भरत भूमि की अभिलाषा
इन्द्रनील पोळ
इन दशाननों के परम अहं को तूने ही तो नाशा है,
हे वेदपुरुष ! अब भरत भूमि की रामराज्य अभिलाषा है।
अराजकों की हुंकारों में शब्द रहित एक ताल,
निर्णायकता की कगार पर अन्धकार का जाल।
सव्यसाची का शस्त्रदमन ही पौरुष की परिभाषा है
हे वेदपुरुष ! अब भरत भूमि की रामराज्य अभिलाषा है।
भार्गव का हो क्षात्रदमन या राघव का वनवास,
शंकर का तांडव हो या हो वामन का पदन्यास।
कुरुक्षेत्र का शंखनाद तो नवता की अभिभाषा है
हे वेदपुरुष ! अब भरत भूमि की रामराज्य अभिलाषा है।