अब नन्द और पर्वतराज को भेजी जाए विषकन्या
पंजाब में प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था से खिलवाड़
विवेक भटनागर
कोई नन्द और कोई पर्वतराज नहीं हताहत कर पाएगा चन्द्रगुप्त को। पराक्रम दिखाने का समय है। हम स्वयं की क्षमता, दुर्बलता, अवसर और आतंक का आंकलन करेंगे तो पाएंगे कि सत्ता हमेशा से नियमों के भय से निसृत होती है। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को कुसुमोत्सव नहीं मनाने दिया और विरोधियों के हृदय में भय का बीज बो दिया। देश में प्रधानमंत्री पर आतंकी हमला होता है और कांग्रेस अपनी प्रदेश सरकार के बचाव में उतर आती है। कांग्रेस सरकार ने भारत में नक्सल, खालिस्तान, जिहादी और अन्य कई राष्ट्र विरोधी संगठनों को तैयार किया और उन्हें अभय प्रदान कर देश में 70 वर्ष तक शासन किया। कभी किसी को, और कभी किसी को, इस्तेमाल कर सत्ता के हर पायदान पर अपना कब्जा बनाए रखा। आज जब पिछले सात वर्ष से अधिक समय से वह सत्ता से बाहर है तो किसी न किसी बहाने देश को अस्थिर करने का प्रयास कर रही है। कभी खालिस्तानियों को हवा देकर 26 जनवरी 2021 को देश का अपमान किया जाता है, तो कभी एनआरसी-सीएए के नाम पर दंगे भड़काए जाते हैं। भारत में भारत की संस्कृति को गौरवान्वित होते यह विदेशी स्टूज देख ही नहीं सकते।
भारत को पहली बार गौरवान्वित करने वाले प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु या कहें हत्या संदिग्ध परिस्थितियों में सोवियत संघ के शहर ताशकन्द में हो जाती है। लेकिन भारत सरकार उनका पोस्टमार्टम तक नहीं करवाती और जांच कमेटी भी लम्बे समय तक नहीं बनाई जाती। इसके बाद पंजाब में अपनी सत्ता बचाने के लिए कांग्रेस अकालियों के विरुद्ध खलिस्तानियों को औजार के रूप में इस्तेमाल करती है, लेकिन स्वयं के जाल में फंस जाती है। खालिस्तानी आईएसआई (ISI) की गोद में जा बैठते हैं और, रंगा, बिल्ला व भिण्डरावाला जैसे खूंखार आंतकी नेता पूरे पंजाब को झूठी सिखी के नाम पर जला देते हैं। पूरे डेढ़ दशक के संघर्ष में इसे हवा देने वाली इंदिरा गांधी अपनी जान गंवाकर अपने पाप का प्रायश्चित करती हैं। इसके बाद यही परिस्थितियां दक्षिण में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम के मामले में राजीव गांधी पैदा करते हैं और परिणामस्वरूप उनका भी वध होता है।
आगे चल कर भी कांग्रेस के काले कारनामे समाप्त नहीं होते। राजेश पायलट, माधवराव सिंधिया और वाय.एस. राजशेखर रेड्डी को भी जान गंवानी पड़ती है। कांग्रेस सत्ता के बाहर होकर भी विदेशी सत्ताओं के प्रभाव से भारत में अस्थिरता लाने का प्रयास निरंतर कर रही है। इस प्रयास की अगली कड़ी शायद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या है।
आखिर इस षड्यंत्र का सूत्रधार कौन?
