मुस्लिम तुष्टीकरण में आकंठ डूबी राजस्थान सरकार
मुस्लिम तुष्टीकरण में आकंठ डूबी राजस्थान सरकार
जयपुर। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 2013 की केदारनाथ त्रासदी के मृतकों और स्थाई लापता लोगों के परिजनों को सरकारी नौकरी देने की घोषणा कर भले ही यह संदेश देने का प्रयास करें कि उनके लिए सब समान हैं, लेकिन जब वे मृतकों के प्रति संवेदना व्यक्त करने और मौतों का मुआवजा देने की घोषणा करने तक में भेदभाव कर जाते हैं, उनकी सरकार के कारिंदे मालपुरा में कांवड़ यात्रा का मार्ग बदल देते हैं और सीकर में तीज की सवारी निकालने की अनुमति नहीं देते तथा सरकार में बैठे मंत्री यह बयान देते हैं कि कांवड़ यात्राओं के माध्यम से भाजपा दंगे फैलाने का षड्यंत्र कर रही है तो सरकार का तुष्टीकरण करने वाला चेहरा अपने आप सामने आ जाता है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हाल में यह घोषणा की है कि 2013 की केदारनाथ त्रासदी के मृतकों और स्थाई रूप से लापता लोगों के परिजनों को सरकारी नौकरी देने का जो निर्णय उन्होंने 2013 में किया था, उसे फिर से लागू किया जाएगा। हालांकि यह घोषणा उन्होंने कुछ समय पहले भी की थी, लेकिन उसमें अभी तक हुआ कुछ नहीं है और अब हाल में एक कार्यक्रम में उन्होंने फिर से इसे दोहराया है, जिसे प्रदेश के वर्तमान माहौल में एक विशेष संदेश देने वाली घोषणा माना जा रहा है।
हालांकि इस घोषणा के अगले ही दिन दो एक जैसी घटनाओं में संवेदना प्रकट करते हुए गहलोत ने जो भेदभाव किया, उससे उनका तुष्टीकरण वाला चेहरा साफ उजागर हो गया। गंगानगर में खेत में बनी डिग्गी में डूबने से पांच छोटे हिन्दू बच्चों की मौत हो गई। इन बच्चों के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी संवेदना तो प्रकट की, लेकिन उनकी सरकारी मशीनरी उनके लिए इन बच्चों के नाम तक नहीं पता कर पाई। वहीं इन बच्चों के परिजनों के लिए किसी प्रकार की आर्थिक सहायता की घोषणा भी राजस्थान सरकार ने नहीं की। उसी दिन फलौदी में मुस्लिम समुदाय के दो युवक भी तालाब में डूबने से मौत का शिकार हो गए। उनके लिए संवेदना संदेश ट्वीट करते हुए मुख्यमंत्री ने ना सिर्फ उनके नामों का उल्लेख किया, बल्कि आदर स्वरूप उनके नामों के आगे श्री भी लिखा और उनके परिजनों के लिए पांच लाख रुपए की सहायता राशि की घोषणा भी की। यानी संवेदना प्रकट करने और मुआवजा घोषित करने तक में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भेदभाव कर गए और यह बता गए कि भले ही हिन्दू समाज का एक परिवार अपने पांच मासूम बच्चों को खो बैठा हो, लेकिन एक मुस्लिम परिवार उनके लिए कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
राजस्थान की वर्तमान कांग्रेस सरकार में इस तरह के उदाहरण सामने आते ही रहते हैं। हाल में मालपुरा में प्रशासन ने कांवड़ यात्रा का मार्ग बदल दिया। यात्रा समिति वर्षों से एक परम्परागत मार्ग से यात्रा निकालती रही है, लेकिन इस बार कांवड़ियों की सुरक्षा के नाम पर इसका मार्ग बदल दिया गया और कई शर्तें लगा दी गईं। इसी के चलते यात्रा समिति ने आखिर कांवड़ यात्रा ही निरस्त कर दी। समिति का कहना था कि हम वर्षों से इस मार्ग से यात्रा निकालते रहे हैं और 2018 में एक घटना के अलावा कभी कुछ नहीं हुआ। अब प्रशासन नए मार्ग से यात्रा निकालने को कह रहा है जो हमें स्वीकार नहीं है। इसी तरह सीकर में धारा 144 के नाम पर तीज माता की सवारी की अनुमति भी नहीं दी गई।
इस मामले में कांग्रेस सरकार के मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास का बयान आता है कि भाजपा कांवड़ यात्राओं के माध्यम से दंगे फैलाना चाहती है। वे कहते हैं कि संकरे रास्तों से कांवड़ यात्रा निकालने की अनुमति नहीं दी जाएगी, चौडे़ रास्तों से निकालने में कोई आपत्ति नहीं है। प्रश्न यह है कि आने वाली नौ अगस्त को मोहर्रम है और मोहर्रम के ताजिए भी सभी शहरों की तंग गलियों से निकल कर ही आते हैं, तो क्या सरकार उन पर भी रोक लगाने का साहस कर पाएगी?