मुस्लिम तुष्टीकरण में जुटी राजस्थान सरकार
जयपुर, 11 मार्च। स्वयं को धर्मनिरपेक्ष बताने वाली कांग्रेस की सरकार राजस्थान में मुस्लिम तुष्टीकरण में जुटी है। सरकार एक के बाद एक ऐसे फैसले ले रही है जिनसे उसका मुस्लिम प्रेम साफ झलकता है। हाल ही में सरकार ने अल्पसंख्यक विभाग से अल्पसंख्यकों द्वारा लिए गए लोन पर ब्याज की छूट देने के लिए एकमुश्त समाधान योजना आरम्भ की है, जिसके अंतर्गत अल्पसंख्यक वर्ग के वे सभी ऋणी जिन्हें विभाग से लाेन लिए 5 वर्ष पूरे हो चुके हैं, लेकिन उन्होंने किस्त जमा नहीं कराई है, उन्हें 31 मार्च तक लाेन की बकाया पूरी राशि चुकाने पर दंडनीय ब्याज पर सौ प्रतिशत छूट दी जाएगी। जिन ऋणियों को 5 वर्ष नहीं हुए हैं लेकिन वे समय पर ऋण की किस्त चुका रहे हैं, उन्हें एकमुश्त राशि चुकाने पर पुरुष लाभार्थियों को 2 प्रतिशत व महिला लाभार्थियों को ब्याज में शत प्रतिशत छूट दी जाएगी। इससे सरकारी खजाने पर 4 करोड़ रुपयों का अतिरिक्त भार पड़ने का अनुमान है। अल्पसंख्यक विभाग के अनुसार 400 ऐसे लोग हैं जिन पर इतनी राशि ब्याज के रूप में बकाया है।
इससे पहले सरकार मदरसा बोर्ड के गठन के विरोध को अनदेखा कर बनाए गए मदरसा अधिनियम में संशोधन कर मदरसा बोर्ड को संवैधानिक मान्यता दे चुकी है। मजहबी शिक्षा देने वाले मदरसों को स्वायत्तशासी बना कर सरकार ने उन्हें वे अधिकार दे दिए हैं जो शिक्षा विभाग के विद्यालयों के पास हैं। बोर्ड को संपूर्ण स्वायत्तशासी बनाने का अर्थ है कक्षा का वर्गीकरण, पाठ्यक्रम और शिक्षक आदि मदरसा बोर्ड स्वयं तय करेगा। इतना ही नहीं ‘मुख्यमंत्री मदरसा उन्नयन योजना’ के अंतर्गत सरकार ने मदरसों के आधुनिकीकरण के नाम पर सरकारी खजाने का मुंह खोलने में भी उदारता दिखाई है। योजना में प्राथमिक स्तर के मदरसों को अधिकतम 15 लाख तथा उच्च प्राथमिक स्तर के मदरसों को अधिकतम 25 लाख रुपये देने का प्रावधान है। कुल स्वीकृत राशि का 90 प्रतिशत राज्य सरकार तथा 10 प्रतिशत मदरसा प्रबंधन समिति देती है। इसके अतिरिक्त सरकार पंजीकृत मदरसों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों का दुर्घटना बीमा कराने के साथ ही लगभग 6,000 मदरसा पैरा टीचर का मानदेय 15 प्रतिशत बढ़ाने के आदेश भी जारी कर चुकी है। जिसके अनुसार, पहले चरण में उनके मानदेय में 1,400 रुपये तथा छठे चरण में 1,100 रुपये की वृद्धि की गई है। यह वृद्धि अप्रैल से लागू हो चुकी है। यह सब तब है जब मजहबी शिक्षा व अन्य विवादास्पद गतिविधियों के चलते देशभर में मदरसों का विरोध हो रहा है और केंद्र सरकार नई शिक्षानीति के माध्यम से शैक्षिक सुधार लाने के प्रयास कर रही है।
दूसरी ओर राज्य सरकार बहुसंख्यक समाज की आस्थाओं व भावनाओं को अनदेखा कर न तो कृष्ण की लीला स्थली कही जाने वाली आदिबद्री व कंकाचल की पहाड़ियों पर वैध व अवैध खनन रुकवाने के प्रयास कर रही है और न ही गोचर व चरागाह के लिए जमीन आवंटन पर कोई सुनवाई कर रही है। आदिबद्री व कंकाचल की पहाड़ियों को बचाने के लिए संत समाज वर्षों से आंदोलन कर रहा है, अभी भी साधु संतों की अगुआई में आस पास का बड़ा जन समुदाय धरने पर है। गोचर व गोशालाओं के मामले में सरकार ने चारागाह और गोचर जमीन के आवंटन में गोशालाओं को प्राथमिकता देने के लिए नई नीति लाने व पंजीकृत गोशालाओं को दिए जाने वाले अनुदान की राशि बढ़ाने की घोषणा की थी। लेकिन राशि बढ़ाना तो दूर की बात पिछले वर्ष कुल पंजीकृत 1980 गोशालाओं में से 1520 गोशालाओं को इस सहायता से वंचित ही कर दिया गया और बाकियों को भी 180 दिनों का अनुदान ही मिला साथ ही गोसंरक्षण एवं संवर्धन अधिनियम-2016 तथा राजस्थान स्टांप अधिनियम 1988 (1999 का अधिनियम सं. 14) की धारा 3-ख को संशोधित कर स्टांप ड्यूटी से वसूली जाने वाली राशि का उपयोग आपदा निधि में करने का प्रावधान कर गोशालाओं को मिलने वाले अनुदान को कानूनन कम कर दिया। बहुसंख्यक समाज की लम्बे समय से वैदिक शिक्षा बोर्ड के गठन की मांग पर तो घोषणा करने के बाद आज तक किसी तरह की कोई कार्यवाही शुरू नहीं हुई।