देशभक्ति और शिक्षा की प्रतिमूर्ति थे पंडित मदन मोहन मालवीय

देशभक्ति और शिक्षा के प्रतिमूर्ति थे पंडित मदन मोहन मालवीय

वीरेन्द्र पाण्डेय

देशभक्ति और शिक्षा के प्रतिमूर्ति थे पंडित मदन मोहन मालवीय देशभक्ति की प्रतिमूर्ति पंडित मदन मोहन मालवीय 

ईश्वर भक्ति और देशभक्ति, पंडित मदन मोहन मालवीय के जीवन के दो मूल मंत्र थे। इन दोनों का उत्कृष्ट संश्लेषण, ईश्वर भक्ति के देश भक्ति में अवतरण तथा देश भक्ति की ईश्वर भक्ति में परिपक्वता का विशिष्ट सद्गुण था। महामना का विश्वास था कि मनुष्य के पशुत्व को ईश्वरत्व में परिणत करना ही धर्म है। महामना सच्चे अर्थों में तपस्वी थे। सात्विक तप के सारे पक्ष उनमें विद्यमान थे।

श्रीमद्भगवतगीता में वर्णित कायिक, वाचिक और मानसिक तप के वे साधक थे। काम-क्रोध-लोभ-मोह से स्वयं को बचाना, सदा शुद्ध संकल्पयुक्त रहना, विषयवृत्ति पर विजय प्राप्त करना, व्यवहार में छल-कपट से अपने को दूर रखना उनका मानसिक तप था। असत्य, दुःखदायी, अप्रिय और खोटे वचनों का त्याग; तथा प्रिय, सत्य, मधुर शब्दों का प्रयोग उनका वाचिक तप था। दूसरों की सहायता करना, समाज की सेवा करना, देश और जाति के लिए अपने शरीर को होने वाले कष्टों की परवाह न करना उनका शारीरिक तप था।

महामना प्रखर राष्ट्रवादी और उच्चकोटि के देशभक्त थे। देश की स्वतंत्रता, राष्ट्र के गौरव की वृद्धि, तथा जनता की सर्वांगीण उन्नति उनकी देश सेवा के मुख्य लक्ष्य थे। वे जाति, भाषा, सम्प्रदाय, क्षेत्र के आधार पर भारतीयों के मध्य बढ़ते दुराव को समाप्त कर भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र और संप्रभु देश के रूप में देखना चाहते थे।

महामना का कार्यक्षेत्र अत्यन्त ही विस्तृत और व्यापक था। समाजसेवा का शायद ही ऐसा कोई पक्ष हो जो उनके कार्य परिधि में न आया हो। ज्ञान-विज्ञान की विभिन्न शाखाओं की वृद्धि, शिक्षा का विस्तार, मल्ल-शालाओं का उद्घाटन, वंचितों के कष्टों का निवारण, हरिजनों का उत्थान, लोकतांत्रिक मर्यादाओं की प्रतिष्ठा, राष्ट्रीयता की भावना का विकास, प्रगतिशील सिद्धान्तों का प्रतिपादन, देश-काल के अनुकूल संस्कृति का विकास आदि सभी क्षेत्रों में उनका योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

महामना के आदर्शवादी विचारक एवं शिक्षाशास्त्री होने में कोई सन्देह नहीं है। वे शिक्षा को अध्यात्म से अलग नहीं करते थे। महामना मालवीय आधुनिक विश्व में एक महान शिक्षा शास्त्री के रूप में स्थापित हैं, क्योंकि उन्होंने तत्कालीन समाज की वस्तुस्थिति पर विस्तार पूर्वक विचार किया, आवश्यकताओं को पहचाना, शिक्षा सिद्धांतों का पुनः विश्लेषण किया एवं उनको सामाजिक संदर्भ में नवीन रूप प्रदान किया। अतः मानव प्रकृति की मूल संकल्पना को पहचान कर उसे व्यवहारिक रूप दिया। उनके कार्य काशी हिंदू विश्वविद्यालय के रूप में प्रभावशाली रूप से प्रकट हुए । अतः नि:संदेह महामना मालवीय एक महान शिक्षा शास्त्री हैं। उनकी शैक्षिक दृष्टि निम्नवत है।

महामना शिक्षा, शिक्षक, छात्र –छात्राओं तथा हिंदी के प्रति एक गहन एवं व्यापक दृष्टि रखते थे।

