भुलोन गांव में 250 हिन्दू परिवारों के बौद्ध धर्म अपनाने का मामला : वास्तविकता या दुष्प्रचार?

भुलोन गांव में 250 हिन्दू परिवारों के बौद्ध धर्म अपनाने का मामला : वास्तविकता या दुष्प्रचार?

भुलोन गांव में 250 हिन्दू परिवारों के बौद्ध धर्म अपनाने का मामला : वास्तविकता या दुष्प्रचार?भुलोन गांव में 250 हिन्दू परिवारों के बौद्ध धर्म अपनाने का मामला : वास्तविकता या दुष्प्रचार?

जयपुर। पिछले कुछ समय से राजस्थान में जातिगत भेदभाव के नाम पर हिन्दू धर्म को बदनाम करने की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं, लेकिन हर बार ये घटनाएं गलत सिद्ध हुई हैं और एक बार फिर ऐसा ही होता दिख रहा है। बारां जिले के भुलोन गांव में 250 हिन्दू परिवारों के बौद्ध धर्म अपनाने और हिन्दू देवी-देवताओं की तस्वीरों को नदी में बहाने की घटना आपसी रंजिश का मामला साबित हो रही है।

अनुसूचित जाति समाज में सक्रिय भीम आर्मी जैसे वामपंथी सोच के संगठन हिन्दू समाज को बांटने और कमजोर करने के लिए कई तरह के कुत्सित प्रयास कर रहे हैं। उनका लगातार यही प्रयास है कि सबको साथ लेकर चलने वाले हिन्दू समाज को जातिगत भेदभाव के नाम पर बदनाम कर कमजोर किया जाए। इसके लिए वे किसी भी प्रकार का दुष्प्रचार करने से बाज नहीं आ रहे।

बारां के छबड़ा क्षेत्र के भुलोन गांव में इस बार फिर ऐसा ही कुछ करने का प्रयास किया गया। यहां 23 अक्टूबर को दिवाली से ठीक एक दिन पहले इस तरह के समाचार सामने आए कि अनुसूचित जाति समाज के 250 लोगों ने हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया है। दावा किया गया कि गांव के उच्च वर्ग के लोगों ने अनुसूचित जाति के परिवारों से मारपीट की। मंदिर में पूजा-पाठ करने से रोका। पुलिस थाने में मुकदमा तो दर्ज हुआ, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। जिला प्रशासन से लेकर राष्ट्रपति तक न्याय की गुहार पर भी कोई सुनवाई नहीं हुई। इससे आहत होकर एक साथ 250 लोगों ने हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों और तस्वीरों को गांव से गुजरने वाली बैथली नदी के बहाव में विसर्जित कर दिया। इस घटना का एक वीडियो भी सामने आया, जिसमें दिखाया गया कि अनुसूचित जाति समाज के परिवारों के लोग गांव में नीले झंडों के साथ रैली निकाल रहे हैं और इसके बाद नदी में हिन्दू देवी-देवताओं की तस्वीरें और मूर्तियां प्रवाहित कर रहे हैं। यह समाचार पूरे देश में सुर्खियां बना और वामपंथी सोच के मीडिया ने इसे पूरे देश का बड़ा मुद्दा बना दिया। इससे वहां का जिला और पुलिस प्रशासन भी एकाएक सकते में आ गया। जिला कलक्टर और पुलिस के अधिकारी मौके पर पहुंचे और घटना की जानकारी ली। हालांकि उसी समय पुलिस और प्रशासन की जांच में यह बात सामने आ गई थी कि जो दावा किया जा रहा है, वह पूरी तरह से गलत है, क्योंकि पहली बात तो यह कि गांव में अनुसूचित जाति के 250 परिवार हैं ही नहीं।

