यह समय पूर्वाग्रहों को भुलाकर साथ खड़े होने का है

यह समय सभी प्रकार के धार्मिक, राजनीतिक, वैचारिक मतभेदों, पूर्वाग्रहों, धारणाओं को भुलाकर साथ आने का है। अभी प्रत्येक भारतवासी का एक ही लक्ष्य और एक ही धर्म होना चाहिए, वह यह कि कोरोना के संक्रमण का वाहक बनने से स्वयं बचना और दूसरों को भी बचाना।

प्रणय कुमार

भारत अपनी विशाल-सघन जनसंख्या एवं सीमित संसाधनों के मध्य भी जिस दृढ़ता, साहस और संकल्प के साथ कोरोना महामारी से लड़ रहा है, वह पूरी दुनिया के लिए न केवल विस्मय एवं गहन शोध का विषय है, अपितु आज यह यूरोप और अमेरिका के लिए अनुकरण और प्रेरणा का विषय बन चुका है। भले ही नस्लीय दर्प एवं श्रेष्ठता-दंभ में पश्चिम का प्रशस्ति-गायन करने वाली पत्र-पत्रिकाएँ आज भी भारत को उन्हीं पुरानी स्थापनाओं और पूर्वाग्रहों से आंकलित करें, पर उन्हें भी यह सच दिख रहा है कि कैसे अब भी भारत ने इस महामारी से संक्रमित लोगों की संख्या हजारों में और मृतकों की संख्या सैकड़ों में समेट रखी है।

उन्हें यह सच पच नहीं रहा, इसलिए वे इस अवसर की ताक में आज भी खड़ी दिखाई देती हैं कि कैसे भारत को वही पुराना, अल्प विकसित, पिछड़ा और लाचार देश दिखाया जाए। बीबीसी, सीएनएन और कुछ अन्य वामपंथी मानसिकता से ग्रस्त चैनलों में इसी निहितार्थ से समाचार दिखाए व परोसे भी जा रहे हैं, पर ज़मीनी सच्चाई बिलकुल अलग है। इस महामारी से निपटने में पश्चिमी समाज और वहाँ का जागरूक नेतृत्व भारत की ओर आशा भरी दृष्टि से देख रहा है। पश्चिमी ही क्यों, दुनिया के सभी मानव-प्रेमियों के लिए भारत का यह दृष्टिकोण मायने रखता है कि आर्थिक समृद्धि से अधिक महत्त्व मानव संसाधनों का है। राज्य/स्टेट का पहला कर्त्तव्य अपने नागरिकों के जीवन की रक्षा है, न कि अर्थव्यवस्था की चिंता। प्रधानमंत्री मोदी के इस दृष्टिकोण ने उन्हें विश्व-नेता के रूप में संपूर्ण जगत में स्थापित किया है। इस एक दृष्टिकोण ने भारत की सदियों से चली आ रही उच्च एवं उदार मानवीय संस्कृति की पुनर्स्थापना करा दी। एक ओर जहाँ अमेरिका और इंग्लैंड जैसे अति विकसित देश इस भयावह आपदा-काल में भी आर्थिक हितों को सर्वोच्च वरीयता देते हुए देर से चेते, वहीं भारत का यह मानवीय दृष्टिकोण पूरी दुनिया के लिए एक बेजोड़ मिसाल बन गया।

बात केवल नीति और नीयत के स्तर पर ही प्रशंसनीय नहीं रही, बल्कि क्रियान्वयन के स्तर पर भी प्रधानमंत्री मोदी और भारत की तमाम राज्य सरकारों ने पूरी चुस्ती एवं फुर्ती दिखलाई। लंदन में कार्यरत भारतीय डॉक्टर श्री राजीव मिश्रा बताते हैं कि वे और उनका पूरा परिवार विगत 18 दिनों से कोरोना की चपेट में था। हाल ही में उससे उबरने के पश्चात उनका कहना है कि इंग्लैंड की सरकार ने मरीज़ों को उनके हाल पर छोड़ दिया है। श्री राजीव मिश्रा कहते हैं कि भारत ने जिस समय से एयरपोर्ट पर यात्रियों की जाँच करना, क्वारंटाइन करना, उन्हें आइसोलेशन आदि में रखना शुरू कर दिया उस समय तो यूरोप और अमेरिका में जाँच आदि के नाम पर प्रारंभिक औपचारिकताएँ भी नहीं प्रारंभ की गईं थीं। सरकारें तो छोड़िए आकंठ भोग में डूबी कथित अनुशासित पश्चिमी सभ्यता को भी त्याग, संयम और अनुशासन की दिनचर्या अपनाने में लंबा वक्त लगा, जबकि भारत का बहुसंख्य समाज इसे अपनी सहज जीवन-शैली की तरह आत्मसात कर पाया।

यह एक ऐसी महामारी है कि कोई भी सरकार अकेले दम पर इससे नहीं निपट सकती। अमेरिका, इटली, स्पेन, इंग्लैंड जैसे अपेक्षाकृत कम जनसंख्या वाले विकसित देशों की सरकारों ने भी इस महामारी के सामने हाथ खड़े कर दिए हैं। लेकिन भारत इस महामारी से निपटने के लिए अभी भी हर संभव प्रयास कर रहा है। पुलिस-प्रशासन, सरकारी अधिकारी-कर्मचारी, चिकित्सक, नर्सिंग स्टाफ, वार्ड एवं सफाई योद्धाओं आदि ने इस संकट-काल में नर-सेवा, नारायण-सेवा का देव-दुर्लभ उदाहरण प्रस्तुत किया है। उनका प्रयास न केवल सराहनीय अपितु स्तुत्य है। उनके मनोबल को बढ़ाने की आवश्यकता है, न कि हतोत्साहित करने की। विभिन्न शहरों में उन पर होने वाले सुनियोजित हमले दुर्भाग्यपूर्ण हैं।

जमातियों के कुकृत्यों की जितनी निंदा की जाय, उतनी कम है। इन जमातियों की कारगुजारियों का अनुमान इसी आँकड़े से लगाइए कि तमिलनाडु में 89 प्रतिशत, तेलंगाना में 78 प्रतिशत, आंध्रप्रदेश में 70 प्रतिशत, असम में 90 प्रतिशत, उत्तरप्रदेश में 58 प्रतिशत, दिल्ली में 65 प्रतिशत संक्रमित मरीज जमाती हैं।

तमाम राजनीतिक दलों को भी निहित स्वार्थों एवं वोट-बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर एक स्वर में ऐसे कृत्यों की निंदा करनी चाहिए। उनसे अपील करनी चाहिए कि महामारी हिंदू या मुसलमान नहीं देखती। क्या अच्छा नहीं होता कि राहुल गाँधी पिछले दिनों दिए अपने एक घण्टे के वक्तव्य में तबलीगियों के इन कुकृत्यों पर भी दो शब्द बोलते? इंदौर, कानपुर,  मुरादाबाद, गाज़ियाबाद,  आदि में तबलीगियों एवं मुस्लिमों द्वारा किए गए हमले और हंगामे की आलोचना करते? भारतीय राजनीति कब परिपक्व होगी? कब वह राष्ट्रीय हितों के मुद्दों पर एक साथ खड़ी दिखेगी? यह समय सभी प्रकार के धार्मिक, राजनीतिक, वैचारिक मतभेदों, पूर्वाग्रहों, धारणाओं को भुलाकर साथ आने का है। अभी प्रत्येक भारतवासी का एक ही लक्ष्य और एक ही धर्म होना चाहिए, वह यह कि कोरोना के संक्रमण का वाहक बनने से स्वयं बचना और दूसरों को भी बचाना। एक बार इससे उबर जाने के पश्चात हम संपूर्ण राष्ट्र के सामूहिक संकल्प एवं सहयोग के बल पर भूख, ग़रीबी अभाव आदि पर भी निश्चित विजय प्राप्त करेंगे।

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