बांसवाड़ा में चर्च बना मंदिर, क्रॉस के स्थान पर विराजे भैरूजी

बांसवाड़ा में चर्च बना मंदिर, क्रॉस के स्थान पर विराजे भैरूजी

बांसवाड़ा में चर्च बना मंदिर, क्रॉस के स्थान पर विराजे भैरूजीबांसवाड़ा में चर्च बना मंदिर, क्रॉस के स्थान पर विराजे भैरूजी

– तीन दशक बाद 30 परिवारों की घर वापसी

राजस्थान के सुदूर जनजातीय क्षेत्रों में वर्षों से चल रहा रिलीजियस कन्वर्जन का कुचक्र अब धीरे-धीरे ध्वस्त होने लगा है। आर्थिक प्रलोभनों और भ्रामक प्रचार के माध्यम से किए गए कन्वर्जन की सच्चाई अब सामने आने लगी है। जिस जाल में लोग अनजाने में फंसते गए थे, उसे तोड़कर अपनी जड़ों की ओर लौटने की यह लहर अब और अधिक प्रबल होती जा रही है। लोग धीरे-धीरे अपनी संस्कृति, परंपराओं और आस्था को पुनः अपनाकर अपनी वास्तविक पहचान की ओर लौट रहे हैं।  

ऐसी ही सुखद अनुभूति देने वाली कहानी है बांसवाड़ा जिले के सोडला दूदा गांव की। गांव के एक चर्च को अब मंदिर का रूप दे दिया गया है। इसकी दीवारें भगवा रंग में रंगी जा चुकी हैं, और जहां पहले ईसाइयत का क्रॉस स्थापित था, वहां अब भैरूजी भगवान की प्रतिमा विराजमान है। गांव के परिवारों की इच्छानुसार उस चर्च का भैरव जी के मंदिर में रूपांतरण कर दिया गया है। हर रविवार की प्रार्थना की जगह अब प्रतिदिन सुबह और शाम भगवान की आरती गूंजने लगी है। “जय श्रीराम” के नारों से वातावरण भक्तिमय हो उठा है।  

इस परिवर्तन की सबसे विशेष बात यह है कि इसकी पहल स्वयं उस चर्च के पादरी ने की, जो कभी कन्वर्ट होकर ईसाई बन गया था। लेकिन अब, अपनी जड़ों की ओर लौटते हुए, उन्होंने ‘घर वापसी’ का निर्णय लिया और अपने धर्म तथा संस्कृति को पुनः अपनाने का साहसिक कदम उठाया है।  

लगभग 30 वर्ष पहले, गांव के 30 हिंदू परिवार आर्थिक तंगी, अच्छे जीवन और आरोग्य की चाह में ईसाई बन गए थे, लेकिन तीन दशक बीत जाने के बाद भी उनके जीवन में कोई विशेष बदलाव नहीं आया। इन परिवारों में एक प्रमुख नाम गौतम गरासिया का है। पांचवीं कक्षा तक पढ़े गौतम गरासिया ने सबसे पहले अपने परिवार के साथ इस विश्वास के साथ ईसाई मत को स्वीकार किया कि इससे उन्हें आर्थिक संबल और बेहतर जीवन मिलेगा। हालांकि, गौतम और उनके परिवार के लिए यह निर्णय आसान नहीं था, लेकिन जीवन की कठिनाइयों के बीच उन्होंने ईसाई बनने का रास्ता चुना। उस समय उन्हें विश्वास था कि ऐसा करने से न केवल उनके जीवन की समस्याएं हल होंगी, बल्कि उन्हें एक नई पहचान और समर्थन मिलेगा। ईसाई समुदाय ने उन्हें आस्था और विश्वास की पूरी गारंटी दी थी, लेकिन कुछ समय बाद उन्हें यह अनुभव हुआ कि यह निर्णय पूरी तरह से सही नहीं था।  

गौतम बताते हैं— “जैसे-जैसे समय बीतता गया, मुझे और मेरे परिवार को यह समझ में आया कि कन्वर्जन के बाद भी हमारी समस्याएं जस की तस बनी रहीं। आर्थिक तंगी और व्यक्तिगत संकटों का कोई हल नहीं निकला। इसके बाद हमने सोचना शुरू किया कि क्या हम वास्तव में सही रास्ते पर थे। यह विचार धीरे-धीरे सशक्त हुआ और हमने पुनः घर वापसी का मन बना लिया।”  

