कांग्रेस आखिर क्यों बार-बार नकारती है महाराणा प्रताप की महानता को?

कांग्रेस आखिर क्यों बार-बार नकारती है महाराणा प्रताप की महानता को?

 

कांग्रेस आखिर क्यों बार-बार नकारती है महाराणा प्रताप की महानता को?कांग्रेस आखिर क्यों बार-बार नकारती है महाराणा प्रताप की महानता को?

जयपुर। एक बार फिर कांग्रेस ने राजपूताने के गौरवशाली इतिहास पर सवाल उठाया है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा मानते हैं कि महाराणा प्रताप और अकबर के बीच का युद्ध सिर्फ एक सत्ता संघर्ष था और भाजपा इसे धार्मिक रंग दे रही है, क्योंकि उसे हर चीज को हिन्दू-मुस्लिम के नजरिए से देखने की आदत पड़ गई है। लेकिन डोटासरा अपने बयान के बाद आमजन के निशाने पर आ गए हैं। आज यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है कि आखिर कांग्रेस क्यों बार-बार प्रताप की महानता को नकारती है और मेवाड़ के गौरव प्रताप के बजाय विदेशी आक्रांता अकबर के साथ खड़ी नजर आती है?

इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढना कोई कठिन काम अब नहीं रह गया है, क्योंकि पिछले कई वर्षों से विशेषतौर पर जब से सोनिया गांधी कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनी हैं, कांग्रेस में मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति बहुत ज्यादा हावी हो गई है। यह काम कांग्रेस हालांकि पहले भी करती रही है, लेकिन पिछले दो दशक में यह बहुत अधिक हो गया है। ऐसे में जब डोटासरा भाजपा पर हर मसले को हिन्दू मुस्लिम के नजरिए से देखने को आरोप लगाते हैं तो डोटासरा से भी यह पूछा जाना चाहिए कि वो या उनकी पार्टी भी हर मामले को मुस्लिम तुष्टीकरण की दृष्टि से ही क्यों देखती है? आखिर क्यों वो इस बात को पूरी तरह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है कि प्रताप मेवाड़ ही नहीं पूरे राजपूताने की शान थे।

डोटासरा ने कहा कि अकबर और महाराणा प्रताप के बीच  की लड़ाई सत्ता का संघर्ष थी, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या प्रताप अपने साम्राज्य को बढ़ाने के लिए अकबर से लड़ रहे थे। यदि ऐसा होता तो फिर भी इसे सत्ता का संघर्ष माना जा सकता है, लेकिन ऐसा नहीं था। अकबर अपने साम्राज्य को बढ़ाने के लिए आया था, जबकि प्रताप अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए लड़ रहे थे। प्रताप कहीं युद्ध करने या युद्ध के माध्यम से अपना साम्राज्य बढ़ाने नहीं गए थे। उन्हें युद्ध के लिए मजबूर किया गया था और जब मजबूर किया गया तो अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए जो लड़ाई उन्होंने लड़ी, वह सत्ता की नहीं बल्कि स्वाभिमान के रक्षा की लड़ाई थी। इसे एक सत्ता संघर्ष बता कर साधारण बना देना निश्चित रूप से उनकी महानता को कमतर आंकना है।

और ऐसा नहीं है कि महाराणा प्रताप के मामले में डोटासरा ने पहली बार ऐसा कुछ बोला है। वे पहले भी एक बयान में कह चुके हैं कि अकबर या प्रताप में से महान कौन था, यह विशेषज्ञों को तय करने दीजिए। यानी प्रदेश के शिक्षा मंत्री रह चुके एक शिक्षक के पुत्र गोविंद सिंह डोटासरा प्रताप की महानता को स्वीकार नहीं करना चाहते।

दरअसल इसमें कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस के लिए मुस्लिम वोट बैंक सत्ता में आने का महत्वपूर्ण साधन है और इसे प्रसन्न रखने के लिए वह कुछ भी कर सकती है। यहां तक कि इस वोट बैंक के लिए अपने ही प्रदेश के गौरवशाली इतिहास और इतिहास पुरूषों को बार-बार नकारने की चेष्टा भी कर सकती है।

वोट बैक की यह राजनीति कांग्रेस को पिछले वर्षों में भारी पड़ती रही है और जैसा कि नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया ने अपने बयान में कहा कि कांग्रेस के नेता ऐसे ही बयान देते रहे तो जनता इस पार्टी को पूरी तरह कोने में बैठा देगी।लेकिन प्रश्न मात्र राजनीति का नहीं है। प्रश्न है अपनी अस्मिता की रक्षा करने वाले इतिहास पुरुषों के मान-सम्मान का। यदि उनके योगदान को भी हम आज की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में देखते रहेंगे तो अपना और अपने देश का नुकसान ही करेंगे।

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