मध्य प्रदेश की सीमा पर बसे इस छोटे से गांव की जनसंख्या ही 500 लोगों की है। गांव में मुश्किल से 60 घर हैं और उनमें भी ब्राह्मणों के मात्र चार परिवार हैं, वहीं दलितों के 25-30 परिवार हैं, ऐसे मे गांव के इतने लोगों के एक साथ हिन्दू धर्म छोड़ने की बात तो पहले ही दिन पुलिस ने नकार दी थी।

मामले की जांच कर रही सीओ पूजा नागर ने उसी दिन स्पष्ट कर दिया था कि यह आपसी रंजिश का मामला है और इसे अकारण जातिगत तूल दिया जा रहा है। बापचा थाना क्षेत्र, जिसके अधीन यह गांव आता है, उसके थानाधिकारी ने उस समय मीडिया से बातचीत में स्पष्ट कर दिया था कि मारपीट की घटना दो लोगों के बीच में हुई थी। जिसकी एफआईआर भी दर्ज हुई थी।  इसके बाद एक आरोपी लालचंद लोधा को गिरफ्तार भी कर लिया गया था, जिसे बाद में जमानत मिल गई थी। बताया जा रहा है कि यह पूरा घटनाक्रम गांव के सरपंच प्रतिनिधि राहुल शर्मा को आरोपी बनाने का दबाव डालने के लिए किया गया था, जबकि राहुल शर्मा का नाम एफआईआर में था ही नहीं। इसके बावजूद उस समय जिले के एसपी कल्याण मीणा ने कहा था कि चूंकि बात सामने आई है, इसलिए इसकी जांच कराएंगे और अब यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो चुकी है कि यह पूरा मामला सिर्फ हिन्दू धर्म को बदनाम करने का षड्यंत्र था।

वहां के लोगों का कहना है कि गांव में रैली और तस्वीरें बहाने की घटना हुई थी, लेकिन इसमें शामिल लोग ज्यादातर गांव से बाहर के थे। मतांतरण की बात भी पूरी तरह से गलत है। सिर्फ एक व्यक्ति राजेन्द्र वर्मा जिनकी लालचंद लोधा से रंजिश थी, उन्होंने ही मतांतरण किया है, बाकी सभी ने हाल में दिवाली और गोवर्धन पूजा जैसे सभी कार्यक्रम किए हैं।

मतांतरण का दावा करने वाले बैरवा युवा महासभा छबड़ा के अध्यक्ष बालमुकुंद बैरवा से भी जब एक मीडिया संस्थान के प्रतिनिधियों ने बात की तो उन्होंने फोन पर हुई बातचीत में कहा कि उस दिन अनुसूचित जाति समाज के लगभग 250 से 300 लोगों ने हिन्दू धर्म छोड़ बौद्ध धर्म अपनाया था, लेकिन भूलोन गांव से सिर्फ राजेंद्र का ही परिवार था। बाकी सभी लोग आस-पास के गांवों के थे। उनसे जब पूरी सूची देने को कहा गया तो बैरवा ने कहा – 15 दिन रुक जाइए, हम पूरी सूची देंगे। अभी और लोग हिन्दू धर्म छोड़ने वाले हैं। यानी कुल मिला कर एक सोचा-समझा षड्यंत्र था, जिसके अंतर्गत हिन्दू धर्म और समाज को बदनाम करने के प्रयास किए गए। इससे पहले जालोर में अनुसूचित जाति समाज के छात्र इंद्र मेघवाल की मौत के मामले में भी ऐसी ही षड्यंत्रपूर्ण बातें सामने आ चुकी हैं।

प्रश्न यह है कि आखिर ऐसा कैसे हो रहा है और क्यों होने दिया जा रहा है? दरअसल अनुसूचित जाति वर्ग में सक्रिय वामपंथी सोच के संगठन इन सब गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। समय आ गया है जब इन संगठनों के विरुद्ध पूरे हिन्दू समाज को एकजुट हो कर खड़ा होना होगा, अन्यथा ऐसे प्रयास निरंतर चलते रहेंगे और बात का बतंगड़ बनाया जाता रहेगा।

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