भारत को अखंडित एवं सुरक्षित करने में संघ का योगदान

– वीरेंद्र पांडेय

न जाने कितने ऐसे अवसर आये जब देश विरोधी ताकतों ने संघ को कुचल डालने के अनेकों कुचक्र किये। परन्तु संघ बढ़ता रहा। संघ का विस्तार होता रहा। आज भारत की तेजस्विता पूरे विश्व में आलोकित हो रही है। इसके पीछे संघ का महत्वपूर्ण योगदान है। 

लगभग 7 -8 दशकों से अपने बारे में सांप्रदायिक हिंदूवादी, फ़ासीवादी तथा अन्य कई तरह की आलोचनाओं को सहते और सुनते हुए भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश के निर्माण में लगा रहा। जब जब देश पर संकट के बदल आये तब तब संघ के स्वयंसेवकों ने इस धरा को सुरक्षित करने में जान की बाजी लगा दी।

न जाने कितने ऐसे अवसर आये जब देश विरोधी ताकतों ने संघ को कुचल डालने के अनेकों कुचक्र किये। परन्तु संघ बढ़ता रहा। संघ का विस्तार होता रहा। आज जो भारत की तेजस्विता पूरे विश्व में आलोकित हो रही है, इसके पीछे भी संघ है। समरस समर्थ और स्वाभिमानी भारत के निर्माण में संघ के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। संघ से निकले स्वयंसेवक समाज जीवन के विविध क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं। वह जिस भी क्षेत्र में गये उन्होंने ऊंचाईयां पायी हैं।

विद्यार्थी, मजदूर, किसान, राजनीति और धर्म के क्षेत्र में संघ विचार से संबंध रखने वाले संगठन अपने -अपने क्षेत्र में शीर्ष पर हैं। इसके पीछे स्वयंसेवकों की ही ताकत है। सेवा के क्षेत्र में तो एक रिकॉर्ड है एक लाख 75 हजार से अधिक सेवा कार्य संघ द्वारा देशभर में चल रहे हैं।

इस देश के निर्माण में संघ के अनेकों योगदान है परन्तु इस आलेख के माध्यम से हम संघ के कुछ  उल्लेखनीय कार्यों  की आज  चर्चा करेंगे।

कश्मीर सीमा पर निगरानी, विभाजन पीड़ितों को आश्रय

विभाजन की विभीषिका में हिन्दुओं को पाकिस्तान से सुरक्षित निकालने में संघ के स्वयंसेवकों ने अमूल्य  योगदान  दिया। कश्मीर के महाराजा भारत में विलय नहीं करना चाहते थे। सरदार पटेल ने संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरूजी को सरकारी विमान से कश्मीर के महाराजा को मनाने के लिए भेजा।

अंतत: महाराजा हरिसिंह गुरू जी की  बात मान गये। जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बना। संघ के स्वयंसेवकों ने अक्टूबर 1947 से ही कश्मीर सीमा पर पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर बगैर किसी प्रशिक्षण के लगातार नज़र रखी। उसी समय, जब पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों ने कश्मीर की सीमा लांघने की कोशिश की, तो सैनिकों के साथ कई स्वयंसेवकों ने भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए लड़ाई में प्राण त्याग दिये। पाकिस्तान से जान बचाकर आए शरणार्थियों के लिए 3000 से ज़्यादा राहत शिविर संघ ने लगाए थे।

गोवा का विलय

संघ के स्वयंसेवक 1955 से गोवा मुक्ति संग्राम में प्रभावी रूप से शामिल हो हुए थे। दादरा, नगर हवेली और गोवा के भारत विलय में संघ की निर्णायक भूमिका थी।

21 जुलाई 1954 को दादरा को पुर्तगालियों से मुक्त कराया गया, ‪28 जुलाई को‬ नरोली और फिपारिया मुक्त कराए गए और फिर राजधानी सिलवासा मुक्त कराई गई।  संघ के स्वयंसेवकों ने 2 अगस्त 1954 की सुबह पुतर्गाल का झंडा उतारकर भारत का तिरंगा फहराया। गोवा में सशस्त्र हस्तक्षेप करने से नेहरू के इनकार करने पर जगन्नाथ राव जोशी के नेतृत्व में संघ के कार्यकर्ताओं ने गोवा पहुंच कर आंदोलन शुरू किया, जिसका परिणाम जगन्नाथ राव जोशी सहित संघ के कार्यकर्ताओं को दस वर्ष की सजा हुई। हालत बिगड़ने पर अंततः भारतीय सैनिकों को हस्तक्षेप करना पड़ा और 1961 में गोवा आज़ाद हुआ।

1962 का युद्ध

1962 में चीन के भारत पर हुए हमले के समय संघ के स्वयंसेवकों ने आसाम के तेजपुर जिले में चीन के रेंट गार्ड्स को रोकने के लिए भारतीय सैनिकों की तीन दिन तक मदद की। स्वयंसेवकों ने सरकारी कार्यों में और विशेष रूप से जवानों की मदद में पूरी ताकत लगा दी – सैनिक आवाजाही मार्गों की चौकसी, प्रशासन की मदद, रसद और आपूर्ति में मदद, और यहां तक कि शहीदों के परिवारों की संभाल तक की।

सेवा कार्यों से प्रभावित होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 26 जनवरी 1963 को गणतंत्र दिवस की परेड में भाग लेने का निमंत्रण दिया था। अल्प सूचना पर भी दिल्ली के 3500 से अधिक स्वयंसेवक परेड में शामिल हुए थे।

1965 के युद्ध में क़ानून-व्यवस्था संभाली

1965 में पाकिस्तान से युद्ध के समय तत्कालीन प्रधान मंत्री लालबहादुर शास्त्री ने भी संघ सहयोग मांगा था। शास्त्री जी ने क़ानून-व्यवस्था की स्थिति संभालने में मदद देने और दिल्ली का यातायात नियंत्रण अपने हाथ में लेने का आग्रह किया, ताकि इन कार्यों से मुक्त किए गए पुलिसकर्मियों को सेना की मदद में लगाया जा सके। घायल जवानों के लिए सबसे पहले रक्तदान करने वाले भी संघ के स्वयंसेवक थे। युद्ध के दौरान कश्मीर की हवाईपट्टियों से बर्फ़ हटाने का काम संघ के स्वयंसेवकों ने किया था।

आपातकाल

1975 से 1977 के बीच आपातकाल के ख़िलाफ़ संघर्ष और जनता पार्टी के गठन तक में संघ की  महत्वपूर्ण भूमिका थी। सत्याग्रह में हजारों स्वयंसेवकों की गिरफ्तारी के बाद संघ के कार्यकर्ताओं ने भूमिगत रह कर आंदोलन चलाना शुरु किया। आपातकाल के खिलाफ पोस्टर सड़कों पर चिपकाना, जनता को सूचनाएं देना और जेलों में बंद विभिन्न राजनीतिक कार्यकर्ताओं – नेताओं के बीच संवाद सूत्र का काम संघ कार्यकर्ताओं ने संभाला और लोगों के अंदर एक विश्वास का निर्माण कर देश के प्रति कर्त्तव्यों का पुनर्जागरण किया।

(लेखक सहायक आचार्य एवं शोधकर्ता हैं)

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