मुंबई में मंदिर बने कोविड सेंटर, मस्जिदों में नमाज पढ़ने देने के लिए याचिका
पूरी दुनिया में कोविड महामारी का दूसरा दौर चल रहा है। संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। मरने वालों की संख्या भी कम नहीं। भारत में महाराष्ट्र में कोरोना पीड़ितों की संख्या सर्वाधिक है। बीएमसी के प्रमुख अस्पतालों में बेड मिलना एक बड़ी चुनौती बन गई है। ऐसे में एक बार फिर मंदिरों ने मानव धर्म की पालना में अपने दरवाजे खोल दिए हैं।
मुंबई में जैन समुदाय ने मंदिर को कोविड -19 सेंटर में परिवर्तित कर एक अद्भुत उदाहरण स्थापित किया है। इस कोविड सेंटर में 100 बिस्तरों वाले पैथोलॉजी लैब के साथ सामान्य और डीलक्स वार्ड शामिल हैं। ऑक्सीजन की भी सुविधा है। 10 डॉक्टरों सहित 50 से अधिक चिकित्सा कर्मचारी ड्यूटी पर हैं। पिछले साल महामारी के दौरान भी इस मंदिर को कोविड सेंटर में बदल दिया गया था और 2000 से अधिक मरीजों का इलाज किया गया था।
मुंबई के ही श्री स्वामी नारायण मंदिर ने भी अपने परिसर को कोविड अस्पताल में बदल दिया है। उपचार लागत का ध्यान भी मंदिर समिति द्वारा रखा जा रहा है।
इनके अलावा महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के शेगाँव के संत गजानन महाराज मंदिर में कोरोना संदिग्धों और रोगियों के लिए 500 बिस्तर के अलग-अलग आइसोलेशन परिसर बनाए गए हैं। यहॉं स्थित सामुदायिक रसोई में 2,000 लोगों के लिए दोपहर और रात का भोजन तैयार किया जा रहा है। ज्यादातर प्रवासी मजदूर बुलढाणा जिले के विभिन्न स्कूलों / कॉलेजों में रुके हुए हैं। उनके लिए भोजन की भी व्यवस्था की गई है।
दूसरी ओर मस्जिदों में नमाज पढ़ने के लिए उन्हें खोलने की मांग की जा रही है। इस के लिए हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की गई है। इस मामले में जुमा मस्जिद ट्रस्ट द्वारा दायर एक याचिका पर बुधवार (अप्रैल 14, 2021) को बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुनवाई की। इस याचिका में ट्रस्ट ने 50 लोगों के साथ 5 समय नमाज पढ़ने की अनुमति मांगी थी। लेकिन कोर्ट ने कोविड महामारी के दौरान लोगों की सुरक्षा को महत्वपूर्ण बताते हुए अनुमति देने से मना कर दिया।
लेकिन क्या ऐसे समय में यह मांग उचित है? इस सवाल पर गृहिणी दीपा कहती हैं वास्तव में सोचने वाली बात है। क्या मजहबी कट्टरता मानव धर्म से भी बड़ी हो सकती है? मौलवी भले मस्जिदों के दरवाजे कोविड पीड़ितों के लिए न खोलें लेकिन लोगों से घर में बैठकर नमाज पढ़ने की अपील तो कर ही सकते हैं। पिछले वर्ष मरकज का हाल सबने देखा था। इस बुरे दौर में उसे एक बार फिर खोल दिया गया है। मजहबी कार्यक्रम वहॉं शुरू हो चुके हैं। इस दौर में कोरोना गाइडलाइंस की पालना कर संक्रमण का कारक न बनना भी मानव धर्म की श्रेणी में आता है।
इसी सवाल पर लखनऊ के एक स्कूल में अध्यापिका आराधना मिश्रा कहती हैं कि नवरात्रि तो हिंदुओं के भी चल रहे हैं, लेकिन कोई पूजा के लिए मंदिर खोलने की मांग नहीं कर रहा। लेकिन भारत में जब भी धर्म की बात आती है कुछ लोग तर्क पर भी कुतर्क करने लगते हैं। आजकल कुछ लोग पिछले वर्ष सुपर स्प्रेडर बने मरकज की तुलना कुंभ से कर रहे हैं। लेकिन क्या वास्तव में दोनों की तुलना की जा सकती है? मरकज में एक बंद हॉल में लगभग 2000 लोग थे, उन्हें पता था उनमें से अनेक संक्रमित हैं, लेकिन वे जांच नहीं करवा रहे थे, पुलिस की बार बार की अपील पर बाहर नहीं आ रहे थे, अपने अपने घरों में जाकर परिजनों को संक्रमित कर रहे थे, पूरे देश में यात्रा कर रहे थे। जबकि कुंभ में वही जा सकता था जिसकी दो दिन पुरानी कोविड निगेटिव रिपोर्ट हो। एक बड़े और खुले क्षेत्र में सीमित संख्या में ही श्रद्धालु जा सकते थे, स्नान के लिए टाइम स्लॉट निर्धारित थे, घाटों को सैनिटाइज किया जा रहा था, हरिद्वार के प्रवेश द्वारों पर सबकी जांच हो रही थी। इन सबके बाद भी जब कुछ संक्रमितों का पता चला तो कुंभ का समय से पहले ही समापन कर दिया गया।