गांधी जी के साथ ही चला गया ‘गांधी-दर्शन’

गांधी जी के साथ ही चला गया ‘गांधी-दर्शन’
30 जनवरी पुण्यतिथि 

 नरेंद्र सहगल

गांधी जी के साथ ही चला गया ‘गांधी-दर्शन’
महात्मा गांधी एक व्यक्ति अथवा नेता नहीं थे। भारतीय अंतर्मन के एक सशक्त हस्ताक्षर थे महात्मा जी। ‘रामराज्य’, ‘वैष्णव-जन’ एवं हिन्द स्वराज जैसे आदर्श उनकी जीवन यात्रा के घोषणा पत्र थे। स्वदेश, स्वदेशी, स्वधर्म, स्वसंस्कृति, स्वभाषा और स्वराज इत्यादि विचार तत्वों को गांधी जी ने स्वतंत्रता आंदोलन की कार्य संस्कृति और उद्देश्य घोषित किया था।
महात्मा गांधी जी इन्हीं आदर्शों के आधार पर भारतीयों को सत्याग्रहों / आंदोलनों में भाग लेने की प्रेरणा देते रहे। गांधी जी तो जीवन के अंत तक प्रयास करते रहे कि ‘रामराज्य’ और ‘हिन्द स्वराज’ जैसी भारतीय परंपराओं और भारत की संस्कृति के आधार पर भारत के संविधान, शिक्षा प्रणाली, आर्थिक रचना और एकात्म सामाजिक व्यवस्था इत्यादि का ताना-बाना बुना जाए।
महात्मा गांधी जी ने ‘यंग इंडिया’ पत्रिका में अपने एक लेख में लिखा था – -“अंग्रेज रहें, उनकी सभ्यता चली जाए, वह तो मुझे मंजूर है, परंतु अंग्रेज चले जाएं और उनकी सभ्यता यहां राज करती रहे, यह मुझे मंजूर नहीं। इसे मैं स्वराज नहीं कहूंगा।”
देश के दुर्भाग्य से विभाजन के पश्चात खंडित भारत की सरकार के सभी प्रकार के रीति-रिवाजों में कुछ भी भारतीय नहीं था और ना ही राष्ट्रीय स्वाभिमान के इस अति महत्वपूर्ण विचार पर किसी को सोचने की फुर्सत ही थी। सत्ता की भूख के उतावलेपन में जिस तरह भारत का विभाजन स्वीकार किया गया, ठीक उसी तरह हमारे कांग्रेसी सत्ताधारी महात्मा गांधी, जयप्रकाश नारायण, डॉ. राममनोहर लोहिया, आचार्य नरेंद्र देव, और पुरुषोत्तमदास टंडन इत्यादि जैसे राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानियों की विचारधारा से दूर हट गए।
इन सत्ताधारियों ने अंग्रेजों द्वारा थोपी गई राजनीति एवं संवैधानिक व्यवस्था की लकीर के फकीर बनना ही उचित समझा। ब्रिटिश सत्ता के कालखंड में स्वतंत्रता संग्राम के सर्वोच्च सेनापति महात्मा गांधी के उन सिद्धांतों और वैचारिक मूल्यों को भुला दिया गया, जिन्हें आदर्श मान कर स्वतंत्रता की जंग लड़ी गई थी।
महात्मा गांधी पश्चिम के अंधे अनुकरण के घोर विरोधी थे। उनके विचारानुसार विशाल यंत्रों पर आधारित औद्योगिक क्रांति, पश्चिम में प्रचलित चुनाव प्रणाली, पश्चिम की सभ्यता पर आधारित शिक्षा व्यवस्था तथा आर्थिक रचना भारत जैसे धर्मप्रधान एवं 75 प्रतिशत से ज्यादा गांवों में रहने वाले भारतीयों के लिए सर्वाधिक नुकसानदायक साबित होगी।
गांधी जी ने नेहरू के नाम लिखे एक पत्र में कहा था – “आधुनिक विज्ञान का प्रशंसक होते हुए भी मैं यह अनुभव करता हूं कि हमारे देश के प्राचीन जीवन मूल्यों को ही आधुनिक विज्ञान के आलोक में संवार कर अपनाना चाहिए”। गांधी जी के अनुसार अंग्रेज शासकों ने भारत को पाश्चात्य शिक्षा, प्रशासन, संविधान और आर्थिक मक्कड़जाल में फंसा दिया था। स्वराज प्राप्ति के पश्चात यदि देश को इस विदेशी मक्कड़जाल से ना निकाला गया, तो स्वाधीनता का कोई अर्थ नहीं बचता।
