राफेल विमान : सीमाओं पर चौकसी होगी और भी पैनी
प्रवीण शुक्ल
राफेल विमान कोई साधारण विमान नहीं है। इसकी कीमत का बहुत बड़ा हिस्सा उसके रडार और स्पेक्ट्रा प्रणाली पर खर्च हुआ है। इससे राफेल का पता लगाना और हमला करना बेहद मुश्किल है। निश्चित ही राफेल चीनी विमान J-20 की एयर सुपिरियोरिटी को खत्म कर भारत की सीमाओं को और मजबूत करेगा।
1965 के युद्ध में हम से चार गुणा छोटा मुल्क पाकिस्तान हमारी एयरफोर्स पर भारी पड़ गया था। उस युद्ध में पाकिस्तान के पास अधिक गुणवत्ता वाले अमरीकी F86 Sabre और Starfighter विमान थे जबकि भारत के पास Gnats, Mysteres, रात को न उड़ पाने वाले हंटर और धीमी गति से उड़ने वाले वैम्पायर एयरक्राफ्ट थे। तब पाकिस्तान को अमेरिका से भरपूर मदद मिल रही थी। उसे अमेरिका ने लेटेस्ट रडार सिस्टम दिए थे जिससे भारतीय विमानों पर नजर रखना आसान था।
1965 के युद्ध में पाकिस्तान का सबसे पहला हवाई हमला एक सितंबर को हुआ और बकौल एयर फोर्स मार्शल अर्जुन सिंह “भारत को स्थिति संभालने में तीन दिन लग गए थे। उसके बाद भारतीय वायुसेना ने युद्ध को बखूबी लड़ा”।
भारतीय वायुसेना के विमान पुराने जरूर थे मगर उनकी संख्या पाकिस्तान से कई कहीं ज्यादा थी। पाकिस्तान ने शुरुआती हमला किया था जिसका उसे फायदा मिला। उसने भारत के एयरपोर्ट पर खड़े हुए 10 विमानों को एक ही दिन उड़ा दिया। भारतीय वायुसेना पाकिस्तान के लगभग हर शहर पर हमला कर रही थी तो पाकिस्तान ने अपने विमान अफगानिस्तान के एक शहर जाहेदान में छिपा दिए थे।
उस युद्ध में पाकिस्तान के लगभग 20 से 30 विमान क्षतिग्रस्त हुए थे जबकि भारत के करीब 60 से 80 विमान नष्ट हुए थे। 1965 की जंग से भारतीय वायु सेना ने जो सबक सीखे और उसके बाद जो आधुनिकीकरण हुआ उसका फायदा सन् 1971 के बंग्लादेश की आजादी वाले युद्ध में मिला। इस युद्ध में भारतीय वायुसेना की निर्णायक भूमिका रही। 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने इजरायल से हमारा रिश्ता जोड़ा। उसका नतीजा हमें 2001 के कारगिल युद्ध में मिला। इजरायल से मिले रडारों से वायुसेना ने अहम किरदार निभाया।
2020 के चीनी अतिक्रमण के बाद भारत के रणनीतिकारों ने टू फ्रंट वॉर यानि चीन व पाकिस्तान – दो मोर्चों पर युद्ध की आशंका व्यक्त की। पाकिस्तान का सबसे महत्वपूर्ण जहाज F-16 है और अब उसके पास रूस के त्यागे हुए प्रोटोटाइप पर चीन द्वारा डिजाइन किये और रूसी इंजन वाले J-17 वाले लगभग 100 विमान हैं। ये दोनों ही विमान चौथी जनरेशन के हैं। भारत के पास उनकी टक्कर के लिए मिराज 2000 और SU30MKI विमान हैं। इसके इतर चीन ज्यादा ताकतवर है। चीन की PLAAF (प्लाफ़) के पास रूसी SU-27, SU-30MKK और SU-35S, के साथ साथ अपने बनाये चौथी जनरेशन के J-10 और पांचवी जनरेशन का स्टेल्थ विमान J-20 है।
