मतांतरण पर राष्ट्रीय कानून कब बनेगा?

मतांतरण पर राष्ट्रीय कानून कब बनेगा?

जितेंद्र सिंह तंवर

मतांतरण पर राष्ट्रीय कानून कब बनेगा?

स्वामी विवेकानंद ठीक ही कहते थे कि जब कोई व्यक्ति धर्म बदलता है, तो देश में एक हिन्दू कम नहीं होता, बल्कि भारत का एक दुश्मन बढ़ जाता है। हम अपने दुश्मनों की संख्या कब तक बढ़ाते रहेंगे? इस मुद्दे पर राजनैतिक नेतृत्व मौन क्यों है?

भारत में हिन्दू समाज हमेशा से मतांतरण का शिकार रहा है। लेकिन दुर्भाग्य से जितनी भी सरकारें केंद्र या राज्यों में आईं, उन्होंने कभी भी इस समस्या पर गंभीरता से विचार नहीं किया। राज्यों में कानून जरूर बने, लेकिन इसके बावजूद मुस्लिम चरमपंथियों और ईसाई मिशनरियों के हाथों हजारों लाखों गरीब हिन्दुओं का मतांतरण और अराष्ट्रीयकरण होता रहा है। स्वामी विवेकानंद ठीक ही कहते थे कि जब कोई व्यक्ति धर्म बदलता है, तो देश में एक हिन्दू कम नहीं होता, बल्कि भारत का एक दुश्मन बढ़ जाता है। राजनैतिक दलों के लिए यह महज एक सामाजिक समस्या है। लेकिन इसके दुष्परिणाम राष्ट्रीय स्तर के हैं।

मतांतरण एक बार चर्चा में है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के नोएडा में 18 मूक बधिर बच्चों का मतांतरण किया गया। बच्चों के माता पिता को इस मामले की जानकारी तक नहीं थी। इस मामले में एटीएस ने नोएडा से मोहम्मद उमर गौतम और मुफ्ती काजी जहांगीर दो अपराधियों को गिरफ्तार किया है। यूपी पुलिस का दावा है कि पिछले दो साल में इन लोगों के रैकेट ने एक साल में हजार से ज्यादा लोगों को मतांतरित किया है। दक्षिण भारत में कोरोना काल में राहत कार्यों की आड़ में ईसाई मिशनरियां तेजी से लोगों का मतांतरण करने में लगी हुई हैं। भारत में इस काम के लिए बड़े पैमाने पर विदेशों से पैसा आता है।

किसी भी देश का सुरक्षा कवच उसकी सभ्यता, संस्कृति और उसके सामाजिक मूल्य होते हैं। भारत में मतांतरण के सहारे भारत के सांस्कृतिक, सामाजिक मूल्यों और सभ्यता को समाप्त करके भारत के सुरक्षा कवच को तोड़ा जा रहा है। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से देश का राजनैतिक नेतृत्व चुप है।

वैसे, पंथ बदलना कोई अपराध नहीं है। भारत का संविधान भी अपने नागरिकों को इजाजत देता है कि वे अपनी इच्छा से कोई भी पंथ अपना सकते हैं। लेकिन इसके भी नियम हैं। किसी व्यक्ति को छल कपट या बहकावे में लेकर उसकाो मतांतरित करवाना गैरकानूनी है। सबसे बड़ा प्रश्न है कि हिन्दू बाहुल्य क्षेत्र में कोई व्यक्ति आखिर मतांतरण के लिए तैयार कैसे हो जाता है। आखिर क्यों अपनी हजारों साल पुरानी संस्कृति से विमुख होने के लिए तैयार हो जाता है, जबकि वह हिन्दू बाहुल्य राज्य, जिले और यहां तक कि वो हिन्दू बाहुल्य गांव में रहता है।

दक्षिण भारत के तमिलनाडु, केरल, और कर्नाटक में अवैध मतांतरण करवाने वाली मिशनरियां और गैरसरकारी संगठन युद्ध स्तर पर अपना काम कर रहे हैं। वहां के एससी और एसटी वर्ग के लोगों को तथाकथित टोने-टोटके, झूठ और प्रलोभन के बल पर मतांतरित करवाया जा रहा है। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश के लगभग पन्द्रह जिलों में पिछड़े वर्ग के लोगों को मिशनरी अंधविश्वास के हथियार का प्रयोग करके ईसाई बना रहे हैं। उत्तरप्रदेश का जौनपुर जिला इस समय मतांतरण का सबसे बडा अड्डा बना हुआ है। उत्तर प्रदेश के कई जिलों से लोग प्रार्थना सभा में शामिल होने के लिए यहां लोग आते हैं।

