राजस्थान में होली के विविध रूप
राजस्थान में होली के विविध रूप
राजस्थान में होली के विविध रूप हैं। दुनिया रंगों से होली खेलती है, लेकिन राजस्थानी रंग ही नहीं, शरीर पर रुई लपेट कर भी होली खेलते हैं। पतंग उड़ाते हैं और नाचते गाते हैं। यहॉं होली पूर्णिमा के अगले दिन यानि एकम को ही नहीं पंचमी और तेरस को भी खेली जाती है, जिसे रंग पंचमी और रंग तेरस कहा जाता है। राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे में रंग तेरस का दिन बेहद विशेष होता है। इस दिन यहॉं ‘नाहर नृत्य’ किया जाता है, जो पूरे वर्ष में एक बार ही होता है। तेरस वाले दिन कलाकार अपने पूरे शरीर पर 4 किलो रुई लपेट कर नाहर यानी शेर का स्वांग रचते हैं। सींग लगा कर पूरा नरसिंह अवतार धरते हैं। जिसे देखने के लिए प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में देसी और विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं। सबसे अचरज की बात यह है कि, लगभग चार सौ वर्ष पहले शुरू हुई यह परंपरा आज भी जीवंत है। इसके अलावा यहॉं की शाही होली, धुलंडी होली, माली होली, गेर होली, डोलची होली और बृज होली भी प्रसिद्ध है। जिसमें राजस्थान का समृद्ध इतिहास, सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक रीति-रिवाजों के कई उदाहरण एक साथ देखने को मिलते हैं।
रंगीलो राजस्थान : अलग स्थान अलग रंग
बीकानेर और श्रीगंगानगर की होली- यहां सुबह से लेकर रात तक होली खेली जाती है। एक—दूसरे को रंग लगाना, गुलाल उड़ाना फिर टोली संग निकल पड़ना गली—मोहल्लों की ओर, जहां पर धमाल चौकड़ी और हो हुल्लड़ का शोर बस देखते ही बनता है।
श्रीगंगानगर में तो होली के रंगों के साथ-साथ पतंग भी उड़ाई जाती है। एक ओर रंग—गुलाल उड़ाने का शोर तो दूसरी ओर ”वो काटा…ये काटा…” का राग। जो फाग गीतों संग ऐसा रंग छोड़ता है, जिसे न सिर्फ खेलने वाले बल्कि, इसे देखने वाले भी नहीं छुड़ा पाते।
भरतपुर और करौली की लट्ठमार होली भरतपुर और करौली में लट्ठमार होली खेली जाती है। लट्ठमार होली को राधा-कृष्ण के प्रेम से जोड़कर देखा जाता है। पुरुष द्वारा महिलाओं पर रंग बरसाया जाता है और राधा रूपी गोपियां उन पर लाठियों से वार करती हैं। उनसे बचते हुए पुरुषों को महिलाओं पर रंग डालना होता है।
उदयपुर और बाड़मेर की रास होली
उदयपुर और बाड़मेर में होली का नृत्य रूप देखने को मिलता है। इस विशेष होली की परंपरा 18वीं शताब्दी में राजा सूरजमल ने शुरू की थी। इस त्यौहार में स्थानीय लोग भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं। पुरुष और महिलाएं भगवान कृष्ण और गोपियों की तरह कपड़े पहनते हैं और रासलीला करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि होली के दिन यहां बाणगंगा नदी में डुबकी लगाने से मन का मैल धुल जाता है और आत्मा शुद्ध हो जाती है। इसलिए हर वर्ष यहां पर बड़ी संख्या में लोग पवित्र स्नान भी करते हैं।
जयपुर में फूलों की होली
जयपुर के आराध्य देव गोविंददेव जी मंदिर में बृज की तर्ज पर फूलों की लाल और पीली पंखुड़ियों के साथ होली खेली जाती है। यहां संगीत और नृत्य का मनभावन संगम होता है। जोधपुर, जयपुर और उदयपुर में होली उत्सव को शाही होली कहा जाता है, जो धुलंडी के रूप में मनाई जाती है। यहां तक कि पुष्कर शहर में भी इसी तरह होली मनाते हैं। शाही परिवार हर वर्ष होली उत्सव में भाग लेते हैं। उदयपुर के राजा सिटी पैलेस में होलिका को स्वयं जलाते हैं, जबकि स्थानीय लोग और पर्यटक होलिका दहन के दिन इसे देख सकते हैं।
अजमेर की लट्ठमार होली
अजमेर में माली समुदाय के बीच माली होली खेली जाती है। जिसमें पुरुष महिलाओं पर रंग फेंकते हैं और महिलाएं पुरुषों को लाठियों से पीटकर उत्तर देती हैं।
बांसवाड़ा का गेर नृत्य
राजस्थान के बांसवाड़ा जिले से मात्र 19 किमी दूर प्रसिद्ध तीर्थ त्रिपुर सुंदरी मंदिर परिसर में तीज के अवसर पर दिनभर ढोल और चंग की थाप पर जनजातीय समाज के लोग नृत्य करते हैं। पिछले 29 वर्षों से यह सामूहिक गेर नृत्य मंदिर परिसर में होता आ रहा है। इस बार सौ से अधिक गांवों के लोग विशेषकर युवक—युवतियों ने सामूहिक गेर नृत्य में भाग लिया। कलाकारों द्वारा संगीत की मधुर स्वर लहरियों के साथ विभिन्न तरह के वाद्ययंत्र बजाए। इससे पूरा शहर आनंद से भर उठा। इस दौरान सभी को तरह-तरह की मिठाइयां जैसे गुझिया, मालपुआ, लड्डू आदि परोसे जाते हैं।
डीडवाना की डोलची होली
इधर, डीडवाना की डोलची होली मनाने का तरीका भी बहुत पुराना है। जिसे लगभग 300 वर्षों से भी अधिक पुराना माना जाता है। यह एक विशिष्ट परंपरा है, जिसमें पुरुष डोलची नामक एक विशेष बर्तन से दूसरे पुरुषों पर पानी फेंकते हैं। यह बर्तन ऊँट की खाल से बना होता है। इसकी शुरुआत दो समुदायों के बीच दरार से हुई थी। इन समुदायों के पुरुषों ने दृढ़ संकल्प पाने के लिए डोलची में एक-दूसरे पर पानी फेंकना शुरू कर दिया, जो बाद में एक परंपरा बन गई। इस परंपरा में केवल पुरुष ही भाग ले सकते हैं, जबकि महिलाएं और बच्चे दूर से ही देखते हैं।
होली रंगों का त्योहार है और राजस्थान में आने वाले कई पर्यटक होली के जीवंत उत्सव के माहौल से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। उन्हें इस त्योहार से जुड़ी परंपराएं और रीति-रिवाज आकर्षक लगते हैं। राजस्थान की होली महान सांस्कृतिक विविधता का एक अनुपम उदाहरण है।