गौतम और उनके परिवार के इस निर्णय से न केवल उनके जीवन में बदलाव आया, बल्कि आसपास के गांवों में भी जागरूकता का एक नया वातावरण बना। हाल ही में, गौतम गरासिया और उनके परिवार के साथ-साथ लगभग 30 अन्य परिवारों ने भी ईसाई मत को छोड़कर अपने सनातन धर्म में वापसी की। यह बदलाव गांव में एक नई चेतना और आत्म-निर्णय की भावना को जन्म दे रहा है।  

गौतम की घर वापसी से ईसाई मिशनरियों में काफी बेचैनी है। वे घर वापसी कर रहे परिवारों पर ईसाई मत न छोड़ने का दबाव भी बना रहे हैं। स्वयं गौतम बताते हैं— “जब मैंने ईसाई समाज के पास्टर से बात की और बताया कि मैं अब हिंदू धर्म अपनाने जा रहा हूं, तो पास्टर ने मुझे फोन करके कहा कि मैं गलत कर रहा हूं।” लेकिन अब गौतम और उनके साथ घर वापसी करने वाले सभी परिवार अपने निर्णय पर अडिग हैं। यदि ईसाई समाज की ओर से कोई दबाव बनाया जाता है तो वे कानूनी कार्रवाई करने को भी तैयार हैं।  

बांसवाड़ा के विष्णु बुनकर बताते हैं— “कुछ जनजाति बंधुओं ने आर्थिक विवशता के चलते ईसाई बनना स्वीकार किया था, लेकिन वे अपने भीतर की सनातन आस्था को नहीं छोड़ सके। वे पूजा-पाठ और धार्मिक कर्मकांड से दूर हो गए, लेकिन उनके मन में सनातन की जड़ें हमेशा बनी रहीं। कुछ समय बाद, उन्होंने अपने धर्म में लौटने का निर्णय लिया। यह घटना दर्शाती है कि आजकल लोग सनातन धर्म के प्रति जागरूक हो रहे हैं और अपनी पहचान को फिर से खोज रहे हैं। दूसरी ओर, पहले ईसाई मिशनरियों द्वारा अंग्रेजी दवाइयों का पाउडर यीशु का प्रसाद बताकर भोले-भाले लोगों को देकर भ्रमित किया जाता था। वे दावा करते थे कि इस पाउडर को खाने से उनकी बीमारी दूर हो जाएगी। लेकिन अब उनकी सच्चाई सामने आने लगी है।”  

जनजाति समाज को सतर्क करते हुए हिंदू युवा जनजाति संगठन के जिला अध्यक्ष कमलेश डामोर कहते हैं— “ईसाई मिशनरियां भारत में सदियों से भ्रम की स्थिति पैदा कर रही हैं। ये भोले-भाले लोगों को धार्मिक और आर्थिक लालच देकर कन्वर्ट करने का प्रयास करती हैं। इसलिए मेरा निवेदन है कि इन मिशनरियों के चंगुल में न फंसें और अपनी संस्कृति की ओर लौटें। गंगाड तलाई के दूधा गांव के परिवारों ने भी घर वापसी की, क्योंकि इन मिशनरियों ने उन्हें गुमराह किया था। बाद में उन्हें अपनी महान संस्कृति का अनुभव हुआ और वे अपने मूल धर्म और संस्कृति की ओर लौट आए।”  

हालांकि, सोडला दूदा वासियों को इस महत्वपूर्ण निर्णय तक पहुंचने में लगभग 30 वर्ष का समय लगा। उनका यह साहसिक कदम न केवल उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाया, बल्कि आसपास के गांवों में जागरूकता और प्रेरणा का संचार भी कर रहा है। अब गांव के लोग कन्वर्जन की वास्तविकता को समझने लगे हैं और अनुभव कर रहे हैं कि वे केवल आर्थिक प्रलोभनों के कारण अपने मूल मत से भटके थे। आज वे अपनी असली पहचान और धार्मिक मूल्यों के प्रति अधिक सचेत हो रहे हैं। यह परिवर्तन आत्म-गौरव को पुनर्स्थापित करने वाला है।

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *