भगवान महावीर के संदेशों की आज के परिपेक्ष्य में आवश्यकता विषय पर व्याख्यान का आयोजन
भगवान महावीर के संदेशों की आज के परिपेक्ष्य में आवश्यकता विषय पर व्याख्यान का आयोजन
जयपुर, 8 अक्टूबर। आज प्रात: जयपुर के मानसरोवर स्थित आदिनाथ दिगंबर जैन भवन में भगवान महावीर स्वामी और उनके संदेशों की आज के परिपेक्ष्य में आवश्यकता पर व्याख्यान हुआ, जिसमें दिगंबर जैन संतों परमपूज्य श्री सर्वानंद जी महाराज, श्री जिनानंद जी महाराज (प्रखर वक्ता और मुख्य व्याख्यान दाता) और परम पूजनीय पूर्णानंद जी महाराज का सानिध्य लोगों को प्राप्त हुआ। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता संत जिनानंद महाराज ने भगवान महावीर के जीवन उद्देश्य को सरलता और प्रखरता से जनमानस के सामने प्रस्तुत किया तथा महावीर स्वामी के जीवन परिचय व शिक्षाओं का आज के परिपेक्ष्य में महत्व समझाते हुए लोगों की जिज्ञासाओं को दूर किया। उन्होंने भगवान महावीर के द्वारा दिए गए पांच सूत्रों का भी वर्णन किया। उन्होंने भगवान महावीर के सिद्धांतों – अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकांत, स्यादवाद व स्वानुशासन, वर्तमान परिपेक्ष्य में कितना महत्व रखते हैं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सत्य एक ही है, सत्य तक पहुंचने के रास्ते अलग अलग हैं। महाराज ने बताया कि वे बचपन में संघ की शखाओं में जाया करते थे। अनुशासन में रहना तथा देशहित में कार्य करना संघ की प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि संघ की स्थापना को 100 वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं। वर्तमान में संघ ने प्रत्येक क्षेत्र में अच्छा कार्य किया है।
वहीं पूर्व में भगवान महावीर की निर्वाण प्राप्ति के 2550 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह ने कहा था कि भगवान महावीर ने कार्तिक अमावस्या के दिन अष्टकर्मों का नाश करके निर्वाण प्राप्त किया था। जनमानस को ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जानी वाली इस दिव्य विभूति ने आत्मकल्याण तथा समाज कल्याण में अपने जीवन को समर्पित कर मानवता पर परम उपकार किया है।
उन्होंने कहा कि मानवता के कल्याण को दृष्टिगत रखते हुए भगवान महावीर ने सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य- पाँच सूत्र दिए थे, जिनकी सार्वकालिक प्रासंगिकता है। उन्होंने नारी शक्ति को सम्मानजनक स्थान प्रदान करते हुए, उन्हें खोया हुआ गौरव लौटा कर समाज में लैंगिक भेदभाव मिटाने का युगांतरकारी कार्य किया था।
अपरिग्रह के संदेश से उन्होंने अपनी आवश्यकताओं को सीमित करते हुए संयम पूर्ण जीवन जीने तथा अपनी अतिरिक्त आय को समाज के हित में समर्पित करने की समाज को दिशा दी। हमारी वर्तमान जीवन शैली से पर्यावरण को हो रही हानि से उसे बचाने में अपरिग्रह का सूत्र बहुत महत्वपूर्ण है। अहिंसा, सह-अस्तित्व और प्राणिमात्र में समान आत्मतत्व के दर्शन करने की उनकी शिक्षा का अनुपालन विश्व के अस्तित्व के लिए परम आवश्यक है। भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित कर्म सिद्धांत में अपने कष्टों और दुःखों के लिए दूसरों को उत्तरदायी ठहराने से बचने तथा अपने कर्म को ही कर्ता के सुख-दुःख का कारण मानने का सन्देश निहित है।
“स्यादवाद” भगवान महावीर का एक प्रमुख सन्देश है। अनेक प्रकार के द्वन्द्वों से पीड़ित मानवता को बचाने तथा शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए स्यादवाद आधार बन सकता है। वर्तमान को वर्द्धमान की बहुत आवश्यकता है। सभी स्वयंसेवक उनके उपदेशों को जीवन में चरित्रार्थ करेंगे। समाज से यह अपेक्षा है कि भगवान महावीर की शिक्षा को अंगीकार करते हुए विश्व मानवता के कल्याण में स्वयं को समर्पित करे।