यह समय लोकलाइजेशन की ओर जाने का है
रतन राजपुरोहित
वैश्वीकरण के लाभ-हानि के बारे में तो इस समय पूरा संसार जान रहा है। लेकिन लगता है आने वाले समय में अर्थव्यवस्थाएं स्वाबलम्बन की ओर कदम बढ़ाएंगी। दूसरे शब्दों में कहें तो ग्लोबलाइजेशन के स्थान पर दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं अब लोकलाइजेशन पर जोर देंगी।
कोरोना महामारी ने हमें नए ढंग से सोचने को विवश किया है। दूसरे शब्दों में कहें तो हमें अपनी प्राचीन जीवन प्रणाली को अपनाने के लिए उत्साहित ही किया है। सनातन जीवन परंपरा की चर्चा करें तो याद आती है महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज की सुखद कल्पना। इसके साथ ही यह भी उतना ही सच है कि वैश्वीकरण के दौर में हम अंतरराष्ट्रीय संबंधों, पारदेशिक व्यापार और आधुनिकीकरण से बच नहीं सकते हैं। लेकिन पोस्ट कोरोना के बाद पूरी दुनिया को नए ढंग से सोचना होगा।
भारतीय जीवन शैली में हम मानते हैं कि ग्राम्य जीवन शैली वैज्ञानिक आधार पर शत प्रतिशत सटीक है। प्रवासी मजदूर लौटकर अपने घरों की ओर गांवों में लौट रहे हैं। इनमें से कितने श्रमिक और कारीगर वापस लौटकर अपने कार्यस्थलों पर आएंगे, अभी यह कहना बहुत जल्दबाजी होगी। विदेशों में रहे रहे लाखों प्रवासी भारतीयों के साथ भी ऐसी परिस्थितियां पैदा हो रही हैं। वे लोग भी लौटकर अपने देश आना चाहते हैं। हमारी नई सोच इन्हीं परिस्थितियों में से निकलेगी।
वैश्वीकरण के लाभ-हानि के बारे में तो इस समय पूरा संसार जान रहा है। लेकिन लगता है आने वाले समय में अर्थव्यवस्थाएं स्वाबलम्बन की ओर कदम बढ़ाएंगी। दूसरे शब्दों में कहें तो ग्लोबलाइजेशन के स्थान पर दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं अब लोकलाइजेशन पर जोर देंगी। भारत की बात करें तो यहां अभी भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान दे रही है और नवाचार के साथ इस योगदान में और बढ़ोतरी हो सकती है।
गांधीजी के ग्राम स्वराज और हिन्द स्वराज जैसे शब्द भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के साथ प्रचलित हुए थे। जिनका मूल भाव “अपना राज्य” और भारत के स्वशासन में निहित था। जिनमें भारत की संस्कृति और नैतिक मूल्य भी निहित थे। बापू के हिन्द स्वराज का सार था कि भारत के ग्रामीण क्षेत्र में अंतिम व्यक्ति के हाथ में जन शक्ति और जन भागीदारी निहित हो।
बापू ने देश के आर्थिक पक्ष को मजबूत करने के लिये स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग, लघु उद्योग को बढ़ावा देने और खादी ग्रामोद्योग को हर ग्राम तक पहुंचाने पर बल दिया था। यदि ऐसा हो तो भारत की आर्थिक समृद्धि को नये आयाम दिये जा सकते हैं।
आज सोचने का विषय है कि प्रवासी श्रमिक, जो अपने कार्यस्थल से अपने घर लौटे हैं, क्या उन लोगों की क्षमताओं का उपयोग उन्हीं के गांवों, कस्बों और शहरों में किया जा सकता है? देखा जाए तो यह इस समय की बड़ी जरूरत है। अभी इस महामारी के दौर में बड़े शहरों में बसने वाले लोगो के उधोग-धंधे ठप्प पड़े हैं । इस स्थिति में ग्रामीण आधारित अर्थव्यवस्था को नए सिरे से संवारने और उनकी क्षमताओं को देश के आर्थिक तंत्र को मजबूत करने में उपयोग में लाए जाने की आवश्यकता है।