फिल्म ‘गांधी गोडसे : एक युद्ध’- काल्पनिक, अनुपयुक्त विमर्श
डॉ. अरुण सिंह
फिल्म ‘गांधी गोडसे : एक युद्ध’- काल्पनिक, अनुपयुक्त विमर्श
26 जनवरी, 2023 को प्रदर्शित हुई फिल्म “गांधी गोडसे : एक युद्ध” ऐतिहासिक तथ्यों को झुठलाने के लिए एक नया वैचारिक विमर्श स्थापित करने का प्रयास है। यहां गांधी की छिटपुट कमियों को उजागर करने की आड़ में गांधी को ही महिमामंडित किया गया है। एक काल्पनिक विषय प्रस्तुत किया गया है कि गोडसे द्वारा हमले के पश्चात गांधी जीवित रहे और उन्होंने गोडसे का हृदय परिवर्तन कर दिया। वस्तुत:, क्या यह संभव था?
फिल्म में गांधी यह तो स्वीकार करते हैं कि भारत-पाकिस्तान बंटवारे में उन पर दोष मढ़ा गया था, जबकि इसके पीछे उनके अपने ही लोग थे। परंतु गांधी यह क्यों नहीं उजागर करते कि ये कौन लोग थे और यह सब कैसे संभव बनाया गया? फिल्म बस यही दिखाती है कि गांधी महान थे, पर थोड़े हठी थे; इतने महान कि उन्होंने अपने विचारों से गोडसे को भी बदल दिया। गांधी यह कहते दिखाए गए हैं कि इस देश में अनादिकाल से अनेकता रही है। यह कपोल कल्पित इतिहास ही भारत में स्वतंत्रता के पश्चात पढ़ाया गया। भारत में यह अनेकता कितने भीषण नरसंहारों के फलस्वरूप आई, जैसा वीएस नायपॉल ने अपनी पुस्तकों में लिखा है, यह क्यों नहीं बताया गया? फिल्म यह भी झुठला देती है कि इस्लाम ने भारत में मंदिर तोड़े। राजकुमार संतोषी ने गोडसे को औजार बनाया है। विमर्श के केंद्र में तो गांधी ही हैं।
सारांशत: यह फिल्म वाम पद्धति के इतिहास को दिखाने और एक नया विमर्श गढ़ने का कुत्सित प्रयत्न है। कलाकारों का अभिनय श्लाघनीय है। सुषमा और नरेन के कथानक को संतुलन स्थापित करने हेतु अनावश्यक रूप से ठूंसा गया है।