राना का प्रत्यर्पण : अब कई चेहरे होंगे बेनकाब 

राना का प्रत्यर्पण : अब कई चेहरे होंगे बेनकाब 

मृत्युंजय दीक्षित 

राना का प्रत्यर्पण : अब कई चेहरे होंगे बेनकाब राना का प्रत्यर्पण : अब कई चेहरे होंगे बेनकाब 

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में मुंबई में हुए भयानक आतंकी हमले का मुख्य सूत्रधार आतंकी तहव्वुर राना 17 वर्षों की लंबी कानूनी और कूटनीतिक लड़ाई के बाद भारत और अमेरिका के मध्य प्रत्यर्पण संधि के अंतर्गत भारत वापस लाया गया है। आतंकी तहव्वुर राना के भारत प्रत्यर्पित होने पर जहां पाकिस्तान में खौफ का माहौल बना है, वहीं भारत में विपक्ष ने देश की इस कूटनीतिक विजय पर भी विकृत राजनीति प्रारंभ कर दी है।

कुछ लोग तहव्वुर राना की वापसी का श्रेय लेने का प्रयास करते भी दिख रहे हैं, जबकि भारत के नागरिक यह बात जानते हैं कि इसके पीछे किसका बुद्धि कौशल, नीति, संकल्प और परिश्रम छुपा है। भारत की वर्तमान मोदी सरकार की आतंकवाद के विरुद्ध जीरो टॉलरेंस की नीति तथा आतंकवाद से पीड़ित लोगों को न्याय दिलाने का संकल्प ही है कि आज भारत इन तत्वों को अपनी कूटनीति के दम पर जहां भी ये छिपकर बैठे हैं वहां से घसीटकर वापस ला रहा है और भारत की अदालत के कठघरे में खड़ा कर रहा है ताकि आतंकवाद से पीड़ित समाज को न्याय मिल सके। तहव्वुर राना के प्रत्यर्पण का विपक्षी दलों को भी हृदय से स्वागत करना चाहिए था, किंतु वे अपनी विकृत व ओछी राजनीति के चलते ऐसा करने में असमर्थ हो गये हैं। आज विरोधी दलों के प्रवक्ता टीवी चैनलों और सोशल मीडिया में पूछ रहे हैं कि तहव्व्वुर राना को लेकर तो आ गये, किंतु उसके अन्य सहयोगियों हाफिज सईद व दाउद इब्राहीम को कब और कैसे लेकर आओगे? विपक्षी दलों के नेता इन्हीं आधी- अधूरी बातों के आधार पर कुतर्क कर रहे हैं। यद्यपि इन विरोधी दलों के नेताओं को यह बात पता है कि हाफिज सईद, मसूद अजहर व दाऊद इब्राहीम जो पाकिस्तान में छिपे हैं, उनके लिए अलग रणनीति का प्रयोग करना होगा क्योंकि हमारी पाकिस्तान के साथ प्रत्यर्पण की संधि नहीं है और इसके लिए भी कांग्रेस की पूर्ववती सरकारें ही जिम्मेदार हैं।

राना की वापसी पर शिवसेना उद्धव गुट अपनी अलग कहानी लिख रहा है और सरकार से पूछ रहा है कि तहव्वुर राना की वापसी का उत्सव तो मना रहे हो, लेकिन आपने अबू सलेम की वापसी का श्रेय मनमोहन सिंह को क्यों नहीं दिया। शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव के समय ही तहव्वुर राना को फांसी दी जाएगी। राना की वापसी पर एक शर्मनाक बयान बिहार में कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार ने दिया। उसने कहा कि यह देश की मूलभूत समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए किया जा रहा है, विषय की गंभीरता का उपहास करते हुए कन्हैया ने कहा कि हल्ला तो ऐसे मचा रहे हैं जैसे अकाउंट में पंद्रह लाख आ गए हों।

