राजस्थान में बेअसर है किसानों का आंदोलन
जयपुर। कृषि बिलों को लेकर दिल्ली कूच कर रहे पंजाब के किसानों को राजस्थान के किसानों का साथ नहीं मिल रहा है। भले ही पंजाब राजस्थान का पड़ोसी राज्य है और यहां भी किसानों की अच्छी खासी संख्या है, लेकिन यहां के किसानों ने ना तब आंदोलन का साथ दिया, जब ये बिल लाए गए थे और पंजाब, हरियाणा में आंदोलन चल रहा था और ना अब यहां के बहुत ज्यादा किसान दिल्ली जाते दिख रहे हैं।
राजस्थान में वैसे तो किसान हर जिले में हैं, लेकिन किसानों के हितों को लेकर बडे आंदोलन या तो उत्तरी राजस्थान में गंगानगर, हनुमानगढ़, सीकर, झुंझुनूं में होते आए हैं या फिर हाडौती के कोटा, बूंदी, झालावाड़, बारां जिले में होते रहे हैं। मौजूदा किसान आंदोलन की बात करें तो गंगानगर, हनुमानगढ़ और शेखावटी इलाके में पहले कुछ सुगबुगाहट जरूर थी और यह माना जा रहा था कि चूंकि यह इलाका पंजाब से लगता हुआ है, इसलिए यहां के किसान दिल्ली कूच का हिस्सा बन सकते हैं। वैसे भी इस इलाके के किसानों में वामपंथी संगठनों का असर ज्यादा रहता आया है, लेकिन अभी तक ऐसी कोई सूचना नहीं है कि यहां से किसी बड़ी संख्या में किसान दिल्ली कूच कर रहे हैं। वहीं हाडौती अंचल के किसानों में तो इसे लेकर कोई विशेष हलचल नजर ही नहीं आ रही है।
दरअसल जब ये कृषि बिल संसद में पेश किए गए थे और पंजाब व हरियाणा में किसान आंदोलन कर रहे थे, तब भी राजस्थान में कोई बड़ा किसान आंदोलन होता नजर नहीं आया था। वामपंथी दलों से जुडे संगठनों ने आंदेलन की बातें कही जरूर थीं, लेकिन इसका कोई असर कहीं नजर नहीं आया। जानकार बताते हैं कि इसके पीछे एक बडा कारण यह था कि पंजाब व हरियाणा के किसानों के मुकाबले राजस्थान के किसानों की परिस्थतियां अलग हैं। यहां जोत छोटी है और ज्यादातर मध्यम श्रेणी के किसान हैं। एसएसपी पर खरीद यहां पहले भी बहुत कम होती रही है। वहीं संविदा कृषि से जुड़े प्रावधानों से भी यहां के किसानों को ज्यादा मतलब नहीं है, क्योंकि राजस्थान में संविदा कृषि का कानून काफी समय से बना हुआ है, लेकिन बहुत कम किसान संविदा कृषि करते हैं।
इसके अलावा हाल में राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने जो कृषि बिल पारित किए उनमें भी एमएसपी का जिक्र नहीं किया गया। एमएसपी पर खरीद की बाध्यता सिर्फ संविदा कृषि के मामले में की गई है जो राजस्थान में नाममात्र की होती है। जबकि कांग्रेस एमएसपी की मांग के लिए ही आंदोलन कर रही है।
वैसे भी मौजूदा स्थिति की बात करें तो अभी रबी की बुआई चल रही है और पंजाब की तरह यहां का किसान मजदूरों से खेती कराने की स्थिति में नहीं है। उसे खुद की काम करना होता है। ऐसे में बुआई का यह समय छोड़ कर किसान किसी आंदोलन में जाने की नहीं सोच सकता। भारतीय किसान संघ के प्रदेश महामंत्री बद्रीनारायण चौधरी कहते हैं कि गंगागनर, हनुमानगढ़ से कुछ किसानों के जाने की बात थी, लेकिन वहां जिस तरह से खालिस्तान समर्थक नारे लगे, उसके बाद यहां के किसान रुक गए। बाकी जगह इस आंदोलन का पहले भी कोई असर नहीं था और अभी भी कोई असर नहीं है, क्योंकि किसान आंदोलन के नाम पर राजनीति हो रही है और यह बात राजस्थान का किसान अच्छे ढंग से समझता है।