मतांतरण के विरुद्ध भारत के नौ राज्यों अरुणाचल प्रदेश, ओडिसा, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात हिमाचल प्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश में कानून बने हैं। राज्यों के हिसाब से नियमों में कुछ अंतर हैं, लेकिन मोटे तौर पर इन सभी राज्यों में इस कानून को लेकर बनाया गया खाका एक सा ही है। लेकिन इसके बाद भी इन प्रदेशों में मतांतरण जारी है। इस समय पंजाब तेजी से ईसाई लैंड बनने की ओर अग्रसर है। लगता है वहां जल्द ही सिख अल्पसंख्यक होने वाले हैं।

भारत का संविधान यहां के नागरिकों को अपने मन पसंद पंथ को मानने और उसके मूल्यों का पालन करने की छूट देता है। संविधान के आर्टिकल 25 के अनुसार सभी व्यक्तियों को अपने धर्म को मानने, उसका पालन और अपने धर्म के प्रचार की स्वतंत्रता है। संविधान के आर्टिकल 25 में नागरिक शब्द की जगह ‘व्यक्ति’ शब्द का उपयोग किया गया है। यानि कि विदेशी नागरिक भी यहां आकर अपने धर्म का प्रचार कर सकते हैं। सबसे विशेष बात आपको ध्यान दिला दें कि संविधान के निर्माताओं को भी पहले से यह मालूम था कि यदि धर्म के प्रचार का अधिकार दे दिया गया तो अवैध रूप से लोगों को मतांतरित किया जाएगा। इसलिए संविधान के ड्राफ्ट में प्रचार शब्द का उपयोग नहीं किया गया था। इसमें सिर्फ धर्म के पालन के अधिकार का जिक्र किया गया था।

स्वतंत्रता से दो साल पहले ज्वांइट कमेटी ऑन कैथोलिक यूनियन ऑफ इंडिया और ऑल इंडिया कांउसिल ऑफ इंडियन क्रिश्चिन्स ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें कहा गया कि भारत के संविधान में लोगों को अपने धर्म के पालन और प्रचार दोनों की अनुमति मिलनी चाहिए। इसके साथ ही मतांतरण किसी नागरिक या राजनैतिक अस्थिरता का कारण नहीं होना चाहिए। इसके बाद अप्रैल 1947 में मूल अधिकारों की अंतरिम रिपोर्ट पेश की गई थी, तब संविधान के ड्राफ्ट में धर्म के प्रचार शब्द को जोड़ दिया गया था। उस समय भी संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने इसका विरोध किया था, लेकिन इसके बाद भी यह संशोधन पास हो गया। इसी प्रचार शब्द के शामिल किए जाने का खामियाजा आज सात दशक बाद भी हम भुगत रहे हैं।

लेकिन धर्म के प्रचार का अर्थ झूठ, धोखेबाजी, चमत्कार या किसी प्रकार के अंधविश्वास का प्रयोग करना कतई नहीं हो जो कि आज के समय में सबसे ज्यादा उपयोग में लाया जा रहा है। देश के कई राज्यों ने अवैध मतांतरण को रोकने के लिए कानून बनाए भी हैं। इन कानूनों के अंतर्गत मतांतरण करने वाले व्यक्ति को मतांतरित होने से एक महीने पहले प्रशासनिक अधिकारियों को इस संबंध में जानकारी देनी होती है। जबरदस्ती धोखा देकर या किसी प्रकार का प्रलोभन देकर किसी व्यक्ति का मतांतरण करना गैरकानूनी है। अवैध मतांतरण की समस्या स्वतंत्रता के पहले से ही है।

स्वतंत्रता के बाद 1954 में संसद में ‘इंडियन कन्वर्जन बिल’ प्रस्तुत किया गया। 1960 में भी इससे मिलता जुलता ‘द बैकवर्ड कम्युनिटीज रिलिजियस प्रोटेक्शन बिल’ पेश किया गया। लेकिन संसद में सहमति न होने के कारण ये दोनों ही बिल पास नहीं हो पाए। इस कारण स्वतंत्रता के बाद भी अवैध मतांतरण को रोकने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई भी कानून नहीं बन पाया, जिसके कारण अवैध मतांतरण कम होने की बजाय बढ़ता ही चला गया। समस्या बढ़ने के बाद  कुछ राज्यों ने इसे रोकने के लिए कानून बनाए, जिनमें ओडिसा सबसे पहले आगे आया और अवैध मतांतरण को  रोकने वाला पहला राज्य बना। इसके बाद मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ ने भी इस कानून को अपनाया।

मतांतरण के इस गंदे खेल को रोकने के लिए आवश्यक है कि समाज के सभी वर्ग इसके विरुद्ध आवाज उठाएं। सरकार ऐसे मामलों में अपराधियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाही करे। समय रहते इस बीमारी का उपचार नहीं किया गया तो यह हिंदू समाज के लिए नासूर बन सकती है।

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