नागालैंड में अशांति फैलाने वाले कौन लोग हैं?
प्रो. रसाल सिंह
नागालैंड राज्य दक्षिण में मणिपुर, उत्तर और पश्चिम में असम और पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश की सीमाओं से घिरा हुआ बहुत ही रमरणीय पर्वतीय तथा मैदानी क्षेत्र है। सदियों से इस क्षेत्र में अंगामी, सेमा, तन्ग्खुल, आओ, चाखेसांग, चांग, खिआमनीउंगन, कुकी, कोन्याक, लोथा, फौम, पोचुरी, रेंग्मा, संगताम, सुमी, यिमसचुंगरू और ज़ेलिआंग आदि अनेक जन-समुदाय अपनी-अपनी भाषा, वेशभूषा, भोजन, पर्व, परंपरा आदि अनेक सांस्कृतिक एवं भौगोलिक विविधताओं और विशेषताओं के बावजूद सौहार्दपूर्वक रहते आए हैं। इन समुदायों के तराई में रहने वाले अहोम राजवंश के साथ सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध थे। रोटी-बेटी का व्यवहार था। अहोम राजाओं की सेना में नागा वीर सम्मिलित थे। उन्नत और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत वाले इन समुदायों को अंग्रेजों द्वारा सुनियोजित ढंग से असभ्य, जंगली, क्रूर एवं अत्यंत हिंसक जनजाति की पहचान दी गयी। नागाओं के अद्भुत पराक्रम से भयभीत होकर जनमानस में उनके प्रति घृणा और भय का भाव पैदा करने के लिए अंग्रेजों ने उन्हें ‘सरकटिया’ (Head-Hunters) जनजाति तक कह डाला।
भारत से अलगाव की भावना अंग्रेजों की विभाजन और धर्म-परिवर्तन (ईसाईकरण) की नीति का प्रतिफलन है। अंग्रेजों द्वारा पोषित औपनिवेशिक नीति ही आज तक नागालैंड जैसे सुन्दर और सुरम्य क्षेत्र में असंतोष, अशांति और उग्रवाद का बीज कारण है। असफल रही क्राउन कॉलोनी योजना अंग्रेजों की कुटिल अंतरराष्ट्रीय राजनीति का परिचायक है। अंग्रेजों ने नागा जन-समुदाय में भारत के प्रति अलगाववाद, असंतोष और उग्रता का गहन बीजारोपण किया।
सन् 1950 में NNC का अध्यक्ष बनने के बाद आतंकवादी नेता तथा ब्रिटिश नागरिक ए जेड फिज़ो ने स्वतंत्र बृहत्तर नागालैंड अथवा नागालिम की घोषणा कर दी थी। बाद में इस संगठन ने अलगाववाद और हिंसा का चरमपंथी रास्ता अपनाया। परिणामस्वरूप हिंसा-प्रतिहिंसा की असंख्य घटनाओं में निर्दोष नागा समुदाय, NNC और भारतीय सेना के हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। अमेरिका, चीन और पाकिस्तान आदि देशों ने भारत में अशांति और अस्थिरता उत्पन्न करने के उद्देश्य से इन हिंसक नागा विद्रोहियों को आर्थिक और शस्त्रास्त्र आदि का भरपूर सहयोग दिया।
डॉ. इम्कोन्ग्लिबा आओ, टी सिक्री जैसे शांतिप्रिय तथा नागा लोगों के सच्चे हितैषी नेता फिजो से सहमत नहीं थे। वह 1952 में NNC – R की स्थापना कर शांततापूर्ण समाधान के लिए प्रयासरत रहे। उन्हीं के प्रयासों के कारण 1956 से 1958 तक 3 नागा पीपुल्स कन्वेंशन आयोजित किये गए। भारत सरकर के साथ मिलकर इस समस्या का किस प्रकार समाधान किया जा सकता है, इस पर चर्चा हुई। अंततः सन् 1960 में 16 पॉइंट एग्रीमेंट के ऊपर हस्ताक्षर हुए। 1962 में संसद में नागालैंड राज्य अधिनियम पास हुआ और 1 दिसंबर, 1963 को नागालैंड विशेष अधिकारों के साथ भारत का 16वां राज्य बन गया। नागालैंड की स्थापना में डॉ. इम्कोन्ग्लिबा आओ जैसे अनेक शांतिप्रिय नेताओं की उल्लेखनीय भूमिका रही थी। टी सिकरी तथा डॉ. इम्कोन्ग्लिबा आओ को फिजो ने मरवा डाला। आंतकवादियों पर दबाव बढ़ने की स्थिति में फ़ीजो, ब्रिटेन मूल के रेव्हरेंट माइकल स्कॉट और ब्रिटेन सरकार की मदद से भारत से पलायन कर पूर्वी पकिस्तान भाग गया और वहां से जून 1956 में लन्दन चला गया। उसके बाद वह कभी भारत नहीं लौटा। 1990 में लन्दन में ही उसकी मृत्यु हुई।
फ़ीजो के ब्रिटेन भाग जाने के बाद, वहीं से उसने 1965 में मुइबा को सचिव बना दिया। मुइवा ने भारत सरकार के साथ 1966 में होने वाले समझौते को विफल कर दिया और पुन: नागा समाज को अपनी महत्वाकांक्षा के लिए आतंकवाद की आग में झोंक दिया। नवम्बर 1975 को कुछ नागा नेताओं ने (जिसमें फिजो का भाई भी था) “शिलॉंग समझौते” के तहत भारत सरकार द्वारा प्रदत्त आम क्षमादान की पेशकश स्वीकार कर ली। परन्तु कुछ ऐसे चरमपंथी भी थे, जिन्होंने समर्पण करने से इनकार कर दिया। इनमें खापलांग, आइजैक और मुइबा सर्वप्रमुख थे। इन लोगों ने सन् 1980 में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालिम (NSCN) का गठन कर लिया। इस संगठन ने “शिलॉंग समझौते” को ‘नागा आन्दोलन के साथ छल’ और ‘नागा-संघर्ष की नीलामी’ करार देकर नागा समाज का बुद्धिभेद करने का प्रयास किया। आपसी विरोध के कारण सन् 1988 में एन.एस.सी.एन. में विभाजन हो गया और विभाजित संगठन एन.एस.सी.एन. (आईएम) में आइजैक चिशी स्वू अध्यक्ष और थुंगालेंग मुइवा महासचिव बन बैठे। नागालैंड में तब से लेकर आज तक एन.एस.सी.एन. (आईएम) और उसका स्वयंभू कमांडर-इन-चीफ थुंगालेंग मुइवा अलगाववादी हिंसा, अराजकता और असंतोष की जड़ है।
(लेखक केन्द्रीय विश्वविद्यालय जम्मू में प्रोफ़ेसर और अधिष्ठाता, छात्र कल्याण हैं)