बसंत पंचमी के दिन लोहागढ़ किले की नींव रख हुई थी भरतपुर की स्थापना

बसंत पंचमी के दिन लोहागढ़ किले की नींव रख हुई थी भरतपुर की स्थापना

बसंत पंचमी के दिन लोहागढ़ किले की नींव रख हुई थी भरतपुर की स्थापनाबसंत पंचमी के दिन लोहागढ़ किले की नींव रख हुई थी भरतपुर की स्थापना

भरतपुर राजस्थान का एक ऐतिहासिक शहर है। 1733 ई. में फतेहगढ़ी को जीतने के बाद 1743 ई. में महाराजा सूरजमल ने बसंत पंचमी के दिन इसी स्थान पर लोहागढ़ दुर्ग की नींव रख कर भरतपुर की स्थापना की थी। फुलवारी पार्क में हवन-यज्ञ और दुर्गा पाठ हुआ था। इस दिन 19 फरवरी थी। इसलिए कुछ संस्थाएं 19 फरवरी को भी भरतपुर स्थापना दिवस मनाती हैं। लोहागढ़ किला राजस्थान का मान है। यहॉं मुसलमान आक्रमणकारियों से लेकर अंग्रेजों तक ने मात खायी। कुछ लोग कहते हैं, अंग्रेजों के आने से पहले भारत में सुई तक नहीं बनती थी, उनकी आंखें खोलने के लिए इस किले की संरचना ही पर्याप्त है। किले के चारों ओर 200 फ़ीट चौड़ी सुजान गंगा नहर, पत्थर और फिर रेत की दीवार, फिर खाई के निर्माण द्वारा कुल 5 सुरक्षा कवचों से सुरक्षित किया गया। यह किला हमेशा अभेद्य रहा, इसमें इन सुरक्षा कवचों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। किले में कुल 10 दरवाजे बनाए गए, लेकिन प्रवेश के लिए दो ही काम में लिए जाते थे। उन्हें सुजान गंगा नहर के ऊपर अस्थाई पुल से जोड़ा गया। आक्रमण के समय इन पुलों को हटा कर रूपारेल और बाणगंगा नदियों का पानी इस ओर खोल दिया जाता था। मोती झील और कौंधनी बांध भी उसी समय बनाए गए थे। पानी के भराव के कारण आक्रमणकारी आगे बढ़ ही नहीं पाते थे। उस समय इस नींव समारोह में 4 लाख, 62 हजार, 824 रुपए खर्च हुए थे। हर दिन काम कर रहे 13 हजार श्रमिकों और मिस्त्रियों को कौड़ियों में पेमेंट किया जाता था। 12 कौड़ी 2 पैसे के बराबर होती थीं। किले का निर्माण 8 वर्षों में पूरा हुआ था। किले के बुर्जों और छत पर चरखों पर चढ़ी हुई सैकड़ों तोपें तैनात रहती थीं। जब वे एक साथ गरजती थीं, तो लगता था मानो ज्वालामुखी फट पड़ा हो।

महाराजा सूरजमल भरतपुर राज्य के दूरदर्शी राजा थे। उनके पिता बदन सिंह ने डीग को सबसे पहले अपनी राजधानी बनाया। बाद में सूरजमल ने भरतपुर शहर की स्थापना की। महाराजा सूरजमल के समय भरतपुर राज्य की सीमा दिल्ली, भरतपुर, आगरा, धौलपुर, मैनपुरी, हाथरस, अलीगढ़, इटावा, मेरठ, रोहतक, मेवात, रेवाड़ी, गुड़गांव, मथुरा, झज्जर, फरीदाबाद, पलवल, सोनीपत, महेंद्रगढ़, बागपत, ग़ाज़ियाबाद, फ़िरोज़ाबाद, एटा, अलवर, तथा बुलन्दशहर तक के विस्तृत भू-भाग पर फैली हुई थी। भरतपुर की शासन व्यवस्था अत्यंत समृद्धशाली, परोपकारी, वैभवशाली एवं जनकल्याणकारी थी। शासन जनता के सुख-दुख को अपना सुख-दुख मानता था।इस किले ने अंग्रेजों को 17 बार धूल चटाई। अहमद शाह अब्दाली के भय से भाग कर शाही बजीर ने इसी दुर्ग में संरक्षण पाया था। वर्ष 1805 में ब्रिटिश सरकार को सबसे बड़ी पराजय यहीं देखने को मिली थी।

सूरजमल ने अपने जीवन में 80 युद्ध लड़े और सभी में विजयी रहे, भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए दिल्ली में इमाद से लड़े गए युद्ध में महाराजा सूरजमल 25 दिसंबर 1763 को वीरगति को प्राप्त हुए। शाहदरा में उनकी समाधि है।

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