धर्म के उत्थान के साथ समदृष्टि की नीति से उन्नति करेगा भारत – डॉ. मोहन भागवत
धर्म के उत्थान के साथ समदृष्टि की नीति से उन्नति करेगा भारत – डॉ. मोहन भागवत
नई दिल्ली, 15 अप्रैल। श्रीजयकृष्णी प्रतिनिधि सभा पंजाब एवं फ़्रंटियर की स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर शताब्दी महोत्सव मनाया गया। इस अवसर पर करोलबाग़ नई दिल्ली में श्री साँवली मूर्ति मंदिर का शिलान्यास सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत एवं महानुभाव (जय कृष्णी) पंथ के पूजनीय महंतों एवं संतों की गरिमामय उपस्थिति में किया गया।
समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि हिन्दू समाज को संगठित करना है तो समता अनिवार्य बात है। सामाजिक समता और हिन्दू संगठन यह दो समानार्थी शब्द हैं। ऐसा हमारे तृतीय सरसंघचालक बाला साहब देवरस कहते थे।
सरसंघचालक ने बताया शान्ति से ही उन्नति होती है। हमें नीति के साथ उन्नति करनी है, जियें और दूसरों को भी जीने दें इसी को कहते हैं अहिंसा। भारत धर्म परायण देश है और धर्म के चार पैर होते हैं सत्य, करुणा, पवित्रता व तपस्चर्या। आज की शब्दावली में सत्य, अहिंसा, शान्ति, समता इसका आचरण होना चाहिए। 14 अप्रैल का समानता से सम्बन्ध है, समता से सम्बन्ध है। आज जिनकी जयंती सारे देश में मन रही है उनका भी सामाजिक विषमता समाप्त करने का ही जीवन कार्य रहा है।
डॉ. मोहन भागवत ने आगे बताया कि मंदिर हमें शांति प्रदान करते हैं, मंदिर का केन्द्र मूर्ति होती है। मूर्ति में हम अपने आराध्य जीवन के सारे तत्वों की प्रतिमूर्ति देखकर शांत मन से उनके जीवन तत्व को अपने व्यवहार में उतारने की शक्ति प्राप्त करते हैं। मनुष्य का स्वभाव अच्छाई की ओर जाता है। हमारी आंखों में अगर विषमता का विष चढ़ गया है तो उसको उतार दें। चक्रधर स्वामी ने क्या किया तत्व ज्ञान तो गीता का ही बताया, तत्व ज्ञान वही बताया लेकिन व्यवहार करके बताया। समाज में जिनको ज्ञान प्राप्त करने का अधिकारी नहीं माना जाता था उन्हें भी अपने साथ जोड़ा। उस समय यह इसीलिए सोचा गया क्योंकि संतों को जो समदृष्टि प्राप्त होती है वो सारे समाज को देने का बीड़ा उन्होंने उठाया।
उन्होंने कहा की समय आया है अपने देश में धर्म का उत्थान हो रहा है, यह वासुदेव श्रीकृष्ण की इच्छा है ऐसा योगी अरविंद ने कहा है। इसलिए धर्म के उत्थान के साथ भारत का उत्थान यह प्रक्रिया चल पड़ी है और यह पूर्णता की ओर जाएगी। यह पक्का है और इसलिए धर्म के कार्य की उन्नति के लिए जो जो साधन आप पाने का प्रयास करते हैं उसमें आप सफल हो रहे हैं। हम जुड़ते हैं तो हमारे लिए भाग्य है कि हम निमित्त बन रहे हैं। आचरण से धर्म बढ़ता है वो आचरण हम कर सकते हैं।