐसी ही अमानवीय घटनाएं सामने आई हैं और यह स्थिति किसी एक दिन की नहीं है, बल्कि आए दिन कहीं ना कही ऐसी घटनाएं हो रही हैं जो समाज को शर्मसार करती हैं। लेकिन इन घटनाओं को लेकर जिस तरह का आवेश, उद्वेलन दिखना चाहिए, वह नहीं दिखता। आखिर क्यों ऐसा होता है कि उत्तर प्रदेश की घटना एक मुद्दा बन जाती है और राजस्थान में हो रही घटनाएं चर्चा का विषय भी नहीं बनतीं? सवाल उठता है दुष्कर्म जैसी घटनाओं पर भी दोहरा नजरिया आखिर क्यों?

राजस्थान में इस वर्ष महिलाओं के साथ होने वाले दुष्कमों के आंकडों पर दृष्टि डालें तो पुलिस विभाग की रिपोर्ट बताती है कि अगस्त 2020 तक राजस्थान में महिलाओं के साथ दुष्कर्म के 3498 मामले दर्ज हो चुके हैं यानि औसतन 14 घटनाएं हर दिन की सामने आई हैं। वहीं 2019 में यह आंकडा 4240 का था। उधर महिलाओं और बच्चियों के साथ छेडछाड़ के मामलों की बात करें तो अगस्त 2020 तक 5779 मामले दर्ज हुए हैं यानि औसतन 24 मामले प्रतिदिन सामने आए हैं। वर्ष 2019 में यह आंकडा 6175 का था। दुष्कर्म और छेडछाड़ के मामलों को जोड़ें तो आंकड़ा पिछले वर्ष अगस्त तक जहां 10 हजार से ज्यादा हो चुका था, वहीं इस बार भी नौ हजार से ऊपर जा चुका है और अभी चार माह के आंकड़े आने बाकी हैं।

सिर्फ आंकड़े ही नहीं राजस्थान में हो रही घटनाएं भी हाथरस में हुई घटना से कम भयावह नहीं हैं। पिछले दिनों अलवर में एक महिला जो अपने भांजे के साथ जा रही थी, उससे पांच लोगों ने हैवानियत की। उनमें से दो तो वयस्क भी नहीं थे। महिला को अपने भांजे के साथ रिश्ते बनाने पर मंजूर किया गया। यही नहीं बुधवार को राजधानी जयपुर के पास आमेर में स्कूल जा रही नाबालिग के साथ तीन लोगों ने सामूहिक दुष्कर्म किया। अजमेर में एक अनुसूचित वर्ग की महिला तीन युवकों के वहशीपन की शिकार हुई। यह महिला अपनी बीमार मां से मिलने जा रही थी। वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के निवास क्षेत्र सीकर में एक 15 साल की किशोरी के साथ दो युवकों ने अलग-अलग समय ज्यादती की तो बारां में एक पिता ने अपनी नाबालिग बेटियों के अपहरण और सामूहिक दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया है।

ये सिर्फ कुछ उदाहरण मात्र हैं और वे घटनाएं हैं जो किसी तरह उजागर हो गईं। ऐसी न जाने कितनी और घटनाएं होती होंगी जो सामने नहीं आ पाती होंगी। ये घटनाएं भी हाथरस में हुई घटना से कम भयानक नहीं है और समाज का ऐसा चेहरा पेश करती हैं जो शर्मिंदा होने को मजबूर करता है। आंकड़े इस बात को बयान करते हैं कि राजस्थान जनसंख्या के मामले में उत्तर प्रदेश से छोटा राज्य होने के बावजूद इस हैवानियत में कहीं पीछे नहीं है, फिर भी यहां हो रही घटनाओं के खिलाफ हमें कोई प्रदर्शन, कोई उद्वेलन, कोई गुस्सा नजर नहीं आता है। जो संगठन उत्तर प्रदेश की बेटी के लिए सड़क पर उतरते हैं, वे राजस्थान की महिलाओं और बेटियों के लिए सर्कल पर नजर नहीं आते। कोई बयान, कोई चर्चा इन घटनाओं की नहीं होती। सवाल उठता है कि ऐसा दोहरा नजरिया आखिर क्यों है?

समाज की महिलाओं और बच्चियों के साथ ही ऐसी घटनाएं चाहे कहीं भी हों, उनके खिलाफ आवाज उठाने मे भेदभाव नहीं होना चाहिए। समाज का गुस्सा सामने आना ही चाहिए, लेकिन इसे लेकर दोहरापन नजर नहीं आना चाहिए। घटनाओं को यदि राजनीतिक और अपनी एजेंडे से देखा जाएगा, उन्हें एक पक्षीय हवा देकर कृत्रिम मुददा बनाया जाएगा तो आपका एजेंडा भले ही पूरा हो जाए, लेकिन इस पशुपन की प्रवृति पर रोक नहीं लगेगी और आपकी मंशा पर भी प्रश्न खड़े होते रहेंगे।

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1 thought on “दुष्कर्म जैसी घटनाओं पर भी दोहरा नजरिया आखिर क्यों?

  1. Really it is abhorant.
    It shows administration failure in whole state.
    Action must be taken properly.
    It is not the subject of politics.

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