सर्व सुलभ वैक्सीन के लिए पेटेंट व्यवस्था से मुक्ति आवश्यक है
डॉ. अश्विनी महाजन
आज कोरोना महामारी से पूरी दुनिया जूझ रही है, महामारी ने मानवता को झकझोर कर रख दिया है। अप्रैल-मई में ऐसी मुश्किल स्थिति का सामना करना पड़ा, जब हमें ऑक्सीजन, अस्पताल बेड और यहां तक कि दवाइयों की भारी किल्लत से जूझना पड़ा। अगर दुनिया में वैक्सीन की उपलब्धता और वितरण पर नजर डालें तो पता चलता है कि वैक्सीन की अलग-अलग देशों में अत्यधिक असमानता है। ऐसे में यदि दुनिया से महामारी को समाप्त करना उद्देश्य हो तो सारे विश्व का टीकाकरण करना जरूरी है। पोलियो उन्मूलन अभियान में ध्येय वाक्य रखा गया कि ‘यदि एक भी बच्चा छूट गया, सुरक्षा चक्र टूट गया।’ कोरोना महामारी में भी यही बात लागू होती है। समझना होगा कि दुनिया के सभी देश किसी न किसी प्रकार से दूसरों से जुड़े हुए हैं। यदि कोई भी देश पूरी तरह या आंशिक रूप से छूट गया तो यह महामारी फिर से सिर उठा सकती है।
जब इस महामारी का प्रकोप दुनिया में हुआ और लगा कि टीकाकरण इसकी रोकथाम का उपाय हो सकता है, तभी से भारत में स्वदेशी और विदेशी दोनों प्रकार के प्रयासों से वैक्सीन विकास हेतु काम शुरू हो गया था। भारत में दो स्वदेशी प्रयास फलीभूत हो चुके हैं, जिसमें से एक भारत बायोटेक कंपनी द्वारा को-वैक्सीन के निर्माण को लेकर है, जिसके द्वारा अगस्त से दिसंबर के बीच 35 करोड़ वैक्सीन निर्माण का लक्ष्य रखा गया है और दूसरा स्वदेशी प्रयास हैदराबाद की ‘बायोलॉजिकल ई’ नाम की कंपनी की वैक्सीन का था, जिसके द्वारा भी अगस्त और दिसंबर के बीच 30 करोड़ वैक्सीन भारत सरकार को उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है। इसके अतिरिक्त, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के सहयोग से भारत में वैक्सीन विकास का एक बड़ा प्रयास हुआ। भारत सरकार के अनुमान के अनुसार अगस्त और दिसंबर के बीच सीरम इंस्टीट्यूट 75 करोड़ वैक्सीन डोज उपलब्ध करवा देगी। भारत सरकार ने घोषणा की है कि मौजूदा वर्ष के अंत तक संपूर्ण जनसंख्या को टीकाकृत कर दिया जाएगा।
भारत में वैक्सीन निर्माण की भरपूर क्षमता और सरकार के प्रारंभ से ही किए गए प्रयासों के कारण टीकाकरण की गति अन्य देशों की तुलना में अधिक रही है, लेकिन देश की जनसंख्या अधिक होने के कारण संपूर्ण जनसंख्या के टीकाकरण का लक्ष्य थोड़ा दूर है। यह सही भी हो कि इस वर्ष के अंत तक हम अपना लक्ष्य पूर्ण कर लेंगे, लेकिन यदि शेष दुनिया की बात करें तो भारत सहित दुनिया के कुछ देशों को छोड़कर उनमें वैक्सीन निर्माण की क्षमता ही नहीं है। भारत तो दुनिया भर के लिए वैक्सीन का प्रमुख स्रोत रहा है। लेकिन दूसरे देशों में चिंता व्याप्त होना स्वाभाविक है, क्योंकि वे वैक्सीन निर्माण तो कर नहीं सकते, लेकिन वैक्सीन खरीदने के लिए दुनिया की चुनिंदा कंपनियों पर उन्हें आश्रित होना पड़ेगा।
