भरतपुर में बन रही स्वदेशी राखियों की कई प्रदेशों में भारी मांग
भरतपुर, 08 जुलाई। भाई-बहन के स्नेह का पवित्र पर्व रक्षाबंधन आने वाला है। इस बार भरतपुर में बन रही स्वदेशी राखियों की कई प्रदेशों में भारी मांग है। अब तक राखियों के बाजार पर चीन का एकाधिकार था। देश के अधिकांश व्यापारी बनी बनाई राखियां चीन से आयात करते थे। देश में निर्मित राखियों के लिए कच्चा माल भी चीन से ही आता था। लेकिन इस बार देश की जनता चायनीज सामान का मुखर होकर विरोध कर रही है। व्यापारी चायनीज राखियों के बजाय देश में निर्मित राखियों को ही प्राथमिकता दे रहे हैं। इसके लिए विकल्प भी तलाशे जा रहे हैं।
ऐसे में आत्मनिर्भर भारत अभियान से प्रेरित होकर भरतपुर निवासी एक दंपत्ति ने स्वदेशी राखियां बनाने का बीड़ा उठाया है। ये राखियां गाय के गोबर – गोमूत्र आदि से मिश्रित सामग्री से कलाकृति तैयार कर बनाई जा रही हैं। इन्हें गोमय राखियां नाम दिया गया है।
श्रीगोपेश पंचगव्यशाला एवं शोध संस्थान, भरतपुर द्वारा देशी गोवंश को संरक्षित कर उसके गोबर से विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां व उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं। इनके अंदर तुलसी के बीज डालकर, सुखाकर रंगने के बाद, धागे से जोडक़र राखियों का निर्माण किया जा रहा है।
राखी बनाने के कार्य से जुड़ी हिमानी बताती हैं कि प्रधानमंत्री द्वारा स्वदेशी के उपयोग के आह्वान पर 3 अगस्त को मनाए जाने वाले रक्षाबंधन पर्व पर स्वदेशी राखी की बाजार में मांग रहेगी। इसे देखते हुए गोमय राखी बनाने का काम शुरू किया गया है। हिमानी ने बताया कि गोमय राखी के उपयोग के पश्चात उसे गमले में रखने से कुछ दिनों में तुलसी का पौधा अंकुरित होगा। गाय का गोबर रेडिएशन रोधक होता है, ऐसे में गोमय राखी रेडिएशन को भी कम करने में सहायक होगा। इसके साथ ही जो राखियां प्लास्टिक सामग्री से बनती हैं उनकी बजाय गोमय राखी का उपयोग करके पर्यावरण दूषित नहीं होगा।
जडख़ोह धाम के महामण्डलेश्वर राजेन्द्रदास महाराज व संघ के स्वयंसेवकों की प्रेरणा से भरतपुर में डेढ़ साल पूर्व स्थापित पंचगव्यशाला एवं शोध संस्थान में लगभग तीन दर्जन देशी गोवंश का पालन किया जाता है। जहां निकलने वाले पंचगव्य के अलावा गोमूत्र व गोबर का उपयोग देवी-देवताओं मूर्तियां, घड़ी, गमले, फ्रेम व राखी आदि बनाने में किया जा रहा है। सालभर पूर्व शुरू किए गए इस अभिनव प्रयोग से निर्मित उत्पादों की मांग उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश व दिल्ली में भारी मांग है।
शोध संस्थान से जुड़े विजय ओझा बताते हैं कि पिछले वर्ष पुणे, उज्जैन, वाराणसी, दिल्ली व जयपुर में गोमय राखियों की मांग पर आपूर्ति की गई थी। इस बार अभी से ऑर्डर आने शुरू हो गए हैं। ऐसे में लगभग 25 प्रकार की राखियों का निर्माण किया जा रहा है। इस प्रकार स्वदेशी को बढ़ावा देने के लिए यह कार्य किया जा रहा है। इसके माध्यम से दर्जनभर लोगों को गोमय उत्पाद बनाने का काम देकर रोजगार भी दिया जा रहा है।