मलेरकोटला जिला : समरस माहौल में तुष्टीकरण का जहर क्यों?

मलेरकोटला जिला : समरस माहौल में तुष्टीकरण का जहर क्यों?

मलेरकोटला जिला : समरस माहौल में तुष्टीकरण का जहर क्यों?

अगले वर्ष पंजाब में विधानसभा चुनाव हैं, और बंगाल में अपनी चुनावी रणनीति का लोहा मनवा चुके पीके अब कैप्टन साहब के साथ हैं। ईद के विशेष अवसर पर मलेरकोटला को जिला घोषित किया गया है। वर्तमान समय में इस को एक सोची समझी राजनीतिक चाल के रूप में देखा जा रहा है। आज संपूर्ण तंत्र का ध्यान केवल और केवल महामारी प्रबंधन में होना चाहिए था, ऐसे में इस निर्णय की मजबूरी में कहीं आगामी चुनावों की आहट तो नहीं है?

इस समय पंजाब में मुस्लिम जनसंख्या मात्र 2 प्रतिशत है और मलेरकोटला मुस्लिम बहुसंख्यक (70 प्रतिशत) क्षेत्र है। विशेष कर जब ईद के अवसर पर एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र को जिला घोषित किया जाता है तो उसके कुछ विशेष मायने होते हैं। और 2 प्रतिशत वोट की कीमत कितनी होती है, कैप्टन यह भलीभांति जानते हैं। जिस प्रकार बंगाल में मुस्लिम वोट एकमुश्त एक ही पार्टी को मिले थे, उसी प्रकार की रणनीति बिसात अब पंजाब में बिछाई जा रही है ।

1947 से अब तक स्वतंत्र भारत में प्रत्येक 10 वर्ष में लगभग 50 जिले बढ़ जाते हैं, परंतु इस बार पंजाब में मलेरकोटला को एक नया जिला बनाने की जैसे ही घोषणा हुई, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस पर कठोर टिप्पणी की। वैसे मलेरकोटला पंजाब के संगरूर जिले का छोटा सा कस्बा था। 1705 में गुरु गोविंद सिंह के 7 व 9 वर्ष के मासूम पुत्रों को इस्लाम स्वीकार नहीं करने पर सरहिंद के नवाब ने जिंदा दीवार में चुने जाने का आदेश दिया तो मलेरकोटला के तत्कालीन नवाब ने कुरान का वास्ता देकर इस निर्णय का विरोध किया था। तब से लेकर आज तक मलेरकोटला गुरु गोविंद सिंह जी के आशीर्वाद के कारण हर संकट में सुरक्षित रहा है ।

स्वतंत्रता के 70 वर्षों में मलेरकोटला में एक भी दंगा नहीं होना इस बात का संकेत भी है कि मुसलमान बहुसंख्यक होने पर भी शांतिपूर्ण तरीके से रह सकता है, और वह भी देशभक्त हो सकता है। परंतु इस दौर में जब घोषणा का औचित्य ही नजर नहीं आता, तब नया जिला बनाने वाले निर्णय ने मलेरकोटला के मुसलमानों को भी तुष्टिकरण की अफीम का स्वाद चखा ही दिया। इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि यदि मुसलमान इस देश की मुख्यधारा से कदमताल करने का प्रयास भी करता है तो निजी स्वार्थों की पूर्ति में लगी शक्तियां ऐसा होने नहीं देतीं। परंतु क्या इस आधार पर जिलों की रचना भारतीय संवैधानिक ढांचे पर एक स्थायी और करारी चोट नहीं है? सजग नागरिकों के लिए विचारणीय प्रश्न है।

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