हम भारत के विचार को आगे बढ़ाने में सफल : डॉ. शैलेन्द्र
3 मार्च, जयपुर। हम छद्म विचारधाराओं के जाल को तोड़कर भारत के विचार को आगे बढ़ाने में सफल हो रहे हैं। आशा है कि सही तथ्यों को पढ़कर कुछ लोगों का छद्म सेक्युलरवाद का चश्मा उतरेगा, ये विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक डॉ. शैलेंद्र कुमार ने व्यक्त किए।
युवा लेखक तथा समाजसेवी याजवेंद्र यादव की पुस्तक ‘द जर्नी ऑफ अपीजमेंट 1921- 2021’ के विमोचन समारोह में बोलते हुए उन्होंने कहा कि तुष्टिकरण के कारण देश का विभाजन हुआ। देश के पहले शिक्षा मंत्री कभी स्कूल नहीं गए। वह मदरसे में पढ़े और वही विचार उन्होंने देश की शिक्षा पद्धति में लागू किए। आज भारत की विचारधारा का परचम पूरे विश्व में लहरा रहा है। देश-विदेश में भारत तथा भारतीय संस्कृति के लिए सम्मान व्यक्त किया जा रहा है। उसका कारण यह भी है कि हम छद्म विचारधाराओं के जाल को तोड़कर भारत के विचार को आगे बढ़ाने में सफल हो रहे हैं। भारत के विषय में आदर व्यक्त करते हुए कोफी अन्नान ने भी कहा था कि भारत के विचार से ही विश्व में शांति हो सकती है।
द जर्नी ऑफ अपीजमेंट 1921- 2021′ का विमोचन गुरुवार को ‘फोर पॉइंट्स बाय शेरेटन’ में हुआ। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक डॉ. शैलेंद्र कुमार, राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. जेपी सिंघल एवं हिंदू जागरण मंच के प्रांत अध्यक्ष प्रतापभानु सिंह उपस्थित थे।
इस अवसर पर डॉ. जेपी सिंघल ने कहा कि भारत को जानना आवश्यक है। भारत को जानोगे तो मानोगे और जब मानोगे तब भारत के बनोगे। कथित सेक्युलर भारत को मानते ही नहीं हैं। देश में छद्म तुष्टिकरण नीति स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले से चल रही है ताकि कतिपय वर्ग को लाभ हो। इसलिए हमें भारत का विमर्श खड़ा करना है।
हिंदू जागरण मंच के प्रांत अध्यक्ष प्रतापभानु सिंह ने कहा कि आज ऐसे तथ्यात्मक लेखन की आवश्यकता है जो छद्म सेक्युलरवाद द्वारा स्थापित भ्रांतियों को दूर कर सही तथा सत्य इतिहास को सामने लाए।
पुस्तक का परिचय देते हुए लेखक याजवेंद्र ने बताया कि खिलाफत को असहयोग आंदोलन से जोड़ने का विरोध डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर, राजेन्द्र प्रसाद, एनी बेसेंट जैसे प्रबुद्ध व्यक्तित्वों ने किया था। उनकी पुस्तक में ऐसे सत्यापित तथ्यों को शामिल करते हुए राष्ट्र को तोड़ने वाले छद्म सेक्युलर व छद्म लिबरल कारकों को उजागर किया गया है। 1921 से 2021 अर्थात् स्वतंत्रता पूर्व से लेकर वर्तमान समय तक 100 वर्षों से जारी तुष्टिकरण के कारण उपजे संत्रास, पीड़ा, सांस्कृतिक उत्पीड़न व राष्ट्र की अवमानना जैसी घटनाओं की क्रमवार विस्तृत पड़ताल की गई है।