भारतीय संस्कृति में ‘पद्म’ का स्थान अनूठा है। देवी-देवताओं का प्रिय पुष्प, आध्यात्मिक उन्नति का परिचायक तथा सहस्रार में स्थित सहस्र दल कमल के रूप में चेतना की सर्वोच्च अवस्था का प्रतीक है पद्म। शायद यही कारण था कि जब 1954 में नागरिक सम्मान पुरस्कारों की स्थापना की गई प्रतीक चिह्न के रूप में पद्म का चयन हुआ और नाम मिला-‘पद्म पुरस्कार’। उत्कृष्टता को परिभाषित करने वाले तथा राष्ट्र व समाज के प्रति अतुलनीय योगदान को गौरव देने वाले ये पुरस्कार भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष प्रदान किए जाते हैं। इन्हें क्रमशः पद्मश्री, पद्म भूषण तथा पद्म विभूषण के रूप में वर्गीकृत किया गया है। पद्मश्री ‘विशिष्ट सेवा के लिए’, पद्म भूषण ‘उच्च कोटि की विशिष्ट सेवा के लिए’ तथा पद्म विभूषण’ असाधारण एवं विशिष्ट सेवा के लिए’ प्रदान किया जाता है। मात्र वर्ष 1978, 1979 तथा 1993 से 1997 के मध्य पद्म पुरस्कार नहीं दिए गए।
दशकों तक ये पुरस्कार विशिष्ट वर्गों तथा विशिष्ट व्यक्तियों तक सीमित रहे। सामान्य जनमानस में इनके प्रति सम्मान होते हुए भी कुछ उदासीनता झलकती रही। तत्कालीन वर्ष में पद्म पुरस्कार किसे मिले हैं, यह केवल प्रतियोगी परीक्षा के विद्यार्थियों हेतु रटने का प्रश्न हुआ करता था किंतु अब परिदृश्य बदल रहा है।
जब ‘वनों का विश्वकोश’ कहलाने वाली 72 वर्षीय अम्मा तुलसी गौड़ा पद्म श्री से अलंकृत हुईं तो देश भर में हर्ष का वातावरण बन गया। कर्नाटक जनपद अकादमी की प्रथम किन्नर अध्यक्ष माता बी. जोगम्मा ने पद्मश्री ग्रहण करते हुए माननीय राष्ट्रपति महोदय की बलैया ली तो लगा मानो पूरे राष्ट्र को ही शत्रुओं की कुदृष्टि से कवच मिल गया।
फल बेचकर विद्यालय स्थापित करने वाले हरेकाला हजब्बा, प्राकृतिक देशी बीजों को संरक्षित व संवर्धित करने वाली वनवासी समुदाय की राहीबाई सोमा पोपेरे, अपनी कर्मठता से राजस्थान को हरा-भरा बनाने में योगदान देने वाले हिम्मत राम भांभू व इनके जैसे अन्य कई असाधारण कार्य करने वाले साधारण नागरिक सम्मानित हुए तो पूरा देश प्रसन्न हुआ।
यह प्रसन्नता एक बड़े बदलाव की ओर संकेत करती है। भारत का तंत्र अब केवल कतिपय लोगों के हाथों सीमित न रहकर करोड़ों जन से जुड़ रहा है। विगत कुछ वर्षों में पद्म पुरस्कार जनता तक पहुंचे हैं। स्वाभाविक है कि जनता भी पद्म पुस्कारों के विषय में अधिक रुचि ले रही है।
इस वर्ष राजस्थान के 5 व्यक्ति पद्मश्री से अलंकृत हुए हैं। अलवर की उषा देवी को स्वच्छता व समाज जागरण हेतु, सीकर के सुंडाराम वर्मा को कम पानी में कृषि की तकनीक विकसित करने के लिए, जयपुर के रमजान खान को भजन गायन कला के लिए, जैसलमेर के उस्ताद अनवर खान मांगणियार को लोक कला हेतु तथा नागौर के हिम्मतराम भांभू को 5 लाख से अधिक वृक्षारोपण कर पर्यावरण के प्रति योगदान के लिए सम्मानित किया गया है।
यद्यपि इसे विडंबना ही कहा जाना चाहिए कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में नागरिक पुरस्कारों का सामान्य नागरिकों तक पहुंचना हमारे लिए हर्ष मिश्रित आश्चर्य का विषय है जबकि पद्म पुरस्कारों को ऐसा ही होना चाहिए था जैसा स्वरूप उन्हें अब जाकर प्राप्त हो रहा है। भारत का सामान्य जनमानस सदा से मौन रहकर देश व समाज के कल्याण हेतु सक्रिय रहता है किंतु जब किसी कर्मयोगी के योगदान को सम्मान मिलता है तो अन्य लोग भी प्रेरित होते हैं।