राममंदिर और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर युवाओं के विचार
जयपुर, 06 अगस्त। राममंदिर निर्माण के भूमि पूजन से पूरा देश राममय हो गया। मंदिर निर्माण कार्य शुरू होने से चारों ओर अत्यधिक खुशी का माहौल है। 5 अगस्त को हुए भूमि पूजन को पूरी दुनिया ने देखा और इस ऐतिहासिक दिन के साक्षी बने। सुप्रीम कोर्ट का राममंदिर पर जब से यह निर्णय आया है, तभी से देश में दीवाली जैसा माहौल बन गया है। ऐसे में युवाओं में भी इस निर्णय को लेकर एक अलग ही उत्साह सा मालूम पड़ता है। कहा जाता है कि युवा ही देश का भविष्य हैं और यह सच भी है। युवा जितना ज्यादा सजग रहेगा, उतना ही सही रास्ते पर भी चलेगा। इस अवसर पर हमने कई युवाओं के बात कर उनके अनुभव जाने।
इंजीनियरिंग के छात्र, मानवेन्द्र सिंह चौहान कहते हैं, ” राम मंदिर तो एक दिन बनना ही था। यह लड़ाई विवादित ढांचे या मंदिर कि नहीं थी, यह लड़ाई थी सच और झूठ की, सही और ग़लत की। ऐसे में भगवान श्रीराम को तो इस लड़ाई में जीतना ही था।” आस्था और सभ्यता में फर्क हो सकता है। परन्तु राममंदिर सभ्यता और आस्था दोनों को जोड़ने वाला पुल है। 500 सालों से चली आ रही इस लड़ाई का अब जाकर अंत हुआ है और आस्था का सभ्यता में समागम।
पत्रकारिता की छात्रा, ख्याति शांडिल्य बताती हैं कि, ” मैंने ट्विटर पर बहुत लोगों को कहते हुए देखा कि विवादित ढांचे के नीचे राम मंदिर का कोई प्रमाण ही नहीं है। राम मंदिर कभी वहां था ही नहीं। ऐसी तथ्यहीन बातें कोई सोया हुआ व्यक्ति ही कर सकता है। सारे साक्ष्य एवं तथ्य सामने आ चुके हैं, उसके बाद भी लोग ऐसे सवाल उठाते हैं। समझ के बाहर है, की लोग किस दिशा में जा रहे हैं।”
बीकॉम के छात्र करन सिंह सैनी कहते है, ” राम तो हर कहीं बसे हैं। उन्हें किसी मंदिर की आवश्यकता नहीं। परन्तु राम मंदिर की भूमिका हम सभी के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है जिसे हम आज तक अनदेखा करते आए हैं। यह हमारी संस्कृति है, जिसे हमें बचाना होगा। यह समय की मांग है।” मंदिर का निर्माण कार्य 5 अगस्त से औपचारिक रूप से शुरू हो गया है। जल्द ही मंदिर आकार भी लेने लगेगा और लोग दर्शन के लिए जा सकेंगे।
जेईसीआरसी यूनिवर्सिटी, जयपुर में पढ़ रही साक्षी सिंह कहती हैं कि, “मैं आज तक यह जान नहीं पाई की हम इतने वर्षों तक यह लड़ाई लड़ क्यों रहे थे। जब मंदिर का असली स्थान वह है, सारे तथ्य हैं जो सामने हैं, तो फिर ये कौन लोग हैं जो हमें लड़ा रहे थे।”