भारत के विकसित राष्ट्र बनने में अवरोध कहॉं?

भारत के विकसित राष्ट्र बनने में अवरोध कहॉं?

बलबीर पुंज

भारत के विकसित राष्ट्र बनने में अवरोध कहॉं?भारत के विकसित राष्ट्र बनने में अवरोध कहॉं?

हम में से अधिकांश लोग भारत को शीघ्र ही एक विकसित राष्ट्र के रूप में देखना चाहते हैं। इस संकल्प को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार दोहराया है। वर्तमान समय में भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और जल्द ही वह अमेरिका-चीन के बाद तीसरी आर्थिक महाशक्ति भी बनने वाला है। लेकिन क्या विकसित राष्ट्र बनना इतना आसान होगा? क्योंकि कई बाहरी शक्तियां देश की प्रगति को बाधित करने के लिए योजनापूर्वक प्रयास कर रही हैं, जिनका कुछ हद तक उल्लेख मैंने अपने पिछले कॉलम ‘भीतरी और बाहरी दुश्मनों से सावधान!’ में किया था। लेकिन अड़चनें यहीं तक सीमित नहीं हैं। हम स्वयं भी अपने कई पूर्वाग्रहों और आदतों के कारण देश की उन्नति के मार्ग में जाने-अनजाने में रोड़े अटका रहे हैं।

मैं कुछ दिन पहले पारिवारिक कारणों से पंजाब में गुरदासपुर स्थित अपने पैतृक गांव लालोवाल गया था। मेरी वापसी अमृतसर रेलवे स्टेशन से चलने वाली ‘वंदे भारत’ ट्रेन से थी, जो कि निसंदेह एक अत्याधुनिक, सुविधाजनक और उच्च स्तरीय है। परंतु मुझे स्टेशन में साफ-सफाई का अभाव दिखा। ऊपर की ओर जाने वाली स्वचालित सीढ़ी न केवल खराब थी, बल्कि उस पर जमी धूल की मोटी परत से अनुमान लगाना कठिन नहीं था कि इसकी मरम्मत लंबे समय से नहीं हुई है। जगह-जगह पान-गुटखे की पीक इस स्थिति को और भी बदसूरत बना रही थी। यह सब केवल अमृतसर स्टेशन तक सीमित नहीं है। यात्रा के दौरान जितनी भी बार मेरी दृष्टि बाहर गई, उसमें रिहायशी क्षेत्र से सटी रेलवे पटरी के दोनों ओर कूड़े का अंबार दिखा। अराजक तत्वों द्वारा ट्रेनों को क्षतिग्रस्त करना और उसमें लगी वस्तुओं की चोरी, इस स्थिति को और गंभीर बना देता है।

यह स्थिति केवल रेलवे संपत्ति तक सीमित नहीं है। गत दिनों उत्तरप्रदेश से दो अलग-अलग घटनाएं मीडिया में सामने आईं। इसमें पहला मामला जेवर में निर्माणाधीन अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट से आठ किलोमीटर दूर आरआर कॉलोनी स्थित जर्जर सरकारी स्कूल से जुड़ा था। इसमें बच्चों के लिए सीटें टूटी मिलीं। शौचालय गंदे मिले। स्कूल परिसर में कूड़ा बिखरा और पानी का हैंडपंप गंदगी से भरा हुआ था। जब यह समाचार सार्वजनिक हुआ, तब प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए स्कूल के प्राध्यापक और एक शिक्षक को निलंबित कर दिया। यह दुखद है कि जहां एक ओर साधन संपन्न परिवार अपने बच्चों को विश्वस्तरीय स्कूलों में पढ़ने भेजते हैं, वहीं दूसरी ओर बहुत बड़ी संख्या उन लोगों की भी है, जिनके बच्चों को जेवर जैसे स्कूलों में बुनियादी शिक्षा के साथ मूलभूत सुविधा तक उपलब्ध नहीं है।

दूसरा मामला प्रशासनिक भ्रष्टाचार की पोल खोलता है। उत्तरप्रदेश के बलिया स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर पैरा-मेडिकल बनाने का भंडाफोड़ हुआ है। मामले में 15 आरोपी कर्मचारियों के विरुद्ध मामला दर्ज किया गया है। इस फर्जीवाड़े का खुलासा तब हुआ, जब बलिया के मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने स्वास्थ्य केंद्रों में तैनात नर्स से निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन) के रोगियों के लिए पानी में ओआरएस मिलाने के अनुपात के बारे में साधारण प्रश्न पूछा, जिसे वे बता नहीं पाए। इस पर जब जांच समिति ने कर्मचारियों से अपने नियुक्ति से जुड़े दस्तावेज लाने को कहा, तो वे सभी फरार हो गए। उत्तरप्रदेश सरकार के चिकित्सा विभाग में तैनात नर्सों का वेतन लगभग ₹70,000 मासिक है। साफ है कि वर्षों से यह वित्तीय धोखाधड़ी हो रही है, जो कि बिना किसी उच्च-स्तरीय मिलीभगत के संभव नहीं है।