सोचने का विषय यह है कि इस घटना में पर्वतराज कौन है जिसने भारत के चन्द्रगुप्त की हत्या के लिए विषकन्या का प्रयोग किया। अब आप विषकन्या जिसे समझना हो समझें, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन ध्यान रहे चाणक्य ने विषकन्या भेजने वाले पर्वतराज के साथ क्या किया था। सूत्रधार जो भी हो उसे खोज निकाला जाएगा। अब सरकार को इस घटना के कूटनीति और वैश्विक परिणामों के कारणों को खोज कर आने वाले समय में खालिस्तानियों के प्रत्येक मार्ग में कंटीली बाधाएं खड़ी करनी होंगी, अन्यथा एक बार फिर हम उड़ते पंजाब के स्थान पर जलता पंजाब देखने को मजबूर होंगे। वैटिकन की धार में बहते चन्नियों को ध्यान रखना होगा कि धर्म हिंसा का पाठ यदि हमने पढ़ाया तभी खालसा पंथ का उदय हुआ है। गुरु दशमेश गोबिन्द सिंह के दर्शन पर ‘सकल जगत में खालसा पंथ गाजे, जगे धर्म हिंदू सकल भंड भाजे’ किया जाएगा। वैसे प्रधानमंत्री ने गुरुवार को कैबिनेट की बैठक में भी पंजाब की घटना का उल्लेख किया था। इस बैठक में उपस्थित मंत्रियों ने पंजाब सरकार के रवैये को लेकर नाराजगी जताई है और कुछ मंत्रियों ने कड़े फैसले लेने के सुझाव दिए हैं।
यह प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक नहीं, उनकी हत्या का प्रयास है। प्रधानमंत्री के प्रोटोकॉल के अनुसार मुख्यमंत्री चन्नी को उनके साथ होना था और पंजाब के पुलिस महानिदेशक व मुख्य सचिव को भी वहां उपस्थित होना था। तीनों की कारें थीं और खाली थीं। ऐसा ही कुछ राजीव गांधी के साथ कांग्रेस ने किया था। श्रीपेरम्बदूर में राजीव गांधी के साथ कोई नहीं था। यहां तक कि उनकी छाया बनकर साथ चलने वाली पत्नी भी उस दिन सभा में नहीं आई। इसे संयोग कहें या कुछ और पता नहीं, लेकिन इसके बाद राजीव गांधी की बेटी ही उनके हत्यारों को क्षमा दिलवाने के लिए अर्जियां लगाती फिरती है, जैसे यह कोई सामान्य हमला हो। बाटला मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों से इतना प्रेम कि कांग्रेस की माता आंसू बहाती है। आखिर आतंकियों से कांग्रेस को प्रेम क्यूं है, समझ नहीं आता।
हालांकि प्रधानमंत्री की सुरक्षा में हुई चूक को केन्द्र सरकार ने बहुत गम्भीरता से लिया है। सरकार ने इस मामले की जांच के लिए तीन सदस्यों की उच्च स्तरीय जांच कमेटी का गठन कर दिया है। आने वाले दिनों में मोदी सरकार इस मामले में सख्त कदम उठा सकती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की घटना के तुरंत बाद गुरुवार को भेंट हुई। प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति को इस घटना की पूरी जानकारी दी। जब प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को किसी घटना के बारे में जानकारी देते हैं, तो यह सामान्य बात बिल्कुल नहीं होती। प्रधानमंत्री भारत के नागरिक व मुखिया हैं। उनकी सुरक्षा का सम्पूर्ण दायित्व राष्ट्र के सर्वोच्च सुरक्षाधिकारी और सुप्रीम कमाण्डर पर होता है। ऐसे में ध्यान दिया जाना चाहिए कि आगे की कार्रवाई आतंकियों के लिए एक संदेश के समान हो। वध उनका हो जो राष्ट्रद्रोह कर रहे हैं। विषकन्या और अग्नि उन्हें मिले जो देश में अराजकता फैलाना चाहते हैं। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंच गया है और अदालत इस पर सुनवाई कर रही है। अदालत में दायर हुई याचिका में जिम्मेदार लोगों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की गई है।
पंजाब सरकार ने की खानापूर्ति
पंजाब सरकार अब इस मामले में फंस चुकी है। मुख्यमंत्री चन्नी का कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी की झिड़की मिलने के बाद रंग बदला है और मामले की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया गया है। यह कमेटी तीन दिनों के अन्दर अपनी रिपोर्ट पंजाब सरकार को सौंपेगी। सोनिया गांधी ने मुख्यमंत्री चन्नी से जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई करने के लिए कहकर खानापूर्ति कर दी है। अब जो कुछ घट चुका है वह इतिहास बन चुका है और कांग्रेस की राजमाता कुछ भी कर लें, इस अपराध से मुक्त नहीं हो सकती हैं। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी कहा कि इस घटना पर कड़े और बड़े निर्णय लिए जाएंगे। ये बयान अपने आप में काफी कुछ इशारा कर रहा है।
सुनियोजित षडयंत्र के मिले सबूत
सूत्रों की माने तो ऐसे सबूत मिले हैं, जिनसे पता चलता है कि प्रधानमंत्री मोदी को फिरोजपुर में फ्लायओवर पर घेरने का षड्यंत्र सुनियोजित था। यह षड्यंत्र 1 जनवरी को ही बना लिया गया था। 1 जनवरी को पंजाब के फिरोजपुर में अलग-अलग जगहों पर बैठकें हुईं, जिनमें प्रधानमंत्री के काफिले को घेरने की रणनीति बनाई गई। इसके बाद 5 जनवरी को सुबह फिरोजपुर में अलग-अलग रास्तों पर भीड़ को जमा होने के निर्देश दिए गए। जिस रूट से प्रधानमंत्री आ रहे थे, वहां पहले किसान नहीं थे लेकिन जैसे ही प्रधानमंत्री मोदी का काफिला सड़क मार्ग से फिरोजपुर के लिए निकला, उसी समय किसी ने भीड़ को इसकी जानकारी दी और 50 से 100 लोगों का एक जत्था पुलिस द्वारा की गई नाकेबंदी को तोड़ते हुए फ्लायओवर के पास पहुंच गया। जब प्रधानमंत्री का काफिला फ्लायओवर के पास था और उग्र भीड़ हर उस गाड़ी और बस पर हमला कर रही थी, जिस पर प्रधानमंत्री के पोस्टर्स थे। सोचिए, अगर प्रधानमंत्री का काफिला इस भीड़ के बीच फंस जाता तो क्या होता।
खालिस्तानी ले रहे हैं जिम्मेदारी
इस घटना को गम्भीरता से लेने की आवश्यकता है। खालिस्तान समर्थक प्रधानमंत्री पर हमले का उत्सव माना कर इसकी जिम्मेदारी ले रहे हैं। पंजाब को एक बार फिर से 80-90 के दशक में ले जाने का प्रयास किया जा रहा है। चीन, आईएसआई और खालिस्तान के गठजोड़ पर पूरी जांच होनी चाहिए। साथ ही इस पर भी ध्यान देना चाहिए कि कांग्रेस ने अमरिन्दर सिंह को हटा कर विवादित चरणजीत चन्नी को क्या इसी दिन के लिए मुख्यमंत्री बनाया था। क्या अमरिंदर कांग्रेस के खतरनाक मनसूबों को अंजाम देने के बीच सबसे बड़ी बाधा थे। अगर यह घटना परम्परा बन गई तो ये भारत के संवैधानिक ढांचे को खतरे में डाल सकती है। इस घटना के तुरंत बाद खालिस्तान के समर्थकों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया और कहा कि तिरंगा थामने वाले लोगों को पंजाब से वापस जाना पड़ेगा। इनमें सबसे पहला वीडियो गुरपतवंत सिंह पन्नू का है, जो सिख फॉर जस्टिस (sikh for justice) नाम का एक खालिस्तानी संगठन चलाता है और क्रिप्टो क्रिश्चियन है। जब फिरोजपुर से यह समाचार आया कि प्रधानमंत्री का काफिला वहां खुली सड़क पर 20 मिनट तक ट्रैफिक के बीच फंसा रहा, तब इस व्यक्ति ने अपने एक वीडियो में कहा कि यह घटना पंजाब को भारत से तोड़कर खालिस्तान बनाने की एक नई शुरुआत का हिस्सा है और पंजाब के लोगों ने इस पर अपना जनमत दे दिया है। उत्तिष्ठ भारत:
(ये लेखक के अपने विचार हैं)