पुष्कर को फिर मिलेगी आध्यात्मिक पहचान, बनेगा ब्रह्मालोक कॉरिडोर

पुष्कर को फिर मिलेगी आध्यात्मिक पहचान, बनेगा ब्रह्मालोक कॉरिडोर

पुष्कर को फिर मिलेगी आध्यात्मिक पहचान, बनेगा ब्रह्मालोक कॉरिडोरपुष्कर को फिर मिलेगी आध्यात्मिक पहचान, बनेगा ब्रह्मालोक कॉरिडोर

जयपुर। ब्रह्माजी की तपोस्थली पुष्कर ने लम्बे दुर्दिन देखे हैं। पहले इसे औरंगजेब ने रौंदा, मंदिर तोड़े, फिर स्वाधीनता के बाद भी यह उपेक्षित ही रही। लेकिन अब इसे एक सांस्कृतिक केंद्र के रूप में पुनर्जीवित करने की तैयारी है। इसके आध्यात्मिक महत्व को संरक्षित करने के लिए दिव्य पुष्कर के रूप में यहॉं ब्रह्मालोक कॉरिडोर बनाया जाएगा। इसका निर्माण उज्जैन के महाकाल लोक की तर्ज पर किया जाएगा।

पुष्कर का इतिहास
पुष्कर एक प्राचीन नगरी है। पद्मपुराण और वाल्मीकि रामायण में भी इसका उल्लेख मिलता है। पुष्कर को ब्रह्माजी की तपोस्थली भी कहा जाता है, उन्होंने पांच दिन कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक यहॉं यज्ञ किया था। शास्त्रों के अनुसार, जब वे यहॉं यज्ञ के लिए आए तब वज्रनाभ नामक राक्षस का आतंक था। वह बच्चों को पैदा होते ही मार देता था। ब्रह्माजी ने कमल के पुष्प से प्रहार कर वज्रनाभ का अंत कर दिया। प्रहार से पुष्प टूट कर धरती पर तीन स्थानों पर गिरा। इन तीनों ही स्थानों पर जलधारा फूटने से सरोवरों की उत्पत्ति हुई, जो ज्येष्ठ पुष्कर, कनिष्ठ पुष्कर और मध्य पुष्कर कहलाए। ज्येष्ठ पुष्कर में ब्रह्मा जी ने यज्ञ किया। जिससे इस सरोवर को आदि तीर्थ होने का गौरव मिला। ब्रह्माजी का विश्व का एकमात्र मंदिर यहीं पर स्थित है।

वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड सर्ग 62 श्लोक 28 में विश्वामित्र के भी यहाँ तप करने की बात कही गई है और सर्ग 63 श्लोक 15 के अनुसार मेनका यहाँ के पावन जल में स्नान के लिए आई थीं। पांडुलेन गुफा के लेख में, जो ई. सन् 125 का माना जाता है, में उषमदवत्त का नाम आता है। यह विख्यात राजा नहपाण का दामाद था और इसने पुष्कर आकर 3 हजार गायों एवं एक गाँव का दान किया था। इन लेखों से पता चलता है कि प्राचीन काल से पुष्कर तीर्थस्थान के रूप में विख्यात था।

पुष्कर सरोवर और ब्रह्मा मंदिर का वर्तमान स्वरूप
ज्येष्ठ सरोवर, जहॉं ब्रह्माजी ने यज्ञ किया था, आज अर्द्ध गोलाकार झील के रूप में दिखाई देता है। यह सरोवर 52 घाटों और 500 से अधिक मंदिरों से घिरा हुआ है। इन्हीं में एक है ब्रह्माजी का मंदिर। संगमरमर से निर्मित, चाँदी के सिक्कों से जड़ित, लाल शिखर और हंस की छवि वाले मंदिर में ब्रह्माजी की चतुर्मुखी प्रतिमा गर्भगृह में स्थापित है और जूते पहने सूर्य भगवान की मूर्ति प्रहरी की भाँति खड़ी है। यह मंदिर 14वीं सदी का बताया जाता है। इस मंदिर को भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग द्वारा 4 मार्च 2005 को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया।

पुष्कर सरोवर और उसके घाट, जहॉं बनेगा ब्रह्मालोक कॉरिडोरपुष्कर सरोवर और उसके घाट

पुष्कर सरोवर को तीर्थों का राजा कहा जाता है। इसके 52 घाटों के नाम गऊ घाट, ब्रह्म घाट, वराह घाट, बद्री घाट, सप्तऋषि घाट, तरणी घाट आदि हैं। इनमें से अधिकांश 300 वर्ष पुराने हैं। घाटों का निर्माण विभिन्न राजघरानों की ओर से भी करवाया गया है, जैसे ग्वालियर घाट, जोधपुर घाट, कोटा घाट, भरतपुर घाट, जयपुर घाट आदि। श्रद्धालु यहॉं पर अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने आते हैं।

कॉरिडोर मार्ग
कॉरिडोर में जयपुर घाट से बाईजी मंदिर, नया रंगजी मंदिर, वराह भगवान मंदिर, पुराना रंगजी मंदिर, राम-लक्ष्मण मंदिर, गऊघाट, बड़ा गणेश मंदिर होते हुए ब्रह्मा मंदिर तक के मुख्य मार्ग को शामिल किया गया है। कॉरिडोर निर्माण में केंद्र और राज्य सरकार की भागीदारी रहेगी। प्रति वर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर यहॉं लाखों श्रद्धालु आते हैं। कॉरिडोर बनने के बाद इनकी संख्या में भारी वृद्धि होगी, जिससे राज्य सरकार का खजाना भी भरेगा।

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