दुनिया में चल रही पेटेंट व्यवस्था और अन्य प्रकार के बौद्धिक संपदा अधिकारों के चलते कंपनियां अत्यंत महंगी कीमत पर वैक्सीन बेच रही हैं। उल्लेखनीय है कि भारत में प्रारंभिक दौर में सरकार द्वारा अधिकांशत: मुफ्त और प्राइवेट सेक्टर में लगभग 250 रुपये की दर से वैक्सीन की डोज लगाई गई। अभी भी वैक्सीन सरकार द्वारा 150 रुपये प्रति डोज की दर से खरीदी जा रही है। फाइजर और मॉडर्ना सरीखी कंपनियां 20 से 50 डॉलर (यानी 1500 से 3750 रुपये) प्रति डोज की दर से वैक्सीन बेच रही हैं। गरीब देशों की सरकारें अथवा लोग इतनी महंगी वैक्सीन खरीदने में सक्षम नहीं हैं। सर्व सुलभ वैक्सीन के लिए कीमत सबसे बड़ी बाधा है। समझ सकते हैं कि वैक्सीन की ऊंची कीमत के पीछे पेटेंट और बौद्धिक संपदा अधिकार सबसे बड़ी बाधा हैं। इस बाधा को पार करने के लिए भारत और दक्षिण अफ्रीका ने विश्व व्यापार संगठन में गुहार लगाई है कि महामारी के दौरान इस पेटेंट व्यवस्था से मुक्ति दी जाए। इस गुहार का नाम है ‘ट्रिप्स वेवर’ यानि ट्रिप्स से मुक्ति।
अक्तूबर 2020 में भारत और दक्षिण अफ्रीका ने संयुक्त रूप से विश्व व्यापार संगठन में प्रस्ताव रखा कि कोरोना महामारी के मद्देनजर इसके लिए वैक्सीन और आवश्यक दवाओं पर एक निश्चित समय (जिसका निर्धारण किया जाए) के लिए ट्रिप्स के प्रविधानों से छूट दी जाए, ताकि इन वैक्सीन और दवाइयों का पर्याप्त उत्पादन और उसकी उचित कीमत पर उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। इस प्रयास को 120 से अधिक सदस्य देशों का समर्थन पहले ही मिल चुका है। मई के अंत में इस हेतु प्रस्तावक देशों की एक बैठक आयोजित हुई, जिसमें इन देशों ने एक प्रस्ताव को अंतिम रूप दिया और प्रस्ताव में मांग की गई कि कम से कम तीन वर्षो के लिए वैक्सीन और कोविड की दवाइयों हेतु ट्रिप्स के प्रावधानों से छूट दी जाए और इसके साथ ही वैक्सीन और दवाओं के उत्पादन हेतु आवश्यक कच्चे माल प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और व्यापार रहस्य यानी ट्रेड सीक्रेट से मुक्ति भी सुनिश्चित हो।
समझना होगा कि ट्रिप्स समझौता जहां बौद्धिक संपदा अधिकारों के संरक्षण का प्रावधान करता है, वहीं उसमें यह प्रावधान भी रखा गया था कि स्वास्थ्य संकट, महामारी आदि की स्थिति में ट्रिप्स के प्रावधानों में ढील देकर मानवता के उद्देश्य से काम किया जा सकता है। साथ ही, विश्व व्यापार संगठन के दोहा मंत्री स्तरीय सम्मेलन में ट्रिप्स और जन स्वास्थ्य संबंधी घोषणा पत्र में इस विषय पर और अधिक स्पष्टीकरण दिया गया था। दोहा घोषणा में यह स्पष्ट किया गया है कि जन स्वास्थ्य संकट, महामारी, भीषण बीमारियों की स्थिति में सदस्य देशों की संप्रभु सरकारों के पास यह अधिकार होगा कि दवाइयों हेतु अनिवार्य लाइसेंस जारी कर सस्ती दरों पर दवाइयां अधिकाधिक मात्र में उपलब्ध करवाएं।
दुर्भाग्य का विषय यह है कि भारत और दक्षिण अफ्रीका के मानवता हेतु ट्रिप्स वेवर के इन प्रयासों के मार्ग में यूरोपीय देश और कुछ अन्य विकसित देश बाधाएं खड़ी कर रहे हैं। लेकिन संतोष का विषय यह है कि अमेरिकी प्रशासन ने अपना पहले का रुख बदला है और अब उन्होंने वैक्सीन के लिए भारत और दक्षिण अफ्रीका के ट्रिप्स वेवर के प्रस्ताव को समर्थन दे दिया है। भविष्य में स्पष्ट हो जाएगा कि कंपनियों के लाभों के सामने मानवता जीतेगी या नहीं। क्या पेटेंट मुक्त वैक्सीन और दवाएं वास्तव में बनाई जा सकेंगी या गरीब देशों को इन कंपनियों से महंगी दवाएं ही खरीदनी पड़ेंगी। समय की मांग है कि समाज की सज्जन शक्तियां पेटेंट मुक्त वैक्सीन और दवाओं को सुनिश्चित करने हेतु जन दबाव बनाकर मानवता की जीत तय करें।
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं)