स्वस्थ रहने के लिये नित्य योगासन करें
डॉ. प्रहलाद कुमार गुप्ता
प्राचीन काल से एक कहावत है पहला सुख निरोगी काया। यह कहावत आज भी यथावत है। यहां निरोगी काया के अंतर्गत केवल ये हाड़–मांस का स्वस्थ शरीर ही नहीं है, अपितु स्वस्थ मस्तिष्क, स्वस्थ आत्मा, स्वस्थ मन, स्वस्थ बुद्धि आदि भी सम्मिलित हैं।
तन पवित्र सेवा किये, धन पवित्र कर दान। मन पवित्र हर भजन से, होतत्रिविध कल्याण। अर्थात सेवा करने से शरीर, दान करने से धन और ईश्वरपर विश्वास करने से मन की शुद्धि होती है।
हमारे शरीर की सेवा करना भी हमारा कर्तव्य है। इसके स्वस्थ वक्रियाशील रहने पर ही हम सारे सांसारिक कार्य कर सकते हैं।
योगासन एक ऐसी विद्या है जो हमें अपने शरीर को स्वस्थ व मन को संतुष्ट रखने में सहायता करती है। ईश्वर ने प्रत्येक प्राणी का शरीर इस प्रकार का बनाया है कि यह अपनी चिकित्सा स्वयं ही कर लेता है। हम नित्य प्रति योग करके सदैव स्वस्थ रह सकते हैं। हमें किसी चिकित्सक या दवाई की आवश्यकता नहीं होगी। वनों में जंगली जानवर, पशु, पक्षी स्वस्थ रहते हैं जबकि अनेक प्रकार की दवाईयां लेते हुए भी मनुष्य बीमार रहता है। प्रसिद्ध कवि रहीम ने भी कहा हैः–
रहिमन बहु भेषज करत, व्याधि न छाड़े साथ।
खग मृग बसत अरोग्य वन, हरि अनाथ के नाथ।।
स्वस्थ होने का अर्थ है स्वयं में स्थित होना। योग का अर्थ है जुड़ना। स्वास्थ्य की समस्त क्रियाएं शरीर के अंदर होती हैं जबकि हम बाहर की ओर देखते हैं। अपनी कमियां देखने के बजाय बाहर के वातावरण को दोष देते हैं। जुकाम, खांसी, बुखार होने पर सर्दी, गर्मी को दोष देते हैं। योग हमें अंदर की ओर ले जाता है।
रोग का मुख्य कारण शरीर में विजातीय द्रव्यों, जिन्हें आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में बैक्टीरिया, विषाणु आदि कहते हैं, का संग्रहीत होना है। यदि हम अपने शरीर का ध्यान रखें और विजातीय द्रव्यों को शरीर में न रुकने दें, तो हम कभी रोगी नहीं होंगे। इन विजातीय द्रव्यों को बाहर निकालने में योगासान बहुत सहयोगी होते हैं। यद्यपि रोग होने पर, यदि आवश्यक हो तो उसे ठीक करने के लिये दवाई ले लेनी चाहिये किन्तु शरीर बीमार ही न पड़े, इसके लिये तो योगासन करना ही चाहिये। दवाई भी तभी काम करेगी जब शरीर ठीक होगा। योगासन हमें शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में पूर्ण रूप से सक्षम हैं।
योगासन से लाभः
- हमारे फेफड़ों के अंदर की दीवारों की बनावट इस प्रकार की होती है जैसे कि करोड़ों पेड़ लगे हुए हैं। प्रत्येक पेड़ के तने की बनावट नली की तरह होती है, जिसमें शाखाऐं भी नलियां होती हैं और पत्तों के स्थान पर गुब्बारे जैसी कोशिकाएं होती हैं, जिनमें रक्त भरा होता है। फेफड़ों के फूलने पर हम जो ऑक्सीजन युक्त श्वांस लेते हैं वह पहले फेफड़ों में जाती है। उसके बाद पेड़नुमा नलियों में होते हुए उन कोशिकाओं में जाती है। कोशिकाएं ऑक्सीजन का अवशोषण करके रक्त को शुद्ध करती हैं तथा रक्त के विकारों को कार्बनडाईऑक्साइड व अन्य गैसों के रूप में बाहर निकाल देती हैं। जब हमारे फेफड़े सिकुड़ते हैं तो ये विकारयुक्त गैसें शरीर के बाहर निकल जाती हैं।
- यदि हम गहरी और लम्बी श्वांस लेंगे और गहरी व लम्बी श्वांस ही बाहर निकालेंगे तो यह क्रिया ठीक प्रकार से संचालित होगी। किन्तु यदि हमने उचित प्रकार से श्वसन क्रिया नहीं की, तो हमारे फेफड़ों की अंतिम कोशिकाओं तक ऑक्सीजन नहीं पहुंचेगी और न ही विकारयुक्त कार्बनडाईऑक्साइड व अन्य गैसें बाहर निकल पायेंगी। ऐसी स्थिति में फेफड़ों की वे कोशिकाएं जिनमें ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है, क्रियाहीन होकर मर जाती हैं तथा अन्दर ही अन्दर सड़ जाती हैं और क्षय रोग, दमा जैसे श्वांस के रोग हो जाते हैं।
- योगासनों से फेफड़ों की मांसपेशियों में लचक आ जाती है जिससे उनके फैलने और सिकुड़ने की शक्ति बढ़ जाती है।
- योगासन व प्राणायाम से हमारी रक्त नलिकाएं साफ हो जाती हैं, फेंफड़ों में श्वांस भरने व निकालने की क्षमता बढ़ जाती है। जिससे शरीर को पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन मिलती है। कोई विकार होते हैं तो वे कार्बनडाईऑक्साइड के रूप में बाहर निकल जाते हैं।
- जितनी अधिक आक्सीजन हम ले पायेंगे उतना ही अधिक रक्त विकारमुक्त होकर शुद्ध होगा, उतना अधिक ही रक्त संचार की गति बढ़ेगी और हृदय से शरीर के अन्य भागों में रक्त पहुंचने में भी आसानी होगी।
- योगासनों से हमारे शरीर की सफाई होती है। हमारे शरीर में खाने की जगह केवल एक मुंह ही है जबकि अपशिष्ट व विकारों को निकालने के लिये चार अंग क्रमशः नाक, त्वचा, लिंग व गुदा हैं। योगासनों से शरीर में विकार नहीं रुकते हैं और शरीर स्वच्छ, स्वस्थ व लचीला रहता है तथा मन शांत रहता है।
- योगासनों से हमारा पाचन संस्थान भी स्वस्थ रहता है। पाचक रस पूरे निकलते हैं जिससे भूख लगती है। ग्रंथियां सक्रिय होती हैं, खाया हुआ खाना पचता है जिससे शरीर को पर्याप्त शक्ति मिलती है, जीवनी शक्ति बढ़ती है जिससे रोग नहीं हो पाते हैं।
- योगासन से रीढ़ की हड्डी में लचक पैदा होती है। रीढ़ की हड्डी (मेरुदण्ड) में सुषुम्ना नामक नाड़ी (स्पाईनल कॉर्ड) होती है। सुषुम्ना नाड़ीमंण्डल का वह भाग है जो कपाल के पीछे महाछिद्र से प्रारम्भ होकर मेरुदण्ड के साथ उसके अंतिम मोहरे से ऊपर वाले मोहरे तक जाती है। यह बेलनाकार और रस्सी के समान होती है। इसके दोनों ओर 31 जोड़ी नाड़ियां निकलती हैं। इसके बांये भाग को इड़ा नाड़ी मण्डल तथा दांये भाग को पिंगला नाड़ी मण्डल कहते हैं। इनका सीधा सम्बन्ध नाक की इड़ा (चन्द्र नाड़ी) और पिंगला (सूर्य नाड़ी) से होता है। सुषुम्ना नाड़ी से निकले हुए नाड़ी सूत्र टेलीफोन के तारों की तरह काम करते हैं। मस्तिष्क इन्हीं नाड़ी सूत्रों द्वारा सारे शरीर को संचालित व नियंत्रित करता है। इस प्रकार रीढ़ की हड्डी व सुषुम्ना नाड़ी हमारे शरीर के संचालक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं जिन्हें व्यायामव योगासनों के द्वारा ठीक प्रकार से सक्रिय रखा जा सकता है।
- योगासन व प्राणायाम से शरीर की कोशिकाएं स्वस्थ्य रहती हैं, विकारों को शरीर से बाहर करने की अद्भुत शक्ति प्राप्त होती है, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। हमारी नाड़ियां सक्रिय व शांत होती हैं, जिससे मन स्थिर होता है और आत्मविश्वास बढ़ता है, आयु लम्बी होती है।