नगर, ग्राम और वन के वासी, सब भारत के मूल निवासी
क्षिप्रा
भारतीय सनातन संस्कृति प्रारंभ से ही आक्रांताओं के विभिन्न षड्यंत्रों के जाल से जूझ रही है। यह षड्यंत्र सहज से दिखाई नहीं देते गहराई से देखने पर हमें ज्ञात होते हैं। अंग्रेजों ने भी हमारी स्वर्णिम संस्कृति को आमूलचूल नष्ट करने के पूर्ण प्रयास किए। भेद डालकर शासन करने की नीति अपनाकर सूक्ष्म अर्न्तद्वन्दों को गहरा कर अलगाव को जन्म देने वाले व्याख्याऐं गढ़ीं। अंग्रेजी सत्ता में ईसाई मिशनरियों ने व्यापक स्तर पर कन्वर्जन कराया, जिसमें सबसे अधिक प्रभावित हुआ भारत का वनांचल में रहने वाला समाज।
देश को स्वतंत्र हुए 75 वर्ष होने जा रहे हैं, किंतु वनांचल में रहने वाला सनातनी समाज आज भी इन मिशनरियों के निशाने पर है। यह विभिन्न प्रकार की आर्थिक, शैक्षिक व स्वास्थ्य सेवाओं की आड़ लेकर हिन्दुओं के कन्वर्जन का कार्य कर रहे हैं। इनके इस कार्य में देश के ऐसे स्वार्थी, वामविचार प्रेरित संस्थाएं व व्यक्ति लगे हुए हैं जो भारत को विघटित देखना चाहते हैं।
जनजाति वर्ग हिन्दू नहीं है, ऐसी भ्रामक धारणाएं युवाओं के मध्य सोशल मीडिया के माध्यम से फैलायी जाती हैं। सतत दुष्प्रचार अभियान चलाए जा रहे हैं। इनके माध्यम से विदेशी शक्तियां भी प्रच्छन्न रूप से अपना जाल शनै शनै भारत में फैला रही हैं। भावना प्रधान होने से जनजाति हिंदू समाज आसानी से इनका शिकार बन जाता है।
इसीलिए पिछले 25 वर्षों से विश्व मूल निवासी दिवस जैसा वैश्विक षड्यंत्र कतिपय राजनीतिक दलों के समर्थन से भारत में भी फैलाया जा रहा है। भारत को अपना देश मानने वाला व संपूर्ण प्रकृति की आराधना करने वाला समाज अहिन्दू कैसे हो सकता है? हिन्दू चाहे गांवों में रहे या कस्बों में, नगरों में रहे या वनों में, सभी पंच तत्वों को पूजते हैं। सभी का मूल तो सनातन ही है।
इस प्रकार सभी तथ्यों और संदर्भों से स्पष्ट है कि जनजातीय समाज हिन्दू समाज के अंतर्गत ही है। लेकिन विखंडनकारी असामाजिक वाम शक्तियां उन्हें मूल निवासी के षड्यंत्र में फंसाकर हिन्दू से अलग करने का प्रयास कर रही हैं। ये शक्तियां प्रथम चरण में ऐसे अलगाव के बीज बो कर फिर दूसरे चरण में प्रलोभनों द्वारा कन्वर्ट करके अपना लक्ष्य प्राप्त करना चाहती हैं।
इतना सब होने के पश्चात भी भील, मीणा व गरासिया हिन्दू समाज के अभिन्न अंग थे, हैं और रहेंगे। दुष्प्रचार व लालच से कुछ लोग क्षणिक प्रभावित हो सकते हैं, किन्तु उनकी रगों में प्रवाहमान तो सनातन संस्कृति ही है।