मजहबी स्थलों को छिपने का ठिकाना बनाते आतंकी

मजहबी स्थलों को छिपने का ठिकाना बनाते आतंकी
मजहबी स्थलों को छिपने का ठिकाना बनाते आतंकी
मजहबी स्थलों को अपने छिपने का ठिकाना बनाकर आतंकी कश्मीर घाटी में एक तरह का मानसिक युद्ध लड़ रहे हैं। वे धर्मस्थलों की आड़ लेकर स्थानीय लोगों की भावनाओं से खेलते हैं। सुरक्षाबलों पर हमला करने से पहले व बाद में वे धर्मस्थलों की शरण लेते हैं, ताकि इनकी जान बच जाए और यदि सुरक्षाबल कठोर कार्रवाई करें जिसमें धर्मस्थलों को किसी भी प्रकार का नुकसान पहुंचे तो उसे धार्मिक रंग देकर लोगों को भड़काया जा सके। 
साल 2020 के जुलाई महीने में सोपोर में मस्जिद में छिपे आतंकियों ने सीआरपीएफ की पेट्रोलिंग पार्टी पर हमला किया था। इसी साल 19 जून को भी पुलवामा जिले के पांपोर में हमला करने के बाद आतंकी मस्जिद में छिप गए थे। सुरक्षाबलों ने इन्हें बाहर निकाल कर मारा था।
आम तौर पर आतंकी इस तरह की कार्यशैली 90 के दशक में प्रयोग में लाते थे। बीच में यह क्रम बंद हो गया था। 19 जून 2020 को पुलवामा जिले के पांपोर के मीज क्षेत्र में भी दहशतगर्दों ने ऐसी ही साजिश रची थी, परंतु सुरक्षाबलों ने अपनी सूझबूझ से इसे असफल कर दिया था। सुरक्षाबलों ने विशेष रणनीति के अंतर्गत मस्जिद को हानि पहुंचाए बिना आंसू गैस का प्रयोग कर आतंकियों को बाहर निकालकर ढेर कर दिया था। सुरक्षाबलों के इस ऑपरेशन की स्थानीय लोगों ने भी प्रशंसा की थी। 
1996 में जेकेएलएफ कमांडर बशारत रजा और शब्बीर सिद्दीकी ने दो दर्जन साथियों समेत दरगाह में शरण ली थी। उन्होंने दरगाह की सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों पर हमला बोल दिया था। प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई में सभी आतंकी मारे गए थे। इस दौरान तीन पुलिसकर्मी भी वीरगति को प्राप्त हुए थे। 
मार्च 1995 में बड़गाम जिले के चरार-ए-शरीफ क्षेत्र में स्थित सूफी संत शेख नूरूद्दीन नूरानी की दरगाह में हरकत उल अंसार और हिजबुल के आतंकियों ने शरण ली थी। 66 दिन तक आतंकी इसी दरगाह में छिपे रहे थे।
12 मई को मुठभेड़ में नौ पाकिस्तानियों समेत 25 आतंकी मारे गए थे। 15 अक्तूबर 1993 को 40 आतंकी हजरतबल दरगाह में लगभग एक महीने तक छिपे रहे थे। 16 नवंबर को आतंकियों ने आत्मसमर्पण कर दिया था।
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *