मानव का सर्वोच्च दायित्व है पर्यावरण रक्षण
डॉ. सीमा दायमा
पर्यावरण सभी के जीवन का आधार है। आकाश, वायु अग्नि, जल, भूमि का आश्रय लेकर ही सभी प्राणी जीवित रहते हैं अतः पर्यावरण रक्षण हेतु सजग रहना मानव मात्र का सर्वोच्च दायित्व है। पर्यावरण चेतना से अभिप्राय है कि मनुष्य यह समझे एवं स्वीकार करे कि प्रकृति प्रदत्त पर्यावरण के साथ संतुलन एवं संगति रखने में सुख एवं समृद्धि है एवं प्रकृति पर्यावरण के साथ विसंगति में वेदना एवं विभीषिका समाहित है। प्राचीन समय से लेकर अब तक ऋषि-मुनियों, कवियों ने प्रकृति के महत्व को मंत्रों में सूचीबद्ध किया, वैज्ञानिकों ने गहरी खोज की, अध्ययन किया और साक्षात्कार किया और बहुत ही गहरी अनुभूति से अभिभूत होकर उन्होंने जाना कि मनुष्य भी पर्यावरण का एक हिस्सा है उससे अलग नहीं।
अथर्ववेद के अनुसार “भूमि माता है, अंतरिक्ष भ्राता है, और द्युलोक पिता है। वे हमें विपत्ति से बचाकर कल्याणकारी होते हैं। अतः मानव को सावधान किया गया है कि वह कोई ऐसा अनुचित कार्य नहीं करे जिससे पर्यावरण संकट उपस्थित हो जाए”। लेकिन आज का मानव अपनी महत्वाकांक्षाओं को किसी भी मूल्य पर पूर्ण करना चाहता है। मनुष्य की यह विवेकहीन गति ही पर्यावरण प्रदूषण और पारिस्थितिकी असंतुलन का प्रमुख कारण है।
आज हम कोविड-19 नामक महामारी के दौर से गुजर रहे हैं, घरों में बंद होकर इस लड़ाई का सामना कर रहे हैं। इस दौरान स्वच्छता पर विशेष बल दिया जा रहा है जैसे – बार-बार हाथ धोना, सैनिटाइज करना, सोशल डिस्टेंस मेंटेन रखना इत्यादि। इस महामारी ने मनुष्य को पर्यावरण रक्षण के प्रति सजग रहने का संदेश भी दिया है। आज हम देख रहे हैं कि जिन नदियों को साफ करने के लिए बड़ी-बड़ी मशीनों का सहारा लिया जा रहा था वे अपने आप स्वच्छ हो रही हैं, विभिन्न पक्षी आसमान में नजर आने लगे हैं और खुली हवा में सांस लेने लगे हैं, पहाड़ों की रौनक निखरने लगी है, प्रकृति संवरने लगी है, हवा स्वच्छ होकर बह रही है। ऐसे में हमें आने वाले समय के साथ अपने आपको तैयार रखना होगा कि हम एक जिम्मेदार व्यक्ति बनकर सजगता के साथ पर्यावरण रक्षण के प्रति प्रतिबद्ध रहें।
हाल ही में हिन्दू स्प्रिचुअल सर्विस फाउंडेशन द्वारा सम्पन्न प्रकृति वंदन कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने भी यही संदेश दिया। उन्होंने कहा कि सृष्टि का पोषण हमारा कर्तव्य है। हमारे यहां पेड़ों में भी जीव है, ऐसा माना जाता है। वृक्ष पूजन और जीवों का पोषण हमारी परम्परा रही है। हम भी इस प्रकृति के घटक हैं। हमको प्रकृति से पोषण पाना है, प्रकृति को जीतना नहीं। सृष्टि सुरक्षित रहेगी तभी मानव जाति सुरक्षित रह पाएगी और जीवन सुंदर होगा। हमें पर्यावरण रक्षण के महत्व को समझना ही होगा।