ये केवल दो ही उदाहरण हैं। हम जानते हैं कि इस तरह की स्थिति, कम-ज्यादा मात्रा में, देश के बाकी हिस्सों में भी है। इन समस्याओं का हल कोई रॉकेट-साइंस नहीं है। देश में कहीं भी कूड़ा-कचरा अपने आप पैदा नहीं होता। गंदगी अपने आप नहीं फैलती। भ्रष्टाचार अपने आप नहीं पनपता। इन सबका का मूल कारण सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों द्वारा अपने दायित्व का निर्वहन नहीं करना और आम लोगों की नागरिक कर्तव्य के प्रति उदासीनता है। चूंकि ये दोनों मिलकर एक बड़ा वोट बैंक बनाते है, इसलिए अधिकांश राजनीतिक दल इस विषय को मुद्दा बनाने से बचते हैं।

मुझे यह कहने में हिचक नहीं कि आज भी हमारे देश की शिक्षण व्यवस्था— पढ़ाई के लिए कम, नौकरियों की फैक्ट्रियां अधिक बनती जा रही है। अधिकतर लोगों में यह मानस घर कर गया है कि यदि उन्हें सरकारी नौकरी मिल गई, तो वे रिटायर होने तक बिना अधिक मेहनत के पद पर बने रहेंगे और उपयुक्त अवसर मिलने पर ऊपरी आमदनी का भी प्रबंध कर पाएंगे। इस सोच को दरअसल लोगों की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं, जिसमें लालच और रातोंरात अमीर बनने की चाह भी शामिल है— उसने परवान चढ़ाया है। निम्न स्तर की शिक्षा से अधिकांश युवा न केवल बेरोजगार रहते हैं, बल्कि आज की गलाकाट प्रतिस्पर्धा में वे किसी भी नए दौर के कौशल आधारित उद्योग-धंधे में रोजगार करने के लायक भी नहीं रहते। परिणामस्वरूप, इनमें से अधिकांश गैर-कानूनी तरीकों से जीवनयापन का तरीका ढूंढते हैं। बीते दिनों अमेरिका से अपमानित होकर स्वदेश लौटे दर्जनों अवैध प्रवासी भारतीय, इसी विसंगति की एक कड़ी हैं।

जिन सार्वजनिक अधिकारियों-कर्मचारियों पर प्रशासनिक नीतियों को अमलीजामा पहनाने का दायित्व होता है, उसका एक वर्ग बेईमान और अकर्मण्य है। उसमें उत्तरदायी होने का अभाव है। इसे बढ़ावा देने में आम नागरिकों की भी बराबर हिस्सेदारी है। ऊपर से कोई भी राजनीतिक दल समाज की इस कमजोरी पर चर्चा नहीं करता। देश में प्रत्येक वर्ग के लोग, चाहे वह छोटा हो या बड़ा— अक्सर कानून की धज्जियां उड़ाते हैं, कानून-व्यवस्था का मजाक उड़ाते हैं और यह सब करते हुए वे अपराधबोध से मुक्त भी होते हैं। यही समूह स्वार्थी-भ्रष्ट राजनीतिज्ञों की मिलीभगत करके सार्वजनिक संपत्ति की चोरी में भी शामिल होते हैं।

स्पष्ट है कि निचले स्तर पर भ्रष्टाचार, लोगों में नैतिकबोध की कमी, मजहब प्रेरित सांप्रदायिकता, लचर शिक्षण व्यवस्था और प्रशासनिक अकर्मण्यता रूपी दुष्चक्र, जो दशकों से देश के सुनहरे भविष्य के समक्ष कुंडली मारकर बैठा है, उसके विरुद्ध निर्णायक कार्रवाई का समय आ गया है। देश में रोजगार के अवसर और समेकित विकास तभी संभव है, जब गुणवत्ता-युक्त और प्रतिस्पर्धात्मक शिक्षण व्यवस्था पर बल देने के साथ नौकरशाही और प्रशासनिक तंत्र का एक हिस्सा अकर्मण्यता और भ्रष्टाचार से मुक्त होकर ईमानदारी के साथ देश की सेवा में शामिल हो जाए। क्या निकट भविष्य में ऐसा संभव है?

(स्तंभकार ‘ट्रिस्ट विद अयोध्या’ और ‘नैरेटिव का मायाजाल’ पुस्तक के लेखक हैं)

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *