राजस्थान में दुष्कर्मों का बढ़ता ग्राफ, सुरक्षित नहीं नाबालिग बच्चियां भी
डॉ. शुचि चौहान
राजस्थान में दुष्कर्मों का बढ़ता ग्राफ, सुरक्षित नहीं नाबालिग बच्चियां भी
राजस्थान की धरती जो कभी अपने शौर्य, वीरता और महिलाओं के सम्मान के लिए जानी जाती थी आज समाज कंटकों की हैवानियत के कारण बच्चियों की चीखों से गूंज रही है। यहॉं दुष्कर्म की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। आंकड़ों की बात करें तो पिछले एक माह में 5 मई से 5 जून के बीच दस से भी अधिक मामले सामने आ चुके हैं। औसतन हर तीन दिन में एक दुष्कर्म का खुलासा हो रहा है।
दुधमुंही बच्ची से लेकर युवतियों तक कोई सुरक्षित नहीं। दुष्कर्मियों के हौंसले बुलंद हैं। वे घर में घुसकर बच्चियों को उठा रहे हैं। दस माह की बच्ची से हमीद ने उसके घर में घुसकर दुष्कर्म किया तो अलवर में एक सात साल की घर में सो रही बच्ची को अपहृत कर जंगल में ले जाकर ज्यादती करने का मामला सामने आया।
इससे पहले 23 मई को भरतपुर जिले के कामां क्षेत्र में वंचित वर्ग की 13 वर्षीय नाबालिग लड़की से सामूहिक दुष्कर्म का मामला सामने आया था। बालिका के पेट में दर्द होने पर डॉक्टर द्वारा की गई जांच में बच्ची के गर्भवती पाए जाने पर परिजनों को हादसे का पता चला। बच्ची को गॉंव के ही दो लड़कों आजाद पुत्र राशिद व दानू पुत्र सुभान ने डरा धमकाकर कई बार अपनी हवस का शिकार बनाया था।
17 मई को जयपुर के मनोहरपुर इलाके में 10 साल की मंदबुद्धि बच्ची गुलशन को तो उसके सगे भाई जिशान अली ने ही अपनी हवस का शिकार बना हत्याकर लाश फेंक दी। दुष्कर्म व हत्या में उसके तीन दोस्त साजिद अली, अमजद अली और वाजिद अली भी शामिल थे।
इनके अलावा कभी शौच के लिए जाते समय तो कभी रिश्तेदार के घर जा रही बच्चियों को हवस का शिकार बनाया गया। और भी ऐसी अनेक घटनाएं हैं जब बच्ची को धोखे से गोदाम में बुलाकर तो कभी बहला फुसलाकर खेतों में या सुनसान जगहों पर दुष्कर्म की वारदातों को अंजाम दिया गया। रिपोर्ट लिखवाने में परिजनों को मुश्किलें आईं या फिर बच्ची के चाल चलन पर ही टीका टिप्पणी की गई। कई जगह समझौता कर लेने का दबाव भी बनाया गया। लेकिन आसिफा, जुनैद और तबरेज के मानवाधिकारों के लिए सुर्खियों में रहने वाले लिबरल गैंग, सेक्युलर और बड़ी बिंदी गैंग इन घटनाओं पर गॉंधी जी के तीन बंदरों की भूमिका में नजर आए। लिबरल गैंग ने कान में उंगली डाल ली, सेक्युलरों ने मुंह पर हाथ रख लिया तो बड़ी बिंदी गैंग को कुछ भी दिखाई देना बंद हो गया क्योंकि अधिकांश मामलों में दुष्कर्मी मुस्लिम थे और पीड़ित बच्चियां हिंदू। मनपसंद केसों का मीडिया ट्रायल करने में सुपर एक्टिव इलेक्ट्रॉनिक चैनल भी केजरीवाल के विज्ञापन दिखाने में व्यस्त रहे। पूरा बॉलीवुड शुतुरमुर्ग की तरह अपना मुंह छिपा घटनाओं से अनजान बन गया। आसिफा के समय हिंदू होने पर शर्म आने वाली तख्ती थामने वाली करीना कपूर खान और श्रुति सेठ आलम को भी बिल्कुल शर्म नहीं आई। जावेद अख्तर, फरहान अख्तर या आमिर खान का न तो कोई ट्वीट आया और न ही कोई प्रतिक्रिया, जैसे कहीं कुछ हुआ ही नहीं।
राज्य के मुखिया भी स्थिति पर चुप ही हैं और राज्य सरकार के महिला सुरक्षा के दावों की बात करें तो उनमें कितना दम है यह भी स्पष्ट ही है। पुलिस और प्रशासन का रवैया देखकर भी ऐसा लगता है कि या तो इन्होंने अपनी पकड़ खो दी है या फिर ऐसे मामलों के प्रति वे गंभीर नहीं। ऐसे में दुष्कर्मियों को डर भला क्यों लगे? आज प्रदेश में महिला सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है।
ऊपर जिन घटनाओं का उल्लेख किया गया ये तो वे हैं जो मीडिया में जगह बना सकीं, समाज में कितने ही ऐसे मामले भी होते हैं जो बदनामी या धमकियों के कारण बाहर आ ही नहीं पाते। स्थिति सचमुच डरावनी है। आखिर वह क्या है जो पुरुषों को दुष्कर्म के लिए उकसाता है? मनोचिकित्सक इसके कई कारण बताते हैं। पहला कारण सहजता से उपलब्ध पॉर्न कंटेंट, दूसरा कारण उतनी ही सहजता से मिलने वाला नशा, तीसरा कारण मनोरंजन के नाम पर कुछ भी प्रदर्शित करने वाली फिल्में व टीवी सीरियल और चौथा कारण पाश्चात्य शिक्षा व जीवन शैली। फिर इन्हीं के अनुसार बन गई हमारी मानसिकता। इनके अतिरिक्त एक और कारण भी है – मजहबी जिहादी सोच।
आज समलैंगिकता को कानूनी जामा पहना दिया गया, लिव इन रिलेशनशिप अभिजात्य वर्ग में फैशन बन गया। टीवी सीरियल व फिल्में देख देखकर अवैध रिश्ते रखना, तलाक ले लेना आदि तो अवचेतन मन में ऐसे घुस गए जैसे इनमें तो कुछ बुराई है ही नहीं। एक झुग्गी में रहने वाला भी अभिनेताओं की नकल करता है। इनका असर ऐसा होता है कि यदि उनका कोई फेवरिट हीरो लड़की के साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती करता है, तो लोग उसे रोल मॉडल की तरह ही लेते हैं और उत्तेजित होने पर छोटी छोटी अबोध बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बनाते हैं। मजहबी जिहादी मानसिकता के अंतर्गत होने वाले दुष्कर्मों का उद्देश्य अक्सर अपने समाज का वर्चस्व कायम करना होता है जो अंतत: मतांतरण पर आकर समाप्त होता है। दूसरी तरफ जब ऐसे मामलों में अपराधी पर कोई कड़ी कानूनी कार्यवाही नहीं होती या समाज में भी उसकी स्वीकार्यता पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता या यूं कहें कि उल्टे कई बार लोग उसकी दबंगई से डरने लग जाते हैं, यह देखकर दुष्कर्म जैसे अपराधों की संख्या में कमी आने के बजाय उनकी संख्या बढ़ती ही जाती है।
मनोविज्ञानियों का कहना है कि आमतौर पर इंसान पहली बार में बड़ा अपराध नहीं करता। पहले वह छोटी छोटी गलतियां करता है, उन पर परिवार व समाज की क्या प्रतिक्रिया रही, उसके अनुसार उसकी आपराधिक प्रवृत्ति घटती या बढ़ती है। जैसे मान लीजिए किसी किशोर ने स्कूल में अपनी किसी सहपाठी को परेशान किया या उसका उत्पीड़न किया, तब परिजनों ने उसे कुछ नहीं कहा व स्कूल में भी कोई कार्यवाही नहीं हुई, फिर जब उसने किसी महिला के साथ छेड़खानी की, किसी लड़की पर भद्दे कमेंट किए, तब भी कोई कुछ नहीं बोला। ऐसे में उसका हौंसला बढ़ता ही जाता है, जिसकी परिणति दुष्कर्म में भी हो सकती है।
अधिकतर मामलों में दुष्कर्मी अड़ोसी पड़ोसी या जान पहचान वाला ही होता है। इसलिए माता पिता को जहॉं बच्चियों को गुड और बैड टच में क्या अंतर है- समझाना चाहिए वहीं लड़कों को भी संस्कारित करना चाहिए और सरकार को यदि दुष्कर्म जैसे अपराध रोकने हैं तो कानून-व्यवस्था को और दुरुस्त करना ही होगा तथा खुलेआम शराब पीने और ड्रग्स व पॉर्न कंटेंट की तेजी से होती उपलब्धता पर भी नज़र रखनी होगी।