पांचवी जनरेशन के फाइटर एयरक्राफ्ट बनाने की क्षमता मात्र तीन देशों में है। सबसे पहले अमरीका ने F-22, फिर F-35 बनाकर उन्हें आपरेशन में भी ले रखा है, जबकि रूस ने SU और चीन ने J-20 विमान बना तो लिए है पर वे अभी ऑपरेशनल नहीं हैं। भारत की चिंता ये चीनी J-20 स्टेल्थ विमान हैं। हालांकि चीन इसका भी इंजन नहीं बना पाया है। उसे इस विमान के लिए फिर से रूसी इंजन लगाना पड़ा है। हम लोग भी कावेरी प्रोजेक्ट के फेल होने के बाद अमरीकी जनरल इलेक्ट्रिक के इंजन का इस्तेमाल तेजस में करते हैं। इसका मतलब चीन ने सिर्फ स्टेल्थ ढांचा बनाया है जिसे भारत भी देर सबेर बना ही लेगा।
80 के दशक में हमने ‘फ्लाइंग कफ़न’ के नाम से मशहूर हो चुके रूसी मिग विमानों को बदलने के लिए लाइट कॉम्बेट एयरक्राफ्ट प्रोजेक्ट शुरू किया। हमने 2002 में उसे तेजस का नाम दिया पर आज 40 साल में वायुसेना ने बमुश्किल 10 तेजस विमान लिए हैं। वहीं 1995 में पाक ने चीन के साथ J 17 का काम शुरू किया। तेजस के लिए बनाये जा रहे कावेरी इंजन को हम 2018 में ही बंद कर चुके हैं। इसी साल हमने रूस के साथ मिलकर नए फाइटर प्लेन SU-35 पर भी काम करने से मना कर दिया। अब हम खुद से ही चौथी जनरेशन का और पांचवी जनरेशन का विमान बना रहे हैं।
चीन की मुश्किल यह है कि उसके भारत के नजदीक स्थित एयर बेस हिमालय पर लगभग 4000 मीटर या उससे अधिक की ऊंचाई पर हैं। चूंकि इस ऊंचाई पर हवा कम घनी होती है, तो चीनी विमान ज्यादा हथियार या ज्यादा ईंधन नहीं ले जा सकते जबकि भारत के हवाई अड्डे कम ऊंचाई पर स्थित हैं। इसका हल उसने पाकिस्तान के कब्जाए गिलगित बाल्टिस्तान में मौजूद स्कार्दू बेस में दूसरी हवाई पट्टी बनाकर निकालने की कोशिश की है। स्कार्दू से श्रीनगर व लेह चन्द मिनट दूर हैं।
चीन के पास 30 से 40 की संख्या में जे-20 विमान बताए जाते हैं। इसी को ध्यान में रखकर भारत ने भी चाइना सेंट्रिक नीति बनाते हुए राफेल खरीदे हैं जो हिमाचल के नीचे अम्बाला और भूटान-अरुणाचल के साथ लगे हाशिमरा एयरबेस पर तैनात होंगे। अम्बाला से ल्हासा 1380 किमी और अलीपुरद्वार जिले में स्थित हाशिमरा एयरफ़ोर्स बेस से चीन के सिचुआन प्रान्त की राजधानी चेंगदू 1600 किलोमीटर दूर है। पाकिस्तान को निर्यात किए गए J-17 और स्टेल्थ विमान J 20 इसी चेंगदू शहर के कारखाने में बनते हैं। राफेल करीब 3200 किमी तक की रेंज में उड़ सकता है। इस लिहाज से चीन के पश्चिम भाग के प्रमुख शहर इसकी जद में आ जाते हैं। राफेल विमान कोई साधारण विमान नहीं है। क्योंकि इसकी कीमत का बहुत बड़ा हिस्सा लगभग 30 प्रतिशत उसके रडार और स्पेक्ट्रा प्रणाली पर खर्च हुआ है। स्पेक्ट्रा एक इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट है, जो खतरों का बेहतर विश्लेषण करने में सक्षम है। इससे राफेल का पता लगाना और हमला करना बेहद मुश्किल है।
(लेखक रक्षा रणनीति और विदेश मामलों के विशेषज्ञ हैं)