मत चूके चौहान…
अंतिम भाग
पद्मश्री महाराव रघुवीर सिंह
मोहम्मद गौरी द्वारा आक्रमण करने पर, युद्ध में जाते समय चन्द्रवरदाई को एक महापुरुष के दर्शन हुए, जिन्हें राजकवि ने भगवान शंकर के गण वीरभद्र के रूप में पहचाना। उनके चरण स्पर्श करते हुए उन्होंने वर की याचना की और कहा कि हमारे राजा पृथ्वीराज चौहान इस बार भी विजयी हों, ऐसा शुभाशीष और वरदान आप प्रदान करें। तब गण वीरभद्र ने कहा, मैं तुम्हें यह वर नहीं दे सकता। इस पर चन्द्रवरदाई ने हिम्मत करके वीरभद्र से पूछा कि आप हमें वरदान प्रदान नहीं कर सकते, परन्तु यह तो बता सकते हैं कि भविष्य में क्या होने वाला है?
तब महापुरुष वीरभद्र ने कहा, हां यह तो विस्तार से बता सकता हूं, ध्यान से सुनो ”अब जो सत्ता दिल्ली पर स्थापित होगी वो 666 वर्षों तक राज करेगी।” हम देखते हैं ऐसा हुआ भी। मोहम्मद गौरी ने – जनवरी 1192 से 1206 ई. तक, गुलाम वंश ने -1206 से 1296 ई. तक, खिलजी वंश ने -1296 से 1336 ई. तक, तुगलक वंश ने – 1336 से 1394 ई. तक, सैयद व लोदी वंश ने- 1394 से 1526 ई. तक और मुग़ल वंश ने 1526 से 1858 ई. तक भारत पर शासन किया। तदुपरांत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 200 वर्षों तक राज किया। 1947 में अंग्रेजों को भारत छोड़ कर जाना पड़ा और देश का विभाजन हुआ।
अनादिकाल से 1707 ई. तक भारत विश्व का प्रथम राष्ट्र था। पृथ्वीराज चौहान ने चंद्रबरदाई को कई बार लाख पसाव, करोड़ पसाव, अरब पसाव देकर सम्मानित किया था।
सातवें युद्ध में जब मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को परास्त कर दिया और बंदी बना कर उन्हें गजनी ले गया तो चंद्रवरदाई भी महाराज के साथ गजनी गये। ऐसा माना जाता है कि निर्मम और क्रूर गौरी ने कैद में बंद पृथ्वीराज की आँखें निकलवा कर उन्हें नेत्रहीन कर दिया था। अपने महाराज को इस अवस्था में देख कर चन्द्रवरदाई का हृदय द्रवित हो गया और उन्होंने गौरी के वध की योजना बनायी। उक्त योजना के अंतर्गत उन्होंने गौरी को बताया कि पृथ्वीराज शब्दभेदी बाण चला सकते हैं। मोहम्मद गौरी को यह सुनकर आश्चर्य हुआ। उस ने पृथ्वीराज की इस कला को देखने की इच्छा प्रकट की। प्रदर्शन के दिन चंद्रबरदाई गौरी के साथ ही मंच पर बैठे। पृथ्वीराज को मैदान में लाया गया एवं उनसे अपनी कला का प्रदर्शन करने को कहा गया। पृथ्वीराज ने जैसे ही एक घण्ट के ऊपर बाण चलाया तो गौरी के मुँह से अकस्मात ही “वाह! वाह!!” निकल पड़ा, बस फिर क्या था चंद्रबरदाई ने तत्काल एक दोहे में पृथ्वीराज को यह बता दिया कि गौरी कहाँ पर एवं कितनी ऊँचाई पर बैठा हुआ है। वह दोहा इस प्रकार था:
चार बाँस चौबीस गज,
अंगुल अष्ट प्रमान।
ता ऊपर सुल्तान है,
मत चूके चौहान॥
इस प्रकार पृथ्वीराज ने चंद्रबरदाई के सहयोग से बिना अवसर चूके मोहम्मद गौरी का वध कर दिया। पृथ्वीराज चौहान एक बार फिर सिंहासनारूढ़ हुए और 1192 तक शासन किया। भारत के इतिहास में महान हिन्दू सम्राट के रूप में वे सदैव स्मरण किए जाते रहेंगे।
समाप्त