पालघर

संत से जप है,
संत ही तप है।
संत से सृष्टि है,
संत ही दृष्टि है।
दिखता वह व्यष्टि है
समायी उसमें समष्टि है।
संत से समाज है,
संत ही रिवाज है।
संत ही लिहाज है,
संतों पर नाज है।

ईश का अवतार है,
संतों से संसार है।
संत ही त्योहार है,
संत ही व्यवहार है।

संत का जो त्याग है,
काशी और प्रयाग है।

संत ही दीप है,
जीवन का मीत है।
प्रभु की प्रीत है,
संत हार नहीं जीत है।

संत ही काया है,
संत ही माया है।
संत की छाया है,
जग ने शीश झुकाया है।

जिसने संतों को मारा है,
वो गाँव सारा का सारा है।
बचे न कोई जो हत्यारा है।
संत है तो भारत हमारा है।

संत ही सनातन है,
संतों से अपनापन है,
इनके लिए ये तन मन है,
संत से संस्कृति और वतन है।

वीरमाराम पटेल
उदयपुर

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *