नमन है उन रामभक्तों को, जिनके बलिदान से प्रशस्त हुई मंदिर निर्माण की राह

492 साल के संघर्ष के बाद भव्य मंदिर में विराजेंगे रामलला

राघवेन्द्र सिंह । जयपुर

करीब 350 वर्षों तक मुगल आक्रांताओं से लोमहर्षक संघर्ष व वर्षों तक न्यायालय में सुनवाई दर सुनवाई के बाद 9 नवम्बर शनिवार को उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद देश ही नहीं विदेशों में भी हिन्दू समाज में बेतहाशा खुशी का माहौल देखने को मिल रहा है तथा न्यायालय व अधिवक्ताओं को प्रसन्नचित मन से आभार व्यक्त करते देखा जा रहा है।
जन्मभूमि की रक्षा के लिए मुगलों से हुए संघर्षों में लाखों की संख्या में रामभक्तों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। लेकिन राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक जन्मभूमि मंदिर पर बनी मस्जिद हिन्दू समाज को आंखों ही आंखों खटक रही थी, जिसे 1990 व 1992 के आंदोलनों में श्रीराम भक्तों ने तहस-नहस कर उस कलंक को धो दिया तथा वहां अस्थाई टैण्ट में रामलला को प्रतिष्ठित कर दिया। मंदिर आंदोलन में राजस्थान के भी कई रामभक्त अपना अविस्मरणीय बलिदान देकर अमर हुए। आज नमन कीजिये उन श्रीराम भक्तों को, जिन्हें कारसेवा के दौरान तत्कालीन मुलायम सिंह की सरकार ने गोलियों से भुनवा दिया था। उन सभी हुतात्माओं को भी नमन है, जिन्होंने श्रीराम मंदिर आन्दोलन में न सिर्फ आगे बढ़कर भाग लिया था बल्कि अपने प्राणों तक की आहुति दी थी। सही मायने में अब उनकी आत्मा को शांति मिली होगी।

अविस्मरणीय रहेगा इनका बलिदान
श्रीराम मंदिर आन्दोलन में ऐसे ही दो कारसेवक रामभक्त थे मूलतः बीकानेर के निवासी कोठारी बंधु रामकुमार व शरद कोठारी। इसके साथ ही जयपुर के रामावतार सिंहल, जोधपुर के प्रो. महेन्द्रनाथ अरोडा व जोधपुर के ही मथानिया निवासी सेठाराम परमार ने अपना बलिदान दिया। इनके साथ ही उदयपुर जिले के सीयाणा निवासी रामसिंह चूडावत, अलवर के मातादीन शर्मा व जोधपुर के शांतिलाल समेत राजस्थान के सैकडों कारसेवकों ने आंदोलन में भागीदारी निभाकर बहादुरी की मिशाल कायम की। आज उन सभी रामभक्तों का बलिदान सार्थक हुआ है। हो सकता है कि कूल ड्यूड टाइप के लोग बलिदानी रामभक्तों का नाम न जानते हों लेकिन जिसके अंदर भी हिंदुत्व की लौ ज्वाला बनकर दौड़ती है वह मरूधरा के इन बलिदानियों को अवश्य जानता होगा। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में हुई फायरिंग में 5 कारसेवकों की जान चली गई, जबकि वास्तविक संख्या इससे ज्यादा भी बताई जाती है।

मरूधरा के कारसेवकों का नेतृत्व किया
जोधपुर निवासी प्रोफेसर महेन्द्रनाथ अरोडा ने राजस्थान से गए कारसेवकों के एक दल का नेतृत्व किया। जोधपुर से रवाना होकर पहुंचे कारसेवकों ने ‘‘रामलला हम आएं हैं, मंदिर यहीं बनाएंगे’’ के नारों के साथ सरयू के तट तक पहुंचे। 2 नवम्बर को प्रो. अरोडा के नेतृत्व में राजस्थान के कारसेवक जन्मभूमि की ओर बढ रहे थे कि पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। अचानक भगदड मच गई, कारसेवक गलियों में छिपने के लिए दौड पडे, इसी दौरान अरोडा के पेट में गोली लगी तथा कई घंटे तक घायल अवस्था में तडफते रहे। जहां कई घंटे बाद उपचार मिलने के कारण उन्होंने दम तोड दिया।

भगतसिंह जैसे लोग घर से पूछकर नहीं आते
जोधपुर जिले के मथानिया निवासी 22 साल के नवयुवक सेठाराम परिहार ने कारसेवा में जाने के लिए अपना नाम लिखवा दिया था। वह अन्य साथियों के साथ जोधपुर पहुंचा तो उनकी मासूमियत देखकर अधिकारियों ने पूछा कि घर से पूछकर आये हो क्या। सेठाराम ने जवाब दिया कि भगतसिंह जैसे लोग से पूछकर नहीं आते। आज के तथाकथित बुद्धिजीवी अपने बौद्धिक अजीर्ण पर गर्व करते होंगे, लेकिन सेठाराम के उत्तर की दृष्टि से वे सदा विपन्न ही रहेंगे। सेठाराम हिन्दुत्व की उर्जा व राम की भक्ति से ओतप्रोत थे। जन्मभूमि की ओर कूच करने के दौरान वह पुलिस द्वारा दागे जा रहे आंसू गैस के गोलों को उठाकर नाली में फेंककर नाकाम करने लगा था। इससे तिलमिलाए पुलिस के दो मुलायमी जवानों ने सेठाराम को पकडकर उसके मुंह में बंदूक की नाल ठूंसकर ट्रिगर दबा दिया। ऐसे बहादुर सेठाराम ने अयोध्या की पुण्यभूमि पर प्रभु श्रीराम के चरणों में खिले हुए पुष्प की भांति अपने को समर्पित कर दिया।

गुंबद पर सबसे पहले फहराया भगवा
मूलतः बीकानेर के निवासी राम कोठारी तथा शरद कोठारी हिंदुत्व की वो महानतम विभूति हैं जिन्होंने अयोध्या में 30 अक्टूबर 1990 को बाबरी पर भगवा फहराया था। कोठारी बंधुओं के इस शौर्य को यूपी के तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव बर्दाश्त नहीं कर पाए थे तथा उन्होंने कारसेवकों पर गोलियां चलवा दी थी। इसी गोलीबारी में राम कोठारी तथा शरद कोठारी दोनों भाई बलिदान हो गये थे। 4 नवंबर 1990 को शरद और रामकुमार कोठारी का सरयू के घाट पर अंतिम संस्कार किया गया।

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