दुर्भाग्य से पंडित नेहरू को गांधी जी के ध्येय-वाक्य स्वधर्म, स्वभाषा, अपरिग्रह, हिन्द स्वराज, रामराज्य इत्यादि विचार पसंद नहीं थे। अपने को ‘एक्सीडेंटल हिन्दू’ कहने वाले और अंग्रेजी सभ्यता में संस्कारित नेहरू जी को ‘गांधी-दर्शन’ से कुछ भी लेना-देना नहीं था। गांधी जी गांव को एक इकाई मानकर आर्थिक विकास की रचना चाहते थे, जबकि भारतीय ग्रामीण व्यवस्था से पूर्णतया अनभिज्ञ नेहरू जी शहरों के विकास को महत्व देकर अपनी आर्थिक योजनाओं में जुट गए। इस प्रकार नेहरू जी ने देश के 75 प्रतिशत भारतीयों के पेट पर लात मार दी।
महात्मा गांधी जी ने स्वतंत्रता संग्राम को दो सभ्यताओं के संघर्ष के रूप में देखा था। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘हिन्द स्वराज’ में लिखा था – “कुछ लोग मेरे हिन्दुस्तान को इंग्लिशस्तान बनाना चाहते हैं, परंतु वे जान लें कि ऐसी हालत में तब वह हिन्दुस्तान नहीं रहेगा, यह मेरी कल्पना का स्वराज्य नहीं होगा”।
परंतु, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी परतंत्रता को जारी रखा गया। गांधी जी के ‘भारतीय-दर्शन’ को तिलांजलि दे दी गई। भारत की सर्वश्रेष्ठ सांस्कृतिक धरोहर को तोड़ डालने के भयानक दुष्परिणाम हमारे सामने हैं। अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष के समय जो भारत एकजुट था, वह अब भाषा, क्षेत्र, जाति और मजहब के आधार पर विभाजित हो गया। 15 अगस्त 1947 को हुए भौगोलिक विभाजन के बाद यह अपनी तरह का एक ऐसा विभाजन था, जिसने एकत्व को विघटन में बदल दिया। वोट बैंक की राजनीति का उदय हो गया। भ्रष्टाचार, अलगाववाद तथा आतंकवाद का बोलबाला हो गया।
गांधी जी के जाने के साथ ही उनका भारतीय वैचारिक आधार भी चला गया। महात्मा गांधी जी कुछ वर्ष और जीवित रहते तो शायद पंडित जवाहरलाल नेहरू को देश का प्रधानमंत्री बनवाने की अपनी भूल को सुधार लेते। राम-राज्य के अपने उद्देश्य को फलीभूत होता हुआ देख लेते। परंतु ऐसा नहीं हो सका।
देशवासियों के सौभाग्य से आज परिवर्तन की लहर चली है। गांधी जी के दर्शन के अनुसार राजनीति, सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्रों में कार्य संपन्न होने शुरू हुए हैं। अखंड-भारत, स्वदेशी, सामाजिक सामंजस्य और रामराज्य का गांधी जी का संकल्प साकार होता हुआ दिखने लगा है।
यह भी कितने आश्चर्य की बात है कि जिन राष्ट्र समर्पित देशभक्त लोगों पर महात्मा जी की हत्या का झूठा, बेबुनियाद और अनर्गल आरोप लगाने का षड्यंत्र रचा गया था, वही लोग ‘गांधी-दर्शन’ पर चलते हुए गांधी जी को सच्ची श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
(पूर्व संघ प्रचारक, लेखक एवं स्तम्भकार)
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