निगमों के बंटवारे और परिसीमन के खेल ने दिलाई कांग्रेस को आधी जीत
जयपुर। राजनीति का पुराना अनुभव है बांटों और राज करो। यह सबक प्रदेश के तीन बड़े शहरों जयपुर, जोधपुर और कोटा के छह नगर निगमों के चुनाव परिणाम में अक्षरशः सत्य सिद्ध होता दिखाई दे रहा है। प्रदेश में सत्तारूढ कांग्रेस ने इन तीनों शहरों के नगर निगमों का पहले बंटवारा किया और फिर परिसीमन कुछ इस तरह कराया कि कम से कम एक निगम में कुछ वार्ड उसके वोटबैंक मुस्लिम समुदाय के बाहुल्य वाले हो जाएं। कांग्रेस की यह रणनीति चुनाव में सफल हुई और कांग्रेस पहली बार आधे ही सही, लेकिन जयपुर में अपना नगर निगम बनाने जा रही है। हालांकि पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर पाई, लेकिन जो निर्दलीय जीत कर आए हैं, वे कांग्रेस के अलावा कहीं जाएंगे नहीं, इसलिए बोर्ड बनना तय है। जयपुर के अलावा कोटा उत्तर और जोधपुर उत्तर में भी कांग्रेस के बोर्ड बनने तय हैं। इन दोनों निगमों में भी मुस्लिम समुदाय की बहुलता वाले वार्डों ने कांग्रेस की जीत में अहम भूमिका अदा की है। कांग्रेस की रणनीति का ही परिणाम रहा कि शहरी वोटर में अपनी मजबूत पकड़ मानने वाली भाजपा सिर्फ जयपुर ग्रेटर और जोधपुर दक्षिण में बहुमत हासिल कर पाई। कोटा दक्षिण जहां भाजपा अपनी मजबूत पकड़ मान कर चल रही थी, वहां कांग्रेस ने भाजपा के बराबर सीटें हासिल कर लीं।
इन तीनों शहरों के छह नगर निगमों का चुनाव प्रदेश का पहला ऐसा चुनाव माना जा सकता है जिसमें वार्डों की सीमा तय करने के लिए किया गया परिसीमन बहुत हद तक मुस्लिम और गैर मुस्लिम आबादी की बसावट को ध्यान में रख कर किया गया। तीनों शहरों में कुछ वार्ड तो ऐसे है जहां बहुसंख्यक वोट नहीं के बराबर है। इस परिसीमन का ही नतीजा है कि 560 वार्डों के लिए हुए चुनाव में 84 पार्षद मुस्लिम समुदाय से चुन कर आए हैं। इनमें जयपुर में 34 जिनमें से जयपुर ग्रेटर में चार और हैरिटेज में 30, कोटा में 23, जिनमें कोटा उत्तर में 12 और कोटा दक्षिण में 11 तथा जोधपुर में 27 जिनमें जोधपुर उत्तर में 24 और दक्षिण में तीन पार्षद मुस्लिम समुदाय के हैं। मुस्लिम समुदाय को स्थानीय स्तर पर इतनी बड़ी राजनीतिक पहचान सम्भवतः पहली बार मिली है।
दरअसल तीनों ही शहरों में बसावट कुछ इस तरह की है कि पुराने शहर जैसे जयपुर या जोधपुर का परकोटे का इलाका ऐसा है जहां मुस्लिम समुदाय की बसावट ज्यादा है। कुछ ऐसा ही कोटा में है। यहां भी कोटा उत्तर का इलाका पुराना शहर है और मुस्लिम आबादी यहां ज्यादा है। वहीं तीनों शहरों के दक्षिणी इलाके नई बसावट वाले हैं। इन इलाकों में पुराने शहर और अन्य शहरों और आसपास के गांवों से पलायन कर आए लोग अधिक संख्या में हैं और ज्यादातर गैर मुस्लिम आबादी है। कांग्रेस सरकार ने इस बसावट के इस पैटर्न को ही अपनी जीत का आधार बनाया। इसके साथ ही कांग्रेस ने मुस्लिम समुदाय में भाजपा के तीव्र विरोध की भावना को भुनाया और पहली बार इन तीन बड़े शहरों में बड़ी जीत हासिल कर ली। यह तथ्य इस बात से भी साबित होता है कि जहां भी मुस्लिम समुदाय के वार्ड कम थे, वहां भाजपा स्पष्ट बहुमत हासिल कर गई जैसे जयपुर ग्रेटर और जोधपुर दक्षिण। लेकिन कोटा दक्षिण में जहां मुस्लिम बाहुल्य वाले वार्ड कोटा उत्तर के बराबर ही थे, वहां कांग्रेस और भाजपा बराबरी पर रहे। मुस्लिम समुदाय ने इस हद तक कांग्रेस के पक्ष में एकतरफा वोट डाला है कि जयपुर हेरिटेज में कांग्रेस की 47 सीटों में से 21 मुस्लिम समुदाय की हैं, यानी इन सीटों को कम कर दिया जाए तो कांग्रेस के पास सिर्फ 26 सीट बचती है। वहीं पूरे जयपुर की बात करें तो कांग्रेस को 250 में से कुल 96 सीटें मिली है। इनमें से हैरिटेज की 21 और ग्रेटर की चार सीट यानी कुल 25 सीट कम कर दी जाए तो आंकडा सिर्फ 71 पर आकर ठहर जाता है। यही स्थिति जोधपुर और कोटा में है।
कांग्रेस लम्बे समय से इन शहरी इलाकों में अपनी पैठ जमाने की कोशिश में थी और निगमों के बंटवारे तथा परिसीमन के खेल ने उसे यह मौका दे दिया। भविष्य में इसके गहरे सामाजिक और राजनीतिक परिणाम सामने आ सकते हैं। अभी जो हुआ सो हुआ लेकिन बसावट के आधार पर किए गए इस परिसीमन की काट भाजपा को ढूंढनी ही पड़ेगी। मुस्लिम बहुल वार्डों में भाजपा ने इस बार मुस्लिम समुदाय के लोगों को टिकट देकर एक प्रयास किया था, लेकिन यह प्रयास काफी नहीं है। पार्टी को मुस्लिम समुदाय में अपना संगठन मजबूत करना पड़ेगा। यही नहीं यदि पार्टी अगले विधानसभा चुनाव में या जब भी सत्ता में आती है तो उसे बसावट के आधार पर हुए इस परिसीमन को रद्द कर नए सिरे से परिसीमन करना होगा। इन शहरों में लोग बरसों से मिलजुल कर रहते आए हैं। बसावट के आधार पर किया गया परिसीमन कांग्रेस के राजनीतिक हितों की पूर्ति भले ही कर दे, लेकिन सामाजिक स्तर पर दोनों समुदायों के बीच खाई को बढ़ाने वाला साबित हो सकता है।
यह सही है कि यदि भाजपा को सत्ता में आना है तो मुस्लिमों को भी साथ लेकर उनका विश्वास जीतना होगा। कूटनीतिक रणनीति अपनानी होगी।