मूक पशुओं की पीड़ा दूर करता है कृष्णा लिम्ब
मनीष गोधा
जयपुर। किसी रोग या दुर्घटना की चपेट में आकर अपना पैर या हाथ गंवाना कितनी बड़ी परेशानी है, यह हम सब जानते हैं। हमारे परिचितों में कोई ना कोई ऐसा जरूर होगा। ऐसे लोगों के लिए अब कृत्रिम हाथ और पैर दोनों काफी सहजता से उपलब्ध हैं और इन्हें लगा कर अपना काम चला भी लेते हैं। लेकिन सोचिए किसी गाय, भैंस, घोड़ा या किसी भी अन्य पशु के साथ ऐसा हो जाए, तो उसकी क्या स्थिति होती होगी। चार पैर वाले जीव का एक भी पैर यदि खराब हो जाए तो आप समझ सकते हैं कि उसके लिए तो अपना भोजन तक जुटा पाना सम्भव नहीं रह जाता।
मूक पशुओं की इसी पीड़ा को जयपुर के एक वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ. तपेश माथुर ने समझा और ऐसे पशुओं के लिए कृत्रिम पैर तैयार कर लगाना शुरू किया। यह एक ऐसा काम है जो तिल तिल मौत की तरफ जाते मूक पशुओं के लिए उम्मीद की एक नई किरण है। विशेष बात यह है कि डॉ. तपेश माथुर यह काम पूरी तरह निशुल्क करते हैं। उनके द्वारा बनाए जा रहे कृत्रिम पैर का नाम कृष्णा है, क्योंकि उन्होंने आज से छह साल पहले कृष्णा नाम के एक बछड़े को सबसे पहले यह पैर लगाया था।
डॉ. माथुर राजस्थान सरकार के पशुपालन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी हैं और पेशे से पशु चिकित्सक हैं। वे बताते हैं कि मेरे पास अक्सर ऐसे मामले आते थे, जिसमें किसी रोग या दुर्घटना के कारण गाय, बछड़े या कुत्तों आदि की टांग काटनी पड़ती थी। यह बहुत दर्दनाक फैसला होता था, क्योंकि इसके बाद उस पशु का जीवन बहुत कष्टप्रद हो जाता था। अक्सर पशुपालक ऐसे पशुओं को छोड़ देते थे या उन्हें बेच दिया जाता था। गाय और बछड़ों के साथ तो ऐसा बहुत होता था। पशुओं की इस पीड़ा को देख कर ही मन में विचार आया कि जब मनुष्य के कृत्रिम हाथ या पैर लग सकते हैं तो पशुओं के भी कृत्रिम पैर लगाए जा सकते हैं। इस दिशा में कुछ खोज और अनुसंधान की और पहला कृत्रिम पैर कृष्णा नाम के एक बछड़े को लगाया। यह आसान नहीं था, क्योंकि आदमी के लिए ही कृत्रिम पैर या हाथ के साथ एडजस्ट करना मुश्किल होता है तो पशु को लगाना तो और भी मुश्किल था, लेकिन हमने किया और करीब 15 दिन की फिजियोथैरेपी के बाद यह सफलतापूर्वक काम करने लगा। कृष्णा ने इसे अपना लिया तो हमने भी अपने इस पैर का नाम कृष्णा के नाम पर कृष्णा लिम्ब रख दिया।
डॉ. तपेश 2014 से अब तक करीब 105 पशुओं को कृत्रिम पैर लगा चुके हैं। इनमें से 90 प्रतिशत गाय, बछड़े, भैंस हैं। इनके अलावा घोड़ों, कुत्तों, खरगोश और हाल में एक तोते के लिए भी उन्होंने कृत्रिम पैर बनाया है। डॉ. माथुर बताते हैं कि इसके लिए पहले हमें सही नाप की जरूरत होती है। जहां से पैर कटा होता है, वहां से नाप ली जाती है और फिर पशु के वजन और अन्य चीजों को देखते हुए कृत्रिम पैर तैयार करना पड़ता है। ऐसे में लगभग हर पशु के लिए अलग पैर तैयार होता है। इसके बाद इसे लगाया जाता है और कुछ दिन तक यह देखा जाता है कि पशु को इससे कोई समस्या तो नहीं हो रही है। कुछ फिजियोथैरेपी भी की जाती है। जरूरत पड़ने पर कुछ बदलाव भी किए जाते हैं, लेकिन आम तौर पर कुछ समय बाद पशु को इसकी आदत हो जाती है और इसकी सहयता से चलने लगता है।
निशुल्क सेवा है
सबसे अहम बात यह है कि मूक पशुओं की यह सेवा डॉ. तपेश पूरी तरह से निशुल्क करते हैं। एक पैर पर लगभग तीन से चार हजार की लागत आती है। उनकी पत्नी डॉ. क्षिप्रा माथुर वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये दोनों अपनी आय का कुछ हिस्सा इसी काम के लिए रखते हैं। क्षिप्रा बताती हैं कि अब इस कृत्रिम पैर की मांग बहुत अधिक आ रही है। हम राजस्थान ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, छत्तीसगढ, पंजाब, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल तक लगभग 18 राज्यों में जा कर यह पैर लगा चुके हैं। उनका यह काम विदेश भी पहुंचा है। पिछले वर्ष क्रोएशिया की एक महिला ने उनसे सम्पर्क किया। इस अभियान का एक अच्छा पहलू यह सामने आया है कि अब लोग ऐसे किसी पशु को देखते हैं तो किसी रेस्क्यू सेंटर पर सम्पर्क करते हैं। कई बार हमारे पास भी फोन आते हैं।
कोविड में भी जारी रहा काम
उनका यह काम कोविड में भी जारी रहा, हालांकि यह मुश्किल था, क्योंकि जब तक खुद जा कर पीड़ित पशु की सही नाप नहीं ली जाए तब तक सही पैर बनना मुश्किल होता है। लेकिन कोविड के दौरान जाना सम्भव नहीं था, फिर भी लोगों के फोन आते थे और लोग इनसे सम्पर्क करते थे। डॉ. माथुर बताते हैं कि इसके लिए हमने वीडियो कॉल का सहारा लिया। पशुपालक को नाप लेने का तरीका वीडियोकॉल के जरिए बताते थे। वो नाप भेजता था और हम यहां से पैर तैयार कर भेजते थे, फिर वीडियो कॉल के जरिए ही उसे लगाने का तरीका बताते थे। ऐसे में तकनीक के जरिए कोविड में भी यह काम जारी रहा और आगे की राह भी मिल गई। अब स्थिति सामान्य होने पर भी वीडियो कॉल के जरिए यह काम आसानी से हो सकेगा और ज्यादा पशुओं के लिए काम हो सकेगा।
पहचान भी मिली
डॉ. माथुर के इस काम को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है। कई अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं और वेबसाइटों ने उनके इस काम को प्रकाशित किया है, वहीं भारत में केन्द्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने अंत्योदय की दिशा में किए जा रहे श्रेष्ठ कार्यों पर आधारित एक पुस्तक प्रकाशित की थी। इसे उपराष्ट्रपति ने लोकार्पित किया था। इस पुस्तक में भी डॉ. तपेश के इस काम को जगह मिली है।
Yes Tapesh Mathur is doing Excelente job and a selfless service to animals and society. A great veterinarian fully supported by his wife. Great couple.