वास्तविकता यह है कि आज विदेशी धरती पर बैठकर भारत के विरुद्ध षड्यंत्र रचने वालों तथा भगोड़ों पर कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से विधिक कार्यवाही चल रही है। विपक्षी दलों की छटपटाहट का कारण यह है कि अब तत्कालीन कांग्रेस सरकारों तथा उनके नेताओं द्वारा आतंकी कसाब की आड़ में हिंदू सनातन समाज को बदनाम करने के लिए भगवा आतंकवाद का जो षड्यंत्र गढ़ा गया था उसका खुलासा होने का समय आ गया है। कांग्रेस नेता पी चिदंबरम का यह बयान कि तहव्वुर राना की वापसी यूपीए सरकार के प्रयासों से ही संभव हो सकी है, पूरी तरह से झूठ का पुलिंदा है। अगर यूपीए सरकार ने राना के प्रत्यर्पण पर गंभीरता दिखाई होती, तो राना की वापसी में इतना विलम्ब नहीं होता। सच तो यह है यूपीए सरकार पूरे प्रकरण को संघ से जोड़ने में लगी थी और दिग्विजय सिंह अजीज बर्नी की पुस्तक का विमोचन कर रहे थे। प्रधानमंत्री मोदी, जो उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उनका राना को लेकर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वो कह रहे हैं कि,“अमेरिका के शिकागो की एक अदालत ने राना को रिहा करने का आदेश दिया है। इसने आतंकवाद के विरुद्ध लड़ने वाली हर शक्ति और हर सरकार के लिए एक नया प्रश्न खड़ा कर दिया है। उस समय प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि भारत सरकार को अमेरिका के विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए और पाकिस्तान के प्रति अमेरिका के रवैये के विरुद्ध कठोर निर्णय लेने चाहिए, यह समय की मांग है अन्यथा एक के बाद एक अपराधी अमेरिका की ओर बढ़ते रहेंगे। अमेरिकी अदालतों में उनके मामलों की सुनवाई होती रहेगी और उन्हें निर्दोष करार दिया जायेगा।“ प्रधानमंत्री मोदी ने उस समय की यूपीए सरकार की विदेश नीति की तीखी आलोचना की थी। प्रधानमंत्री मोदी का यह वीडियो सोशल मीडिया पर देख कर लोग टिप्पणी कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी अपना कोई संकल्प भूलते नहीं हैं।

तहव्वुर राना से भारतीय एजेसियों ने पूछताछ आरम्भ कर दी है, जिससे कई चेहरे व उनकी भूमिका बेनकाब होगी। तहव्वुर राना की गिरफ्तारी उप्प्पा कानून के अंतर्गत हुई है, उस पर कड़ी धाराएं लगाई गई हैं, जिससे उसे फांसी तक की सजा हो सकती है। किंतु फांसी से पहले उसके माध्यम से कई राज उजागर होने हैं, इसलिए पूछताछ लम्बी चलेगी। राना से पूछताछ के दौरान मुंबई हमले में आईएसआई, पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों के साथ- साथ षड्यंत्र में शामिल लश्कर ए तैयबा के आतंकियों के विषय में पूछताछ की जाएगी। मुंबई हमलों के पहले राना भारत दौरे पर आया था, उसने जहां जहां रेकी की थी, उन्हीं स्थानों पर हमला किया गया था। तहव्वुर राना पाकिस्तानी सेना में डॉक्टर रहा है। इसलिए अब पाकिस्तान को डर है कि कहीं वह 26/11 के मामले में पाकिस्तान की पूरी पोल न खोल दे।

इधर भारतीय जनता यह भी जानना चाहती है कि मुंबई हमले की आड़ में भगवा आतंकवाद स्थापित करने वालों की मंशा और भूमिका क्या थी? क्यों कुछ टीवी चैनल और पत्रकार अपनी लाइव रिपोर्टिंग के माध्यम से आतंकवादियों की सहायता कर रहे थे?

बहुत सारे प्रश्नों के उत्तर भविष्य के गर्भ में हैं लेकिन फ़िलहाल पाकिस्तान और उसकी पनाह में पनपे और फले फूले आतंकी संगठन और उनके सरगना डरे हुए हैं। अभी तक 26/11 हमलों को पाकिस्तान झूठी कहानी बताता रहा है, किंतु अब वह ऐसा नहीं कर सकेगा। भारत के विरोधी दल भी डरे हुए हैं। ये लोग नहीं चाहते थे कि तहव्वुर राना का प्रत्यर्पण हो क्योंकि पूछताछ होगी तो दूर तक जाएगी, वे सभी चेहरे बेनकाब होंगे, जिन्होंने भगवा आतंकवाद की झूठी कहानी गढ़ी थी। निश्चित ही तहव्वुर राना का प्रत्यर्पण मोदी जी और उनके नेतृत्व में भारतीय कूटनीति की एक बड़ी विजय है, इसमें कोई संदेह नहीं।

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