बात समान नागरिक संहिता की

बात समान नागरिक संहिता की

बात समान नागरिक संहिता की

समान नागरिक संहिता लागू करने का मुद्दा एकबार फिर चर्चा में है। 9 जुलाई, 2021 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने तलाक संबंधी एक मुकदमे की सुनवाई करने के दौरान देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की आवश्यकता बताई। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह की पीठ ने इस संबंध में केन्द्र सरकार को जरूरी कार्रवाई करने का निर्देश दिया।

उल्लेखनीय है कि संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य को निर्देश दिया गया है कि वह सभी धर्मों के लोगों पर समान व्यक्तिगत कानून लागू करे। विवाह, तलाक, भरण-पोषण, संपत्ति का बंटवारा, दत्तक, उत्तराधिकार आदि से संबंधित नियम-कानून व्यक्तिगत विधि के क्षेत्र में आते हैं। वर्तमान में इससे संबंधित कानून हिन्दू, मुसलमान, ईसाई आदि धर्मों के लोगों के लिए अलग-अलग हैं। विद्वान न्यायाधीश प्रतिभा सिंह ने कहा कि यह सही समय है जब समान नागरिक संहिता लागू कर दी जानी चाहिए।

1955-56 में जब हिंदुओं की व्यक्तिगत विधि में व्यापक सुधार करते हुए कानून बनाए गए थे तब मांग उठी थी कि सभी धर्मों की व्यक्तिगत विधि में सुधार करते हुए एक समान विधि लागू की जाए, परन्तु ऐसा नहीं हुआ।

1985 के प्रसिद्ध शाहबानो मामले में देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी समान विधि बनाने पर जोर दिया था। परन्तु भाजपा को छोड़कर कांग्रेस सहित अन्य राजनैतिक दल मुस्लिम तुष्टीकरण एवं वोटों की राजनीति के चलते समान नागरिक संहिता का समर्थन नहीं करते दिखाई देते हैं।

मुसलमान आमतौर पर समान नागरिक संहिता को अपने धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं। उनका कहना है कि मुसलमान कानून ‘शरीयत’ किसी का बनाया हुआ नहीं है बल्कि यह अल्लाह के आदेश के अनुसार है। परन्तु विधि आयोग के पूर्व सदस्य तथा मुस्लिम विधि पर कई पुस्तकों के लेखक प्रोफेसर ताहिर महमूद कहते हैं, “मुसलमान जिसे अपना धार्मिक कानून समझ रहे हैं वह वास्तव में तो अंग्रेजों का तैयार किया हुआ है और कई जगह वह कुरान के आदेश के विपरीत भी है।”

भारत के अतिरिक्त संसार में शायद ही कोई देश होगा जहां अलग-अलग सम्प्रदायों के लिए अलग-अलग कानून हों। अमेरिका व अन्य पश्‍चिमी देशों में एक ही व्यक्गित कानून लागू है जिसे वहां रह रहे मुसलमान, हिंदू सहित सभी को मानना होता है।

संविधान सभा में कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने कहा था, “तुर्की या मिस्र आदि किसी भी उन्नत मुस्लिम देश में किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय को पृथक विधि का अधिकार प्राप्त नहीं है, जैसे अधिकार भारतीय अल्पसंख्यकों को प्राप्त हैं।” प्रख्यात कानूनविद एवं विद्वान अल्लादिकृष्णास्वामी अय्यर ने भी संविधान सभा में बोलते हुए कहा, “यह आशंका निराधार है कि समान नागरिक संहिता लागू की गई तो कोई धर्म खतरे में पड़ जाएगा।”

व्यक्तिगत विधि विषय संविधान की समवर्ती सूची में होने के कारण कोई एक या अधिक राज्य भी अपने राज्य के लिए समान नागरिक संहिता लागू कर सकते हैं। दृष्टव्य है कि गोवा राज्य में 1962 से ही सभी धर्मों के लोगों पर समान व्यक्तिगत विधि लागू है जिसका पालन करने में हिदू, मुसलमान सहित किसी भी धर्मावलम्बी को कभी कोई ऐतराज नहीं हुआ। इसकी प्रशंसा करते हुए भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने 28 मार्च, 2021 को गोवा उच्च न्यायालय के एक भवन का उद्घाटन करते हुए कहा, “मुझे खुशी है कि गोवा के पास वह है जिसकी कल्पना संविधान निर्माताओं ने पूरे देश के लिए की थी।”

हाल ही में 60 वें गोवा मुक्ति दिवस पर भारत के राष्ट्रपति  रामनाथ गोविंद ने भी कहा, “गोवा के लिए यह गर्व की बात है कि उसके नागरिकों ने समान नागरिक विधि को अपनाया।”

हैदराबाद की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो.फैजान मुस्तफा कहते हैं, “हमें देखना होगा कि क्या हमारा कानून ‘जेंडर जस्ट’ (लैंगिक न्यायोचित) है? क्या यह महिलाओं के साथ न्याय करता है? हमें समान नागरिक संहिता नहीं बल्कि ‘जस्ट कोड’ (न्यायोचित संहिता) चाहिए।” डॉ. फैजान मुस्तफा की बात में दम है। वे आगे कहते हैं कि हमारा मुख्य उद्देश्य व्यक्तिगत विधि में सुधार करना है। यदि एक झटके से (समान नागरिक संहिता) लागू करेंगे तो कट्टरपंथी इस मुद्दे को हाईजैक कर लेंगे। अच्छा यह होगा कि छोटे-छोटे सुधार किए जाएं। कभी विवाह की उम्र संबंधी, तो कभी तलाक के बारे में, तो कभी शादी के रजिस्ट्रेशन के बारे में सुधार कर दें। लगता है मोदी सरकार ने तीन तलाक पर प्रतिबंध का कानून लाकर इसी दिशा में अपने कदम बढ़ाए हैं। बम्बई उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश तथा भारत के पूर्व विदेश मंत्री एमसी छागला ने समान नागरिक संहिता सहित सभी नीति निर्देशक सिद्धान्तों को महत्वपूर्ण बताते हुए लिखा है, “यदि इन सिद्धान्तों को लागू कर दिया जाए तो हमारा देश वास्तव में धरती का स्वर्ग बन जाएगा।”

आशा की जानी चाहिए कि केन्द्र और राज्य सरकारें पूर्व न्यायाधीश छागला के इस कथन पर ध्यान देंगी और समान नागरिक संहिता की दिशा में अपने कदम बढ़ाएंगी। •

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