बाटला हाउस का दर्द : क्या सोनिया-सलमान माफी मांगेंगे
के. विक्रम राव
बाटला हाउस केस (2008) में अगले सोमवार (15 मार्च 2021) को दिल्ली के अतिरिक्त न्यायाधीश माननीय संदीप यादव संभवत: सरकारी वकील एटी अंसारी की मांग मानकर हत्यारे मोहम्मद आरिज खान को फांसी की सजा सुना दें। आखिर इसी आजमगढ़वासी सुन्नी कातिल ने दिल्ली पुलिस इंस्पेक्टर (अलमोड़ा में जन्मे) मोहनचन्द्र शर्मा की निर्मम हत्या की थी। लेकिन इस वीभत्स सियासी प्रकरण का पटाक्षेप मात्र इतने से नहीं हो जायेगा। असली दोषियों को जन—अदालत के कटघरे में खड़ा करना होगा। इनमें शामिल हैं वे सभी राजनेता (राजनेत्री भी), इस्लामी तंजीमें, मानवाधिकार के कथित डुग्गी पीटने वाले, गंगाजमुनी ढकोसलेबाज, मुसलमान वोट बैंक के ठेकेदार तथा अन्य लोग जो शहीद इंस्पेक्टर शर्मा की विधवा माया शर्मा को मुआवजा देने की आलोचना करते रहे।
इंस्पेक्टर शर्मा की पत्नी माया तथा बेटे दिव्यांशु ने मुआवजे की राशि ठुकरा दी। वे आहत थीं क्योंकि आतंकी आरिज के ये हमदर्द पुलिस को फर्जी मुठभेड़ का दोषी कह रहे थे। अर्थात ये सियासतदां लाश पर तमाशा कर रहे थे। आज तकाजा है समय का कि इस बलिदानी कुटुम्ब को अपार क्षति की पूर्ति (भरपायी संभव न हो) अवश्य की जाये।
तब कांग्रेस—शासित दिल्ली के कर्णधार, महिला मुख्यमंत्री स्व. शीला दीक्षित), प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह, सत्तासीन पार्टी की मालकिन सोनिया गांधी, तत्कालीन सरकार के असली मालिक सांसद राहुल गांधी आदि थे। ये सब बाटला हाउस मुठभेड़ को जाली करार देकर धर्म—मजहब के नाम पर एक मानवीय त्रासदी की तिजारत कर रहे थे।
याद कर लें फिर इस हृदय विदारक घटना को। आजमगढ़, इन हत्यारों की जन्मभूमि और कर्मभूमि, से एक पूरी लम्बी रेलगाड़ी में, भारी भरकम भाड़ा सरकार को भुगतान कर, हजारों लोगों को बटोरकर दिल्ली ले जाया गया था। आजमगढ़ उलेमा काउंसिल वाले ने 29 जनवरी 2009 के दिन जंतर—मंतर प्रदर्शन स्थल पर सभा की थी। एक घिनौना माहौल बनाया था, मजहब के नाम पर।
इसी आरिज खान, जिस पर 15 लाख रुपये का ईनाम था, ने लखनऊ अदालत, अयोध्या तथा वाराणसी में धमाके किये थे। वह बम बनाने में माहिर है। आरिज खान उर्फ जुनैद दसवीं तक आजमगढ़ में पढ़ाई करने के बाद अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में प्रवेश लेने गया। लेकिन फेल हो गया। आरिज के साथ दूसरे आतंकी आतिफ अमीन, आसादुल्ला अख्तर उर्फ हड्डी, मिर्जा शादाब बेग, मोहम्मद हाकिम और अजहर भी थे, वे भी फेल हो गए। यहीं पर पहली बार आरिज खान और इंडियन मुजाहीद्दीन के सरगना आतिफ अमीन की मुलाकात हुई थी। इसके बाद आरिज खान ने 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए तैयारी की, लेकिन दाखिला लेने में विफल रहा। फिर वह दिल्ली के लाजपत नगर में आकर मामा के पास रहने लगा और फिर मुज्जफरनगर में बीटेक में दाखिला लिया। सारी शिक्षा का लाभ विध्वंसक कार्यवाही में किया।
इंडियन मुजाहिदीन के आतंकी आतिफ अमीन ने साल 2005 में आरिज को पाकिस्तान जाकर 40 दिन की हथियार चलाने की ट्रेनिंग के बारे में बताया और आतंकी आमिर रेजा खान की मुलाकात करायी। इसी के बाद आतिफ अमीन के कहने पर आरिज खान और मिर्जा शादाब बेग जेहाद के लिए इंडियन मुजाहीद्दीन में शामिल हुए।
जिन राजनेताओं ने बाटला हाउस मुठभेड़ में इन आतंकियों से लगाव और जुड़ाव दर्शाया था वे भली भांति जानते थे कि ये शातिर भारतद्रोही राष्ट्र तक सीमित नहीं हैं। इनके तार सीधे आलमी खलीफा मोहम्मद अबू बकर अल बगदादी से जुड़े थे। इस अबू बकर ने इस्लामिक स्टेट आफ ईराक एण्ड सीरिया (आईएसआईएस) की स्थापना की थी। हजारों निर्दोष स्वराष्ट्र प्रेमी मुसलमानों को मार डाला था। इसकी इकाईयां केरल तथा यूपी में गठित हुयीं
वे सब सराईमीर (आजमगढ़) से संबंधित रहे। सराईमीर कस्बा संपन्नता में भारत का दुबई माना जाता है। इसी जगह सांसद योगी आदित्यनाथ पर जानलेवा हमला हो चुका है। मोटरकार बदल लेने के कारण योगीजी तब बच गये थे।
योगीजी अभी तक आजमगढ़ से आतंक का गढ़ होने के पाप का निवारण नहीं कर पाये। अत: समाजवादी पार्टी के लोकसभा सदस्य तथा मुसलमान वोट बैंक के स्वामी अखिलेश यादव से अपेक्षा है कि आजमगढ़ को वे सेक्युलर बनायें। अपने वोटरों में भारतभक्ति सृजाएं।
कुछ बात अब सोनिया गांधी की भी। सलमान खुर्शीद नामी गिरामी विधिवेत्ता हैं। बाटला हाउस मुठभेड़ में मोहम्मद साजिद और आतीफ अमीन के मारे जाने पर सलमान साहब अपनी पार्टी अध्यक्षा सोनिया गांधी के पास गये थे। मुठभेड़ को फर्जी बताकर एक हृदय विदारक तस्वीर पेश की , इसके बाद सोनिया गांधी का करुण क्रन्दन समाचार पत्रों की हेडलाइन बना। हत्यारों के प्रति अपार स्नेह तथा सहानुभूति प्रदर्शित की गई।
अत: वकील सलमान का अब मजहबी कर्तव्य है कि वे न्यायालय का निर्णय देखकर भारत राष्ट्र से क्षमायाचना करें। सोनिया गांधी से भी खेद व्यक्त करायें।
ऐसी ही अपील ममता बनर्जी से भी है। वे आज बांग्लादेशी घुसपैठियों के बल पर कोलकाता में दहाड़ रही हैं। बाटला हाउस प्रसंग पर आतंकियों के प्रति उनके हमदर्दी भरे बयान सामने हैं। मर्यादा की मांग है कि वे माया शर्मा से मोहनचन्द्र शर्मा की मृत्यु पर तेरह वर्षों बाद ही सही, वे खेद व्यक्त करें। इंसानियत का यही तकाजा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये लेखक के अपने विचार हैं।)