अ.जा. वर्ग के वर की निकासी, राजपूत ने थामी घोड़ी की लगाम

अ.जा. वर्ग के वर की निकासी, राजपूत ने थामी घोड़ी की लगाम

अ.जा. वर्ग के वर की निकासी, राजपूत ने थामी घोड़ी की लगामअ.जा. वर्ग के वर की निकासी, राजपूत ने थामी घोड़ी की लगाम (प्रतीकात्मक फोटो)

जयपुर। भारतीय संस्कृति में विवाह संस्कार माना गया है जो न केवल दो व्यक्तियों को अपितु दो परिवारों तथा समाज को भी जोड़ता है। विवाह में धूमधाम से वर यात्रा अर्थात् बारात तथा वर के अश्वारूढ़ होकर निकलने का चलन सदा से रहा है। विदेशी दासता के दौर में उपजी सामंती सोच के चलते अधिकांश भारतीय जन के लिए बारात निकालना दूभर हो गया। इस्लामी आक्रांताओं के समय बारात को लूटे जाने का भय होता था, वहीं अंग्रेज अपने सामने किसी और को अश्व/ बग्घी पर सवार होते देखना अपना अपमान मानते थे। ऐसे में केवल कुछ रसूखदारों को छोड़कर अन्य सबके लिए अश्व की सवारी असंभव हो गई। धीरे-धीरे सामंती सोच ने अपना कब्जा जमाया और समाजकंटक वर निकासी में भी जातीय वैमनस्य घोलने लगे। ऊपर से इस द्वेषपूर्ण भेदभाव का सारा दोष जानबूझकर हिंदू धर्म पर मढ़ा जाने लगा।

ऐसे में गत दिनों तीन उदाहरण सामने आए, जिन्होंने विभिन्न जातियों के मध्य आपसी तालमेल व सौहार्द में नई ऊर्जा भर दी तथा यह बताया कि भारतीय समाज का ताना बाना अटूट है।

बाड़मेर: धूमधाम से निकली बिंदौरी
बाड़मेर जिले के चौहटन क्षेत्र में सामाजिक सौहार्द का सुंदर दृश्य देखने को मिला, जब अ.जा. वर्ग से आने वाले दूल्हे को राजपूत समाज के प्रतिनिधियों ने न केवल घोड़े पर बैठाया अपितु उसकी लगाम पकड़कर बड़े स्नेह-सम्मान के साथ बिंदौरी निकाली। हाकम राम गढ़वीर (मेघवाल) की पुत्री रेखा तथा गेनाराम मेघवाल के पुत्र भीमाराम के विवाह का आयोजन  हुआ। ऐसे में क्षेत्र के राजपूत समाज ने अनुसूचित वर्ग के दूल्हे की बिंदौरी निकलवाने की पहल की। स्थानीय राजपूत समाज का कहना था कि गाँव में सभी जाति-समुदाय के लोग एक परिवार के रूप में रहते हैं। ऐसे में जब किसी और जगह दूल्हे को घोड़ी से उतारने का समाचार सुना तो समाज में सकारात्मक संदेश देने के लिए इस पहल का विचार आया।

अजमेर: राजपूत समाज द्वारा वाल्मीकि समाज के दूल्हे की हाथी घोड़े और ऊंटों के साथ बिंदौरी
केकड़ी (अजमेर) के बिलिया ग्राम में सामाजिक समरसता व अपनत्व का आह्लादित करने वाला दृश्य उपस्थित हुआ। यहाँ का राजावत परिवार वाल्मीकि की बेटी को अपनी बेटी मानते हुए उसके विवाह में सहभागी हुआ। उन्होंने दूल्हे को हाथी पर बैठाकर, ऊँट व घोड़े के साथ धूमधाम से बिंदौरी निकलवाई। उन्होंने वाल्मीकि परिवार की बारात का स्वागत कर अल्पाहार करवाया। विवाह भोज की अगवानी की। राजपूत समाज ने दूल्हे के स्वागत में उसे पान खिलाकर घोड़ी पर बैठाया। वाल्मीकि बेटी का पाणिग्रहण संस्कार होने तक राजपूत परिवार ने भी उपवास रखा तथा विवाह होने के बाद ही भोजन ग्रहण किया।

मुरथल: जाट बने वाल्मीकि बेटी के भाई, भात परंपरा के लिए आगे आए
मुरथल के एक वाल्मीकि परिवार के प्रति जाट परिवार ने भाई का धर्म निभाया। मुरथल निवासी महेन्द्री वाल्मीकि की बेटी का विवाह हो रहा था। पूरा परिवार प्रसन्न था, किंतु उन्हें एक दुःख भी सता रहा था। वो यह कि महेन्द्री के एकमात्र भाई का देहांत 36 वर्ष पहले हो गया था। ऐसे में विवाह के अवसर पर महेन्द्री को अपने भाई की कमी खल रही थी। उनकी उदासी देखकर गाँव के ही जाट समाज के कर्मवीर, देवेंद्र, वीरेंद्र, कृष्ण, जोगेंद्र ने वाल्मीकि परिवार का भाई बनकर भात की परंपरा पूरी की। महेन्द्री ने बताया कि वे पिछले कई वर्षों से अपने पिता श्यामलाल के साथ ही गांव में रहती हैं। पूरा गाँव उसे मान सम्मान देता है। घर में किसी चीज की कमी नहीं थी, केवल अपने भाई की कमी अखरती थी। कर्मवीर के परिवार ने अब इस कमी को भी पूरा कर दिया।

महेन्द्री ने भावुक होकर कहा कि इन भाइयों ने जो पहल की है वह पूरे समाज के लिए प्रेरणादायक है। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि समाज में बहनों का सम्मान एक भाई के लिए सबसे बड़ा होता है। जिस प्रकार से जाट समाज उसका भाई बनकर आगे आया है उससे अच्छा संदेश जाएगा। लोग जाति के भेदभाव से मुक्त होकर मानवता के लिए काम करेंगे। इस कार्य में वाल्मीकि समाज के भाइयों ने भी सहयोग किया।

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