पीएफआई को आखिर क्यों प्रतिबंधित करना पड़ा?
पीएफआई को आखिर क्यों प्रतिबंधित करना पड़ा?
केंद्र सरकार ने इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों को प्रतिबंधित कर दिया। सरकार की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार, ये संगठन सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संगठन के रूप में कार्य करते हुए गुप्त एजेंडा के अंतर्गत मुसलमानों को कट्टर बनाकर लोकतंत्र की अवधारणा को कमजोर करने की दिशा में कार्य कर रहे थे। वे देश के संवैधानिक प्राधिकार और ढांचे के प्रति घोर अनादर दिखाते थे। अधिसूचना में कहा गया है कि पीएफआई और इसके सहयोगी संगठन विधि विरुद्ध क्रियाकलापों में संलिप्त रहे हैं, जो देश की अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा के प्रतिकूल है, जिससे शांत तथा सांप्रदायिक सद्भाव का वातावरण खराब होने और देश में उग्रवाद को प्रोत्साहन मिलने की आशंका है।
पीएफआई के कुछ संस्थापक सदस्य स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के नेता रहे हैं। पीएफआई का संबंध जमात उल मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) से भी रहा है। ये दोनों संगठन प्रतिबंधित संगठन हैं। पीएफआई वैश्विक आतंकवादी समूहों इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) के साथ अंतरराष्ट्रीय संपर्क के कई उदाहरण हैं। पीएफआई और इसके सहयोगी संगठन चोरी छिपे देश में असुरक्षा की भावना को बढ़ावा देकर मुस्लिम समुदाय के कट्टरपंथ को बढ़ाने का काम कर रहे हैं, जिसकी पुष्टि इस तथ्य से होती है कि इसके कुछ सदस्य अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों से जुड़ चुके हैं।
केंद्र सरकार का मानना है कि उपरोक्त कारणों के दृष्टिगत विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 (1967 का 37) की धारा 3 की उप धारा 1 के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग करना आवश्यक है, जिसकी इन तथ्यों से भी पुष्टि होती है…
- पीएफआई कई आपराधिक और आपकी मामलों में शामिल रहा है और यह देश के संवैधानिक प्राधिकार का अनादर करता है। बाह्य स्रोत से प्राप्त धन और वैचारिक समर्थन के साथ यह देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है।
- विभिन्न मामलों में अन्वेषण से यह स्पष्ट हुआ है कि पीएफआई और उसके कार्यकर्ता बार-बार हिंसक और विध्वंसक कार्यों में संलिप्त रहे हैं, जिनमें एक कॉलेज प्रोफेसर का हाथ काटना, अन्य पंथों का पालन करने वाले संगठनों से जुड़े लोगों की निर्मम हत्या करना, प्रमुख लोगों और स्थानों को निशाना बनाने के लिए विस्फोटक प्राप्त करना, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना आदि शामिल हैं।
- पीएफआई काडर कई आतंकवादी गतिविधियों और कई व्यक्तियों जैसे संजीत (केरल, नवंबर 2021), योगम (तमिलनाडु 2019), नंदू (केरल 2021), अभिमन्यू (केरल 2018), विविन (केरल 2017), शरत (कर्नाटक 2017), आर रुद्रेश (कर्नाटक 2016), प्रवीण पुजारी (कर्नाटक 2016), शशि कुमार (तमिलनाडु 2016), प्रवीण नेतारू (कर्नाटक 2022) की हत्या में शामिल रहे हैं। ऐसे आपराधिक कृत्य और जघन्य हत्याएं, सार्वजनिक शांति को भंग करने और लोगों के मन में आतंक का भय पैदा करने के एकमात्र उद्देश्य से की गई हैं।
- पीएफआई के वैश्विक आतंकवादी समूहों के साथ अंतरराष्ट्रीय संपर्क के कई उदाहरण हैं। इसके कुछ सदस्य आईएसआईएस में शामिल हुए हैं और सीरिया, ईराक और अफगानिस्तान में आतंकी कार्यकलापों में भाग लिया है। इसमें से पीएफआई के कुछ काडर इन संघर्ष क्षेत्रों में मारे गए और कुछ को राज्य पुलिस तथा केंद्रीय एजेंसियों ने गिरफ्तार किया। इसके अलावा पीएफआई का संपर्क प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन जमात उल मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) से भी रहा है।
- पीएफआई के पदाधिकारी और काडर तथा इससे जुड़े अन्य लोग बैंकिंग, चैनल, हवाला, दान आदि के माध्यम से सुनियोजित आपराधिक षड्यंत्र के तहत भारत के भीतर और बाहर से धन इकट्ठा कर रहे हैं। फिर उस धन को वैध दिखाने के लिए कई खातों के माध्यम से उसका अंतरण, लेयरिंग और एकीकरण करते हैं। आखिर में ऐसे धन का प्रयोग भारत में विभिन्न आपराधिक, विधि विरुद्ध और आतंकी कार्यों में किया जाता है।
- पीएफआई की ओर से उनसे संबंधित कई बैंक खातों में जमा धन के स्रोत, खाताधारकों के वित्तीय प्रोफाइल मेल नहीं खाते हैं और पीएफआई के कार्य भी उसके घोषित उद्देश्यों के अनुसार नहीं पाए गए। इसलिए आयकर अधिनियम 1961 (1961 का 3) की धारा 12 ए या 12 एए के अंतर्गत मार्च 2021 में इसका पंजीकरण रद्द कर दिया। इन्हीं कारणों से आयकर विभाग ने आयकर अधिनियम 1961 की धारा 12 ए या 12 एए के अंतर्गत रिहैब इंडिया फाउडेशन के पंजीकरण को भी रदद् कर दिया।
- उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात राज्य सरकारों ने भी पीएफआई को प्रतिबंधित करने की अनुशंसा की है।