शैक्षणिक संस्थान
आधुनिक विश्व के संदर्भ में किसी महान शिक्षा शास्त्री के विचारों के अनुरूप एक शैक्षणिक संस्थान के रूप में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना एक अनूठी एवं अद्भुत घटना है। संभवत: महामना के माध्यम से किसी आध्यात्मिक शक्ति का प्रकटीकरण था। वरन इतना विशाल जनसमर्थन, राजा, रंक, फकीर, ज्ञानी, अज्ञानी धार्मिक, सांसारिक, स्थानीय, राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय, महिला, पुरुष आदि सभी ने सभी प्रकार से पूर्ण रुप से समर्थन दिया। प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. शांति स्वरूप भटनागर के शब्दों में यह मधुर मनोहर अतीव सुंदर है। महामना की कल्पना के अनुकूल प्राचीन गुरुकुल की भांति यहां का प्राकृतिक वातावरण अति मनोरम है।

राष्ट्रीय शिक्षा की नीति
पंडित मदन मोहन मालवीय पूरे भारत के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के पक्षधर थे। इनका निर्माण आचार्यों की सभा एवं दूसरे राष्ट्रों के अनुभवों के आधार पर किया जाना चाहिए। वह अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा, स्त्रियों की शिक्षा के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम एवं सार्वजनिक एवं जीविकोपार्जन सुनिश्चित कराने वाली शिक्षा प्रणाली के पक्षधर थे।

शिक्षक
शिक्षकों के संदर्भ में महामना का मानना था कि वह सदाचारी रहेंगे, देश सेवा के साथ-साथ धार्मिक जीवन व्यतीत करेंगे। प्राचीन गुरुकुलों की भांति कुलपति विद्यार्थियों के शारीरिक पोषण के साथ-साथ मानसिक पोषण करें एवं सदाचार और शिक्षा देकर जीवन उज्जवल करें। महामना चाहते थे कि धार्मिक विषयों पर गुरुकुलों में प्रमाणिक व्याख्यान एवं धर्म संबंधी कथाओं के पाठ के अवसर पर अध्यापक उपस्थित रहें जिससे उनमें धार्मिक तथा आध्यात्मिक भाव का संचार हो।

विद्यार्थी
महामना मालवीय चाहते थे कि सदाचारी, देश सेवा व धार्मिक जीवन व्यतीत करने वाले अध्यापकों की तरह हमारे छात्र और छात्राएं जीवन उज्जवल करने की प्रतिज्ञा करें। विश्वविद्यालयों में निवास करते हुए व्यायाम करके शरीर को दृढ़ बनाएं। पहले स्वास्थ्य सुधारें फिर विद्या पढ़ें।

हिंदी
महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के हिंदी प्रेम और उसको विश्वस्तरीय बनाने के लिए जो प्रयत्न किये वह अभिनंदनीय है। उनके मन का कण-कण हिंदी में रमता था। उसी की अभिवृद्धि के लिए उन्होंने जीवन भर प्रयास किया।

महामना उच्च कोटि के जननायक तथा राष्ट्र निर्माता थे। राष्ट्र के नेताओं में उनका बहुत ऊंचा स्थान था। गांधी जी का कहना था कि मालवीय जी के साथ देश भक्ति में कौन मुकाबला कर सकता है? राजश्री पुरुषोत्तमदास टंडन के विचार में “मालवीय जी आदर्श पुरुष थे, जिन्होंने सामाजिक और शैक्षिक दोनों क्षेत्रों में युग परिवर्तक और प्रवर्तक का काम किया”। प्रिंसिपल दीवान चंद के विचार में “मालवीय जी पवित्र आत्मा थे। उनके व्यक्तित्व की मनोहरता का उनके समकालीन लोगों पर उदांत प्रभाव था”। देशभक्त वैज्ञानिक सर्व प्रफुल्ल चंद्र राय का विचार था कि गांधीजी के बाद कोई दूसरा ऐसा व्यक्ति मिलना कठिन है, जिसने इतना अधिक त्याग किया हो और बहुमुखी कार्यों का ऐसा प्रमाण प्रस्तुत किया हो जैसा मालवीय जी ने प्रस्तुत किया”। अतः निसंदेह बहुगुण संपन्न महात्मा तथा सात्विक संपन्न महामानव थे पंडित मदन मोहन मालवीय।

(लेखक मालवीय राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान में कार्यरत हैं)

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